हरिहर काका
- Books Name
- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-1 हरिहर काका
मिथिलेश्वर
लेखक परिचय
मिथिलेश्वर का जन्म 31 दिसम्बर 1950 को बिहार के भोजपुर जिले के बैसाडीह नामक गाँव में हुआ। इनके पिता स्व० प्रो० वंशरोपन लाल थे। इन्होने हिंदी में एम०ए० और पी-एच०डी० करने के उपरांत व्यवसाय के रूप में अध्यापन कार्य को चुना। मिथिलेश्वर के व्यक्तित्व निर्धारण में उनकी अनवरत संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा की अहम भूमिका है।
प्रस्तुत पाठ में भी हरिहर काका नाम का एक व्यक्ति है, जिसकी अपनी देह से कोई संतान नहीं है परन्तु उसके पास पंद्रह बीघे जमीन है और वही जमीन उसकी जान की आफत बन जाती है अंत में उसी जमीन के कारण उसे सुरक्षा भी मिलती है। लेखक इस पाठ के जरिए समाज में हो रहे नकारात्मक बदलाव से हमें अवगत करवाना चाहता है कि आज का मनुष्य कितना स्वार्थी मनोवृति का हो गया है। मनुष्य की स्वार्थी मनोवृति ने रिश्तो का महत्व ही खत्म कर दिया।
शब्दार्थ-
- सार्थक– उद्देश्य वाला
- आसक्ति- लगाव
- सयाना- समझदार, बुद्धिमान
- सार्थक– उपयोगी, अर्थवाला
- यंत्रणाओं यातनाओ, कलेश
- मझदार- बीच में विलीन
- आकर्थक- बेकार
- विकल्प- दूसरा उपाय
- जाग्रत– सतर्क
- दवनी- धन निकलने की प्रक्रिया
- मशगूल– व्यस्त
- तक्षण– उसी पल
- विमुख- उदासीन, हताश
- महटिया– टालना
- घनिष्ठ– गहरा
- ठाकुरबारी– देवस्थान
- मनौती– मन्नत
- परंपरा– प्रथा / प्रणाली
- सञ्चालन– नियंत्रण / चलाना नियुक्ति – तैनाती / लगाया गया
- आच्छादित– ढका हुआ
- कलेवर– शरीर / देह / ऊपरी ढाँचा
- अधिकांश– ज्यादातर
- समिति– संस्था
पाठ की समीक्षा
आज समाज में मानवीय मूल्य तथा पारिवारिक मूल्य धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। ज़्यादातर व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए रिश्ते-नाते निभाते हैं। अब रिश्तों से ज्यादा रिश्तेदार की कामयाबी और स्वार्थसिद्धि की अहमियत है।रिश्ते ही उसे अपने-पराए में अंतर करने की पहचान करवाते हैं। रिश्तों के द्वारा व्यक्ति की समाज में विशेष निर्धारित भूमिका होती है। रिश्ते ही सुख-दुख में काम आते हैं। यह बात है कि आज के इस बदलते दौर में रिश्तों पर स्वार्थ की भावना हावी होती जा रही है। रिश्तों में प्यार व बंधुत्व समाप्त हो गया है। इस कहानी में भी यदि पुलिस न पहुँचती तो परिवार वाले काका की हत्या कर देते। इंसानियत तथा रिश्तों का खून तब स्पष्ट नज़र आता है जब महंत तथ परिवार वालों को काका के लिए अफ़सोस नहीं बल्कि उनकी हत्या न कर पाने का अफ़सोस है। ठीक इसी प्रकार आज रिश्तों से ज्यादा धन-दौलत को अहमियत दी जा रही है।
सपनों के-से दिन
- Books Name
- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ- 2 सपनों के से दिन
गुरु दयाल सिंह
लेखक परिचय
गुरदयाल सिंह(10 जनवरी 1933-16 अगस्त 2016) एक पंजाबी साहित्यकार थे जो उपन्यास और कहानी लेखक थे। इन्हें 1999 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपनी प्रथम कहानी भागों वाले प्रो. मोहन सिंह के साहित्य मैगजीन पंज दरिया में प्रकाशित की थउनके पंजाबी साहित्य में आने से पंजाबी उपन्यास में बुनियादी तबदीली आई थी। उनके उपन्यास मढ़ी दा दीवा, अंधे घोड़े का दान का सभी पंजाबी भाषाओँ में अनुवाद हो चुक्का है और इन की कहाँनीयों पर अधारत फ़िल्में भी बनी हैं।
बचपन में भले ही सभी सोचते हों की काश! हम बड़े होते तो कितना अच्छा होता। परन्तु जब सच में बड़े हो जाते हैं, तो उसी बचपन की यादों को याद कर-करके खुश हो जाते हैं। बचपन में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो उस समय समझ में नहीं आती क्योंकि उस समय सोच का दायरा सिमित होता है। और ऐसा भी कई बार होता है कि जो बातें बचपन में बुरी लगती है वही बातें समझ आ जाने के बाद सही साबित होती हैं।
प्रस्तुत पाठ में भी लेखक अपने बचपन की यादों का जिक्र कर रहा है कि किस तरह से वह और उसके साथी स्कूल के दिनों में मस्ती करते थे और वे अपने अध्यापकों से कितना डरते थे। बचपन में लेखक अपने अध्यापक के व्यवहार को नहीं समझ पाया था उसी का वर्णन लेखक ने इस पाठ में किया है।
शब्दार्थ-
- ट्रेनिंग- प्रशिक्षण
- लंडे– हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि
- बहियाँ- खाता
- खेडण– खेलने
- श्रेणी– कक्षा
- ननिहाल– नानी का घर
- खाल खींचना– पिटाई करना
- पीटी शिक्षक– शारीरिक शिक्षा के अध्यापक
- चपत- थप्पड़
- सतिगुर– सच्चा गुरु
- धनाढ्य– अमीर
- मनोविज्ञान– मन का विज्ञान
- हरफनमौला- विद्वान
- अढे- यहाँ
- उठै- वहाँ
- लीतर- टूटे हुए पुराने खस्ताहाल जूते
- मुअत्तल- निलंबित
- महकमाएँ- तालीम – शिक्षा विभाग
- अलौकिक- अनोखा
पाठ का केन्द्रीय भाव
हम बड़े होते तो कितना अच्छा होता। परन्तु जब सच में बड़े हो जाते हैं, तो उसी बचपन की यादों को याद कर-करके खुश हो जाते हैं... प्रस्तुत पाठ में भी लेखक अपने बचपन की यादों का जिक्र कर रहा है कि किस तरह से वह और उसके साथी स्कूल के दिनों में मस्ती करते थे और वे अपने अध्यापकों से कितना डरते थे। फिर भी स्कूल का टास्क बनाने के बजाय खेलने निकल जाया करते थे। लेखक बचपन में यह सब नहीं समझ पाए थे। इस तरह से बचपन की खट्टी -मीठी यादें मनुष्य को सदा जीवंत बनाए रखती हैं।
टोपी शुक्ल
- Books Name
- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-3 टोपी शुक्ला
राही मासूम रजा(1925-1992)
लेखक परिचय
राही मासूम रज़ा (१ सितंबर, १९२५ – १५ मार्च १९९२) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। १९६८ से राही बम्बई में रहने लगे थे। वे अपनी साहित्यिक गतिविधियों के साथ-साथ फिल्मों के लिए भी लिखते थे जो उनकी जीविका का प्रश्न बन गया था।
‘टोपी शुक्ला’ कहानी के लेखक राही मासूम रजा’हैं । इस कहानी के माध्यम से लेखक बचपन की बात करता है। बचपन में बच्चे को जहाँ से अपनापन और प्यार मिलता है वह वहीं रहना चाहता है।
प्रस्तुत पाठ में भी लेखक ने दो परिवारों का वर्णन किया है जिसमें से एक हिन्दू और दूसरा मुस्लिम परिवार है। दोनों परिवार समाज के बनाए नियमों के अनुसार एक दूसरे से नफ़रत करते हैं परन्तु दोनों परिवार के दो बच्चों में गहरी दोस्ती हो जाती है। ये दोस्ती दिखती है कि बच्चों की भावनाएँ किसी भेद को नहीं मानती।
आज के समाज के लिए ऐसी ही दोस्ती की आवश्यकता है। जो धर्म के नाम पर खड़ी दीवारों को गिरा सके और समाज का सर्वांगीण विकास कर सके।
शब्दार्थ
- परंपरा– प्रथा
- डेवलपमेंट विकास– अटूट- न टूटने वाला
- वसीयत– लंबी यात्रा पर जाने से पूर्व या मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति के प्रबंध
- नमाज़ी– नियमित रूप से नमाज़ पढ़ने वाला
- करबेला- इस्लाम का एक पवित्र स्थान
- सदका- एक टोटका
- चेचक– एक संक्रामक रोग जिसमें बुखार के साथ पूरे शरीर पर दाने निकल आते हैं
- पूरबी- पूरब की तरच की बोली जाने वाली भाषा
- कस्टोडियन- जिस संपत्ति पर किसी का मालिकाना हक न हो
- बीजू पेड़– आम की गुठली से उगाया गया आम का पेड़
- बेशुमार- बहुत सारी
- बाजी– बड़ी बहन
- कचहरी- न्यायालय
- पाक– पवित्र
- मुल्क- देश
- अलबत्ता– बल्कि
- अमावट– पके आम के रस को सुखाकर बनाई मोटी परत
पाठ का सार
‘टोपी शुक्ला’ कहानी राही मासूम रजा द्वारा लिखे उपन्यास का एक अंश है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने बताया है कि बचपन में बच्चे को जहाँ से अपनापन और प्यार मिलता है, वह वहीं रहना चाहता है। टोपी को बचपन में अपनापन अपने परिवार की नौकरानी और अपने मित्र की दादी माँ से मिलता है। वह उन्हीं लोगों के साथ रहना चाहता है।