पाठ- 2 सपनों के से दिन

गुरु दयाल सिंह

लेखक परिचय

गुरदयाल सिंह(10 जनवरी 1933-16 अगस्त 2016) एक पंजाबी साहित्यकार थे जो उपन्यास और कहानी लेखक थे। इन्हें 1999 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपनी प्रथम कहानी भागों वाले प्रो. मोहन सिंह के साहित्य मैगजीन पंज दरिया में प्रकाशित की थउनके पंजाबी साहित्य में आने से पंजाबी उपन्यास में बुनियादी तबदीली आई थी। उनके उपन्यास मढ़ी दा दीवा, अंधे घोड़े का दान का सभी पंजाबी भाषाओँ में अनुवाद हो चुक्का है और इन की कहाँनीयों पर अधारत फ़िल्में भी बनी हैं।

पाठ-प्रवेश

बचपन में भले ही सभी सोचते हों की काश! हम बड़े होते तो कितना अच्छा होता। परन्तु जब सच में बड़े हो जाते हैं, तो उसी बचपन की यादों को याद कर-करके खुश हो जाते हैं। बचपन में बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो उस समय समझ में नहीं आती क्योंकि उस समय सोच का दायरा सिमित होता है। और ऐसा भी कई बार होता है कि जो बातें बचपन में बुरी लगती है वही बातें समझ आ जाने के बाद सही साबित होती हैं।

प्रस्तुत पाठ में भी लेखक अपने बचपन की यादों का जिक्र कर रहा है कि किस तरह से वह और उसके साथी स्कूल के दिनों में मस्ती करते थे और वे अपने अध्यापकों से कितना डरते थे। बचपन में लेखक अपने अध्यापक के व्यवहार को नहीं समझ पाया था उसी का वर्णन लेखक ने इस पाठ में किया है।

शब्दार्थ-

  • ट्रेनिंग- प्रशिक्षण
  • लंडे हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि
  • बहियाँ- खाता
  • खेडण– खेलने
  • श्रेणी– कक्षा
  • ननिहाल– नानी का घर
  • खाल खींचना– पिटाई करना
  • पीटी शिक्षक– शारीरिक शिक्षा के अध्यापक
  • चपत- थप्पड़
  • सतिगुर– सच्चा गुरु
  • धनाढ्य– अमीर
  • मनोविज्ञान– मन का विज्ञान
  • हरफनमौला- विद्वान
  • अढे- यहाँ
  • उठै- वहाँ
  • लीतर- टूटे हुए पुराने खस्ताहाल जूते
  • मुअत्तल- निलंबित
  • महकमाएँ- तालीम – शिक्षा विभाग
  • अलौकिक- अनोखा

पाठ का केन्द्रीय भाव

हम बड़े होते तो कितना अच्छा होता। परन्तु जब सच में बड़े हो जाते हैं, तो उसी बचपन की यादों को याद कर-करके खुश हो जाते हैं... प्रस्तुत पाठ में भी लेखक अपने बचपन की यादों का जिक्र कर रहा है कि किस तरह से वह और उसके साथी स्कूल के दिनों में मस्ती करते थे और वे अपने अध्यापकों से कितना डरते थे। फिर भी स्कूल का टास्क बनाने के बजाय खेलने निकल जाया करते थे। लेखक बचपन में यह सब नहीं समझ पाए थे। इस तरह से बचपन की खट्टी -मीठी यादें मनुष्य को सदा जीवंत बनाए रखती हैं।