पाठ -10 बड़े भाई साहब

प्रेमचंद(1880-1936)

लेखक परिचय

इनका जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गाँव में हुआ। इनका मूल नाम धनपत राय था परन्तु इन्होनें उर्दू में नबाव राय और हिंदी में प्रेमचंद नाम से काम किया। निजी व्यवहार और पत्राचार ये धनपत राय से ही करते थे। आजीविका के लिए स्कूल मास्टरी, इंस्पेक्टरी, मैनेजरी करने के अलावा इन्होनें ‘हंस’ ‘माधुरी’ जैसी प्रमुख पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। ये अपने जीवन काल में ही कथा सम्राट और उपन्यास सम्राट कहे जाने लगे थे।

पाठ प्रवेश

अभी तुम छोटे हो इसलिए इस काम में हाथ मत डालो। यह सुनते हो कई बार बच्चों के मन में आता है काश, हम बड़े होते तो कोई हमें यों न टोकता। लेकिन इस मुलाके में न रहिएगा, क्योंकि बड़े होने से कुछ भी करने का अधिकार नहीं मिल जाता। घर के बड़े को कई बार तो उन कामों में शामिल होने से भी अपने को रोकना पड़ता है जो उसी उम्र के और लड़के बेधड़क करते रहते हैं। जानते हो क्यों, क्योंकि वे लड़के अपने घर में किसी से बड़े नहीं होते।

प्रस्तुत पाठ में भी एक बड़े भाई साहब हैं, जो हैं तो छोटे ही, लेकिन घर में उनसे छोटा एक भाई और है। उससे उम्र में केवल कुछ साल बड़ा होने के कारण उनसे बड़ी-बड़ी अपेक्षाएँ की जाती हैं। बड़ा होने के नाते वह खुद भी यही चाहते और कोशिश करते हैं कि वह जो कुछ भी करें वह छोटे भाई के लिए एक मिसाल का काम करे। इस आदर्श स्थिति को बनाए रखने के फेर में बड़े भाई साहब का बचपना तिरोहित हो जाता है।

शब्दार्थ

  • तालीम- शिक्षा
  • पुख्ता- मजबूत
  • सामंजस्य- तालमेल
  • तम्बीह- डाँट डपट
  • मसलन- उदाहरणत:
  • इबारत- लेख
  • कोशिश- चेष्टा
  • जमात- कक्षा
  • हर्फ़- अक्षर
  • मिहनत(मेहनत)- परिश्रम
  • लताड़- डाँट-डपट
  • योजना- स्कीम
  • अमल करना- पालन करना
  • सूक्ति बाण- व्यंग्यात्मक कथन/तीखी बातें
  • अवहेलना- तिरस्कार
  • नसीहत- सलाह
  • फ़जीहत- अपमान
  • तिरस्कार- उपेक्षा
  • सालाना इम्तिहान- वार्षिकपरीक्षा
  • लज्जास्पद- शर्मनाक
  • शरीक- शामिल
  • आतंक- भय
  • अव्वल- प्रथम
  • ववाद- कार्यक्रम
  • आधिपत्य- साम्राज्य
  • महीप- राजा
  • कुकर्म- बुरा काम
  • अभिमान- घमंड
  • मुमतहीन- परीक्षक
  • प्रयोजन- उद्देश्य
  • खुराफात- व्यर्थ की बातें
  • हिमाकत- व्यर्थ की बातें
  • किफ़ायत- बचत से
  • दुरुपयोग- अनुचित उपयोग
  • निःस्वाद- बिना स्वाद का
  • ता़ज्जुब- आश्चर्य
  • टास्क- कार्य
  • जलील- अपमानित
  • प्राणांतक- प्राण लेने वाला
  • कांतिहीन- चेहरे पर चमक न होना
  • स्वच्छंदता- आजादी
  • सहिष्णुता- सहनशीलता
  • कनकौआ- पतंग
  • अदब- इज्जत
  • ज़हीन- प्रतीभावान
  • त़जुरबा- अनुभव
  • बदहवास- बेहाल
  • मुहताज- दूसरे पर आश्रित

पाठ के सार

बड़े भाई साहब’ कहानी प्रेमचंद द्वारा रचित है। प्रेमचंद की कहानियाँ हमेशा शिक्षाप्रद रही हैं। उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से किसी-न-किसी समस्या पर प्रहार किया है। बड़े भाई साहब समाज में समाप्त हो रहे, कर्तव्यों के अहसास को दुबारा जीवित करने का प्रयास मात्र है। इस कहानी में बड़े भाई साहब अपने कर्तव्यों को संभालते हुए, अपने भाई के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं। उनकी उम्र इतनी नहीं है, जितनी उनकी ज़िम्मेदारियाँ है। लेकिन उनकी ज़िम्मेदारियाँ उनकी उम्र के आगे छोटी नज़र आती हैं। वह स्वयं के बचपन को छोटे भाई के लिए तिलाजंलि देते हुए भी नहीं हिचकिचाते हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि उनके गलत कदम छोटे भाई के भविष्य को बिगाड़ सकते हैं। वह अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते। एक चौदह साल के बच्चे द्वारा उठाया गया कदम छोटे भाई के उज्जवल भविष्य की नींव रखता है। यही आदर्श बड़े भाई को छोटे भाई के सामने और भी ऊँचा बना देते हैं। यह कहानी सीख देती है कि मनुष्य उम्र से नहीं अपने किए गए कामों और कर्तव्यों से बड़ा होता है। वर्तमान युग में मनुष्य विकास तो कर रहा है परन्तु आदर्शों को भुलता जा रहा है। भौतिक सुख एकत्र करने की होड़ में हम अपने आदर्शों को छोड़ चुके हैं। हमारे लिए आज भौतिक सुख ही सब कुछ है। अपने से छोटे और बड़ों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियाँ हमारे लिए आवश्यक नहीं प्रेमचंद ने इन्हें कर्तव्यों के महत्व को सबके सम्मुख रखा है।