परिभाषा, उदाहरण, भेद
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- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
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- Hindi ki pathshala
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- CBSE Class 10
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पाठ 1: पदबंध
जब कभी एक- से अधिक पद जुड़कर एक ही व्याकरणिक इकाई का काम करते हैं, तब ऐसे पद समूह को पदबंध की संज्ञा दी जाती है।
पदबंध पांच प्रकार के होते हैं-
[1]
संज्ञा पदबंध-जहां एक से अधिक शब्द संज्ञा का काम करें, उस पद समूह को संज्ञा पदबंध कहा जाता है।
जैसे-बराबर के कमरे में रहने वाला आदमी छत से गिर पड़ा।
परिश्रम करने वाले छात्र उत्तीर्ण हो जाएंगे।
उपर्युक्त दोनों उदाहरण में मोटे छपे अंश संज्ञा पदबंध हैं।
[2]
सर्वनाम पदबंध-जो पद समूह सर्वनाम का काम करें उसे सर्वनाम पदबंध कहते हैं।
जैसे-मौत से टकराने वाला वह मर नहीं सकता।
आपके मित्रों में से कोई समय पर ना पहुंचा।
उपर्युक्त उदाहरण में काले मोटे अंश वाले शब्द सर्वनाम पदबंध के उदाहरण हैं।
[3]
विशेषण पदबंध-जहां एक से अधिक शब्द मिलकर किसी संज्ञा की या सर्वनाम की विशेषता प्रकट करें उन्हें विशेषण पदबंध कहते हैं।
जैसे-सामने के कमरे में रहने वाला आदमी आज नहीं दिखा।
मेरे कानपुर वाले मित्र ने मुझे एक मोटी पुस्तक भेजी ।
उपर्युक्त उदाहरण में काले मोटे छपे अंश विशेषण पदबंध के उदाहरण हैं।
[4]
क्रिया पदबंध-जहां एक से अधिक पद मिलकर क्रिया का कार्य कर रहे हों, वहां क्रिया पदबंध होता है।
जैसे-वह गाता हुआ जा रहा है।
बालक खेल रहा है।
उपर्युक्त उदाहरण में काले मोटे छपे अंश क्रिया पदबंध के उदाहरण हैं।
[5]
क्रिया विशेषण पदबंध-जहां एक से अधिक शब्द क्रिया विशेषण का काम करे, वहां क्रिया विशेषण पदबंध होता है।
जैसे- इस कार्यक्रम की समाप्ति पर हम आपके पास आएंगे।
ऐसा होने पर भी उसने हमारा कार्य कर दिया।
उपर्युक्त उदाहरण में काले मोटे छपे अंश क्रियाविशेषण पदबंध के उदाहरण हैं।
परिभाषा, रूपांतरण, भेद, उदाहरण
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पाठ 2: रचना के आधार पर वाक्य भेद
रचना के अनुसार वाक्य चार प्रकार के होते हैं-
- सरल वाक्य
- संयुक्त वाक्य
- मिश्रित वाक्य
- संमिश्र वाक्य
सरल वाक्य- जिस वाक्य में एक ही उद्देश्य तथा एक ही विधेय हो, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं।
जैसे-
(i) अशोक पुस्तक पढ़ता है।
(ii) मोहन खेलता है।
संयुक्त वाक्य - जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य स्वतन्त्र रूप से समुच्चय बोधक अथवा योजक द्वारा मिले हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।
जैसे-
(i)अशोक पुस्तक पढ़ता है, परन्तु शीला नहीं पढ़ती ।
(ii)अशोक पुस्तक पढ़ता है और शीला लेख लिख रही है।
ऊपर के दोनों वाक्य संयुक्त वाक्य हैं। पहला वाक्य परन्तु तथा दूसरा और समुच्चय बोधक अव्ययों द्वारा संयुक्त किए गए हैं।
मिश्रित वाक्य- जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्रित वाक्य कहा जाता है।
जैसे-खाने-पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने ।
खाने-पीने का मतलब है = स्वतन्त्र या प्रधान उपवाक्य
कि = समुच्चय बोधक या योजक।
मनुष्य स्वस्थ बने = आश्रित उपवाक्य ।
संमिश्र वाक्य – जिस वाक्य में दो मुख्य उपवाक्य हों और एक या अधिक आश्रित वाक्य हों अर्थात् मिश्रित और संयुक्त वाक्य का जहां मिश्रण हो, वहां समिश्र वाक्य होता है।
जैसे- सभ्यता के साथ व्यवहार करो,जिससे सब तुम्हारा सम्मान करें और तुम्हारी उन्नति के लिए शुभ कामना करें।
सभ्यता के साथ व्यवहार करो, जिससे सब तुम्हारा सम्मान करें। =मिश्रित वाक्य
और तुम्हारी उन्नति के लिए शुभ कामना करें।=संयुक्त वाक्य
परिभाषा, उदाहरण, भेद, नियम
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पाठ 3: समास
समास’ के निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे राजपुत्र।
समास-विग्रह
सामासिक शब्दों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करना समास विग्रह कहलाता है | विग्रह के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाता है जैसे-राज + पुत्र- राजा का पुत्र |
पूर्वपद और उत्तरपद
समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं ।
जैसे-गंगाजल गंगा+जल, जिसमें गंगा पूर्व पद है, और जल उत्तर पद। इसमें गंगा पूर्वपद और जल उत्तरपद है।
समास के भेद
समास के छः भेद हैं:
- अव्ययीभाव
- तत्पुरुष
- कर्मधारय
- द्विगु
- द्वन्द्व
- कर्मधारय
अव्ययीभाव समास- जिस समास का पहला खण्ड प्रधान , वह अव्ययीभाव समास होता है। इसमें समस्त पद बन जाता है और विभक्ति चिह्न नहीं लगता ।
- जैसे
- क्षण-क्षण = प्रतिक्षण
- यथाशक्ति =शक्ति के अनुसार
- यथामति = मति केअनुसार
- यथाविधि= विधि के अनुसार
- हाथोंहाथ =हाथ-हाथ में
तत्पुरुष समास- जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे
- तुलसीदासकृत = तुलसीदास द्वारा कृत(रचित)
- ज्ञातव्य विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं
- कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह) (गिरहकट गिरह को काटने वाला)
- करण तत्पुरुष (मनचाहा – मन से चाहा )
- संप्रदान तत्पुरुष (रसोईघर- रसोई के लिए घर)
- अपादान तत्पुरुष (देशनिकाला देश से निकाला )संबंध तत्पुरुष (गंगाजल – गंगा का जल)
- अधिकरण तत्पुरुष (नगरवास – नगर में वास)
कर्मधारय समास- जिस सामासिक शब्द का उत्तर पद प्रधान हो तथा पूर्व पद एवं उत्तर पद में विशेषण- विशेष्य, उपमान- उपमेय का सम्बन्ध हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं;
जैसे-
- वचनामृत = वचन रूपी अमृत
- कमलचरण = कमल जैसे चरण
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
- घनश्याम = घन जैसा श्याम
- आशा-किरण = आशा रूपी किरण
- आशालता = आशा रूपी लता
द्विगु समास - यह समास का दूसरा पद प्रधान हो और पहला पद संख्यावाची विशेषण हो, उसे दिगु समास कहते हैं
जैसे
- सप्तसिंधु=सात सिंधुओं का समूह
- चौराहा-चौराहों का समाहार
- नवग्रह- नौ ग्रहों का समूह
द्वन्द्व समास- जिस समास के दोनों खण्ड प्रधान हो परन्तु विग्रह करने पर जिसमें और प्रयोग होता है।
जैसे-
- माता-पिता=माता और पिता
- धर्माधर्म= धर्म और अधर्म
- सुख-दुःख =सुख और दुःख
बहुब्रीहि समास- जिस समास का कोई भी खण्ड प्रधान न हो,बल्कि समस्त शब्द अपने खण्डों या किसी अन्य पद का विशेषण हों अर्थात् जिससे किसी अन्य अर्थ का बोध हो।
जैसे-
- दशानन = दश आननों वाला (रावण)
- पीताम्बर = पीले अम्बरों वाला(श्रीकृष्ण)
- गजानन = गज (हाथी) के समान है आनन (मुंह) जिसका(गणेश)
परिभाषा, उदाहरणअर्थ प्रयोग
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पाठ 4: मुहावरे
मुहावरे की परिभाषा
मुहावरा एक ऐसा वाक्य होता है जो वाक्य की रचना करने पर अपना एक अलग अर्थ या विशेष अर्थ प्रकट करता है इनका प्रयोग करने से भाषा,आकर्षक, प्रभावपूर्ण तथा रोचक बन जाती है
उनके अर्थ और वाक्य प्रयोग
अंक में समेटना–(गोद में लेना, आलिंगनबद्ध करना)
शिशु को रोता हुआ देखकर माँ का हृदय करुणा से भर आया और उसने उसे अंक में समेटकर चुप किया।
अंकुश लगाना–(पाबन्दी या रोक लगाना)
राजेश खर्चीला लड़का था। अब उसके पिता ने उसका जेब खर्च बन्द करके उसकी फ़िजूलखर्ची पर अंकुश लगा दिया है।
मुहावरों में अलंकारों का प्रयोग
अनेक मुहावरों में अलंकारों का प्रयोग होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की प्रत्येक मुहावरा अलंकार होता है या प्रत्येक अलंकारयुक्त वाक्यांश मुहावरा होता है।
- सादृश्यमूलक मुहावरे:- लाल अंगारा होना (उपमा) , पैसा ही पुरुषत्व और पुरुषत्व ही पैसा है (उपमेयोपमा), अंगार बरसाना (रूपक) , सोना सोना ही है (अनन्वय)।
- विरोधामूलक मुहावरे :- इधर-उधर करना, उंच-नीच देखना, दाएं-बाएं न देखना , पानी से प्यास न बुझना।
- सन्निधि अथवा स्मृतिमूलक मुहावरे :- चूड़ी तोडना, चूड़ा पहनाना , दिया गुल होना , दुकान बढ़ाना, मांग-कोख से भरी-पूरी रहना।
- शब्दालंकारमूलक मुहावरे :- अंजर-पंजर ढीले होना , आंय-बांय-सांय बकना , कच्चा-पक्का, देर-सवेर।
मुहावरे की विशेषताएं
- मुहावरे का प्रयोग वाक्य के प्रसंग में किया जाता है अलग नहीं।
- मुहावरा अपना असली रूप कभी नहीं बदलता है । उसे पर्यायवाची शब्दों में अनुदित नहीं किया जा सकता है।
- मुहावरे का शब्दार्थ ग्रहण नहीं किया जाता है उसका केवल विशेष अर्थ ही ग्रहण किया जाता है।
- मुहावरे का अर्थ प्रसंग के अनुसार ही निश्चित होता है।
अर्थ, मुख्य विषय,लेखन शैली, मुख्य विषय,वाक्य से संबंध, केंद्रीय भाव, संकेत बिंदु
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पाठ 5: अनुच्छेद लेखन
अनुच्छेद लेखन का अर्थ-
किसी एक विषय पर लिखे गए अपने भाव या विचार से संबंद्ध तथा लघु- वाक्य समूह को अनुच्छेद लेखन कहते हैं।
अनुच्छेद की भाषा
अनुच्छेद की भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए।
वर्तनी एवं विराम चिन्ह
अनुच्छेद लेखन में शुद्ध वर्तनी और विराम चिन्ह का उचित प्रयोग होना चाहिए ताकि भाषा स्पष्ट हो जाए।
शुद्ध भाषा का प्रयोग
अनुच्छेद लेखन में व्याकरण के नियमों के अनुसार शुद्ध भाषा का प्रयोग होना चाहिए ताकि अनुच्छेद प्रभावशाली हो।
अनुच्छेद लेखन की प्रमुख विशेषताएं-
अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक ही बार एक स्थान पर व्यक्त करता है इसमें अन्य तथ्य की जानकारी नहीं होती।
उदाहरण
मुख्य विषय
(वन और पर्यावरण का सम्बन्ध)
संकेत-बिंदु –
- वन प्रदुषण-निवारण में सहायक,
- वनों की उपयोगिता, वन संरक्षण की आवश्यकता,
- वन संरक्षण के उपाय।
वन और पर्यावरण का बहुत गहरा सम्बन्ध है। प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए पृथ्वी के 33% भाग को अवश्य हरा-भरा होना चाहिए। वन जीवनदायक हैं। ये वर्षा कराने में सहायक होते हैं। धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। वनों से भूमि का कटाव रोका जा सकता है। वनों से रेगिस्तान का फैलाव रुकता है, सूखा कम पड़ता है। वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों के भण्डार हैं। वनों से हमें लकड़ी, फल, फूल, खाद्य पदार्थ, गोंद तथा अन्य प्राप्त होते हैं। आज भारत में दुर्भाग्य से केवल 23% वन बचे हैं। जैसे-जैसे उद्योगों को संख्या बढ़ रही है, शहरीकरण हो रहा है, वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता और बढ़ती जा रही है। वन संरक्षण एक कठिन एवं महत्वपूर्ण काम है। इसमें हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी और अपना योगदान देना होगा। अपने घर-मोहल्ले, नगर में अत्यधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिए।
शब्दों की संख्या
अनुच्छेद लेखन में शब्दों की सीमित संख्या होती है, जिसे 80 से 100 शब्दों के बीच रखा जाता है।
पत्र लेखन की विशेषताएं, पत्र के अंग, पत्र के प्रकार
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पाठ 6: पत्र लेखन
पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं
पत्र लेखन से संबंधित अनेक महत्व है, परन्तु इन महत्व का लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब पत्र एक आदर्श पत्र की भांति लिखा गया हो।
भाषा सरल एवं स्पष्ट- पत्र के अन्तर्गत भाषा एक विशेष तत्व है। पत्र की भाषा शिष्ट व नर्म होनी चाहिए। क्योंकि नर्म एवं शिष्ट पत्र ही पाठक को प्रभावित कर सकते हैं।
संक्षिप्त- मुख्य बातों को बिना संकोच के लिखा जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से लंबे शब्दों को लिखने का परित्याग किया जाना चाहिए।
मौलिकता- पत्र की भाषा पूर्ण मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप लिखा होना चाहिए।
पत्र के अंग
प्रेषक का पता और तिथि― पत्र – लेखन के लिए जिस कागज का प्रयोग किया जाता है उसके उपर के स्थान पर दाहिनी और प्रेषक का पता एवं पत्र लेखन की तिथि का उल्लेख होना चाहिए।
मूल संबोधन – पत्र के बायीं और घनिष्ठता, श्रद्धा या स्नेह-सूचक संबोधन होना चाहिए। जैसे- पूज्य, माननीय, श्रद्धेय, श्रीमान् आदि।
पत्र के निम्न दो प्रकार होते है –
- औपचारिक पत्र (Formal Letter)
- अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)
औपचारिक पत्र- सरकारी तथा व्यावसायिक कार्यों से संबंध रखने वाले पत्र औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आते है। इसके अतिरिक्त इन पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को भी शामिल किया जाता है।
- प्रार्थना पत्र
- निमंत्रण पत्र
- सरकारी पत्र
- गैर सरकारी पत्र
- व्यावसायिक पत्र
औपचारिक पत्र का प्रारूप
अनौपचारिक पत्र- इन पत्रों के अन्तर्गत उन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने प्रियजनों को, मित्रों को तथा सगे-संबंधियों को लिखे जाते है।
उदहारण के रूप में – पुत्र द्वारा पिता जी को अथवा माता जी को लिखा गया पत्र, भाई-बंधुओ को लिखा जाना वाला, किसी मित्र की सहायता हेतु पत्र, बधाई पत्र, शोक पत्र, सुखद पत्र इत्यादि ।
अनौपचारिक पत्र का प्रारूप
उदाहरण
औपचारिक पत्र
बड़े भाई के विवाह पर अवकाश के लिए मुख्याध्यापक के नाम प्रार्थना पत्र
सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदया,
नगर निगम विद्यालय, उत्तम नगर, दिल्ली
महोदया
…सविनेय निवेदन इस प्रकार है कि 29.8… के दिन मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह होने जा रहा है। बारात दिल्ली से लखनऊ जाएगी। बारात में जाने के कारण में 29.8… तक कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकता।
विनम्र प्रार्थना है कि इन तीन दिनों का अवकाश प्रदान कर मुझे कृतार्थ करें।
आपकी आज्ञाकारी शिष्या
भावना
दिनांक- 25 अगस्त
कक्षा: छठी ‘अ’
अनौपचारिक पत्र
पिता का पुत्र को पत्र
दिनांक : 4 जुलाई, 20xx
प्रिय पुत्र विजय
चिरंजीव रहो!
तुम्हारा पत्र कल मुझे मिल गया था। मुझे यह पढ़कर बहुत खुशी हुई कि तुमने नई कक्षा में प्रवेश ले लिया है और पुस्तकें भी खरीद ली हैं। अब तुम्हें खूब मन लगाकर पढ़ना चाहिए ताकि कक्षा में प्रथम आ सको। मैं छुट्टियों में अवश्य घर आऊँगा। आने से पूर्व पत्र लिख दूंगा। घर में सबको प्यार एवं आशीर्वाद।
तुम्हारा शुभाकांक्षी
रघुबर दत्त
गांधी नगर, मेरठ
परिभाषा, प्रकार, प्रारूप, उदाहरण
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पाठ 7: विज्ञापन लेखन
विज्ञापन लेखन की परिभाषा –
विज्ञापन शब्द दो शब्दों के मेल से बना है।
वि+ज्ञापन
वि का अर्थ होता है विशेष और ज्ञापन का अर्थ होता है सार्वजनिक सूचना।
ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करके अपनी वस्तु को बेचना विज्ञापन इसका माध्यम है।
विज्ञापन के प्रकार
- स्थानीय विज्ञापन
- राष्ट्रीय विज्ञापन
- वर्गीकृत विज्ञापन
- औद्योगिक विज्ञापन
- जनकल्याण संबंधित विज्ञापन
- सूचना प्रद विज्ञापन
विज्ञापन लेखन के स्वरूप
विज्ञापन को एक बॉक्स बनाकर कुछ आकर्षित चित्रों और आकर्षित भाषा शैली के साथ लिखते है ताकि विज्ञापन प्रभावशाली लगे।
उदाहरण
नटराज पेंसिल के लिए 25 से 30 शब्दों में एक आकर्षक विज्ञापन तैयार करें।
विज्ञापन लेखन की विशेषताएं-
विज्ञापन को एक प्रभावशाली ढंग से लिखना चाहिए। विज्ञापन जितना ही प्रभावशाली होगा वस्तुओं की बिक्री उतनी ही अधिक होगी।
परिभाषा, प्रकार, प्रारूप, उदाहरण
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पाठ 8: सूचना लेखन
सूचना लेखन की परिभाषा
किसी विशेष सूचना को सार्वजनिक करना सूचना लेखन कहलाता है। दूसरे शब्दों में- दिनांक और स्थान के साथ भविष्य में होने वाले कार्यक्रमों आदि के विषय में दी गई लिखित जानकारी ‘सूचना’ कहलाती है। सरल शब्दों में- संबंधित व्यक्तियों को विशेष जानकारी देना ही सूचना लेखन कहलाता है।
सूचना लेखन के प्रकार
- सुखद सूचना
- दुखद सूचना
सूचना लेखन के प्रारूप
सबसे पहले ऊपर केंद्र में शीर्षक के रूप में ‘सूचना’लिखा जाना चाहिए।
- सूचना प्रसारित कराने वाली संस्था का नाम
- दिनांक
- विषय
- सूचना का लेखन
- सूचना देने वाले का पद
- सूचना देने वाले का नाम
- यदि आवश्यक हो तो सूचना देने वाले का पता
प्रारूप का नमूना
सूचना लेखन के उद्देश्य
- सार्वजनिक रूप से सभी लोगों को एक साथ सूचना यानी जानकारी देना।
- किसी महत्त्वपूर्ण घटना या कार्यक्रम के बारे में पूर्व जानकारी उपलब्ध कराना।
- सूचना का उद्देश्य किसी विषय के बारे में अखबारी, पत्र-पत्रिकाओं आदि के माध्यम से सभी लोगों को सूचित करना होता है।
- सूचना लेखन का उद्देश्य संक्षिप्त में पूरी सूचना अथवा जानकारी लोगों को प्रदान करना होता है।
- जैन भारती पब्लिक स्कूल, पीतमपुरा, दिल्ली
उदहारण
(सूचना)
दिनांक 11 मार्च, 20XX
वार्षिक समारोह का आयोजन
सभी विद्यार्थियों को यह सूचित किया जाता है कि 5 अप्रैल, 20XX को हमारे विद्यालय में बीसवें वार्षिकोत्सव का आयोजन किया जाएगा। सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा अन्य प्रतियोगिताओं में भाग लेने के इच्छुक विद्यार्थी 2 अप्रैल, 20XX तक संगीत शिक्षिका श्रीमती छाया यादव को संपर्क कर सकते हैं।
अमित सक्सेना
स्कूल कैप्टन
सूचना की विशेषताएं-
सूचनाएं हमेशा औपचारिक होती है। सूचना में समय और तारीख का बहुत महत्व होता है। सूचनाएं किस विषय पर है और यह किस लिए लिखा जा रहा है, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सूचना लिखते समय हमें स्थान और पता का सही रूप से वर्णन करना चाहिए ताकि सूचना प्राप्त करने वाले व्यक्ति को सूचना के बारे में स्पष्ट रूप से जानकारी मिले।
लघु कथा लेखन, परिभाषा, प्रारूप, प्रकार, गुण, उदाहरण
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पाठ 9: लघु कथा लेखन
जीवन के किसी एक सूचना को रोचक और संक्षिप्त रूप में वर्णित करना लघु कथा लेखन कहलाता है।
लघु कथा लेखन की परिभाषा
कहानी लिखना एक कला है। हर कहानी-लेखक अपने ढंग से कहानी लिखकर उसमें विशेषता पैदा कर देता है। वह अपनी कल्पना और वर्णन-शक्ति से कहानी के कथानक, पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है। लेखक की भाषा-शैली पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है कि कहानी कितनी अच्छी लिखी गई है।
लघुकथा लेखन लिखने की विधियां
दी गई रूपरेखा अथवा संकेतों के आधार पर ही कहानी का विस्तार करना चाहिए।
कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार देना चाहिए। किसी प्रसंग को न बहुत अधिक संक्षिप्त लिखना चाहिए, न अनावश्यक रूप से बहुत अधिक बढ़ाना चाहिए ।
कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार देना चाहिए। किसी प्रसंग को न बहुत अधिक संक्षिप्त लिखना चाहिए, न अनावश्यक रूप से बहुत अधिक बढ़ाना चाहिए ।
कहानी का आरम्भ आकर्षक होना चाहिए ताकि कहानी पढ़ने वाले का मन उसे पढ़ने में लगा रहे ।
कहानी की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रभावशाली होनी चाहिए। उसमें बहुत अधिक कठिन शब्द तथा लम्बे वाक्य नहीं होनी चाहिए ।
कहानी को उपयुक्त एवं आकर्षक शीर्षक देना चाहिए ।
कहानी को प्रभावशाली और रोचक बनाने के लिए मुहावरों व् लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया जा सकता है।
कहानी हमेशा भूतकाल में ही लिखी जानी चाहिए ।
कहानी का अंत सहज ढंग से होना चाहिए।
अंत में कहानी से मिलने वाली सीख स्पष्ट व् संक्षिप्त होनी चाहिए।
लघु कथा लेखन की विशेषताएं
कहानी की भाषा सरल एवं सारगर्भित होनी चाहिए। कहानी रोचक होनी चाहिए एवं उसके साथ - साथ कहानी के अंत में उसके सीख को भी बताना आवश्यक होता है।
उदाहरण
एकता में बल
एक था किसान। उसके चार लड़के थे। पर उन लड़कों में मेल नहीं था। वे आपस में बराबर लड़ते-झगड़ते रहते थे। एक दिन किसान बहुत बीमार पड़ा। जब वह मृत्यु के निकट पहुँच गया, तब उसने अपने चारों लड़कों को बुलाया और मिल-जुलकर रहने की शिक्षा दी।
किन्तु लड़कों पर उसकी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब किसान ने लकड़ियों का गट्ठर माँगवाया और लड़कों को तोड़ने को कहा। किसी से वह गट्ठर न टूटा। फिर, लकड़ियाँ गट्ठर से अलग की गयीं।
किसान ने अपने सभी लड़कों को बारी-बारी से बुलाया और लकड़ियों को अलग-अलग तोड़ने को कहा। सबने आसानी से लकड़ियों को तोड़ दिया। अब लड़कों की आँखें खुलीं । तभी उन्होंने समझा कि आपस में मिल-जुलकर रहने में कितना बल है ।