पाठ-11 डायरी का एक पन्ना

सीताराम सेकसरिया

लेखक – परिचय

1892 में राजस्थान के नवलगढ़ में जन्मे सीताराम सेकसरिया का अधिकांश जीवन कलकत्ता (कोलकाता) में बीता। व्यापार-व्यवसाय से जुड़े सेकसरिया अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थाओं के प्रेरक, संस्थापक,संचालक रहे।

महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस के करीबी रहे। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल यात्रा भी की। कुछ साल तक आज़ाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया।

सीताराम सेकसरिया को विद्यालयी शिक्षा पाने का अवसर नहीं मिला। स्वाध्याय से ही पढ़ना-लिखना सीखा। स्मृतिकण, मन की बात, बीता युग, याद और दो भागों में एक कार्यकर्ता की डायरी उनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं। नयी

पाठ -प्रवेश

अंग्रेजों से देश को मुक्ति दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की अलख जगाई। देश भर से ऐसे लाखों लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर थे। 26 जनवरी 1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। यह सिलसिला आगे भी जारी रहा। आज़ादी के ढाई साल बाद, 1950 में यही दिन हमारे अपने गणतंत्र के लागू होने का दिन भी बना।

प्रस्तुत पाठ के लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की कामना करने वाले उन्हीं अनंत लोगों में से एक थे। वह दिन-प्रतिदिन जो भी देखते, सुनते और महसूस करते थे, उसे अपनी निजी डायरी में दर्ज कर लेते थे। यह क्रम कई वर्षों तक चला। इस पाठ में उनकी डायरी का 26 जनवरी 1931 का लेखाजोखा है।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता (कोलकाता) के लोगों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस जोश-खरोश से मनाया, अंग्रेज़ प्रशासकों ने इसे उनका अपराध मानते हुए उन पर और विशेषकर महिला कार्यकर्ताओं पर कैसे-कैसे जुल्म ढाए, यही सब इस पाठ में वर्णित है। यह पाठ हमारे उन शहीद क्रांतिकारियों की कुर्बानियों की याद तो दिलाता ही है, साथ ही यह भी उजागर करता है कि एक संगठित समाज कृतसंकल्प हो तो ऐसा कुछ भी नहीं जो वह न कर सके।

शब्दार्थ

  • पुनरावृत्ति- फिर से आना
  • अपने/अपनाहम/हमारे/मेरा (लेखक के लेखन शैली का उदाहरण)
  • गश्त- पुलिस कर्मचारी का पहरे के लिए घूमना
  • सारजेंट- सेना में एक पद
  • मोनुमेंट- स्मारक
  • कौंसिल- परिषद्
  • चौरंगी- कलकत्ता (कोलकाता) शहर में एक स्थान का नाम
  • वैलेंटियर- स्वयंसेवक
  • संगीन- गंभीर
  • मदालसा- जानकीदेवी एवं जमना लाल बजाज की पुत्री का नाम

पाठ का सार

डायरी का एक पन्ना सीताराम सेकसरिया द्वारा लिखित एक संस्मरण है,जो हमें 1930-31के आस पास हो रही राजनीतिक हलचल के बारे में बताता है। इस पाठ में लेखक की डायरी में 26जनवरी 1931दिन का लेखा जोखा है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस और स्वयं लेखक सहित कलकत्ता के लोगों ने देश का दूसरा स्वतंत्रता दिवस किस धूमधाम और जोश-खरोश से मनाया यह बताया है। इसमें उस दिन घटित की घटनाओं का वर्णन है, जब बंगाल के लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए अपूर्व जोश दिखाया था। इससे पहले हमेशा यह समझा जाता था कि वहाँ के लोग आज़ादी की लड़ाई लड़ने के इच्छुक नहीं हैं, लेकिन 26 जनवरी 1931को घटी इन घटनाओं द्वारा उन्होंने दिखा दिया कि वे भी किसी से कम नहीं हैं। पुलिस की बर्बरता और कठोरता के बाद भी हजारों लोगों ने स्वाधीनता मार्च में हिस्सा लिया, जिनमें औरतें भी बड़ी संख्या में शामिल थीं। उन्होंने लाठियाँ खायीं,खून बहाया लेकिन फिर भी वे पीछे नहीं हटे और अपना काम करते रहे। एक, डॉक्टर, जो घा की देखभाल कर रहा था,उसने उनके इलाज के साथ उनके फोटो भी लिए ताकि उन्हें अख़बारों में छपवा कर इस घटना को पूरे देश तक पहुँचाया जा सके। साथ ही ब्रिटिश सरकार की क्रूरता को भी दुनिया को दिखाया जा सके।