- Books Name
- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-3 दोहे के बिहारी
कवि परिचय
बिहारी का जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। जब बिहारी सात-आठ साल के थे तभी इनके पिता ओरछा चले आए, जहाँ बिहारी ने आचार्य केशवदास से काव्य शिक्षा पाई। यहीं बिहारी रहीम के संपर्क में आए। बिहारी ने अपने जीवन के कुछ वर्ष जयपुर में भी बिताए। बिहारी रसिक जीव थे ,पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। उनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था।
पाठ प्रवेश
मांजी, पौंछी, चमकाइ, युत प्रतिभा जतन अनेक।
दीरघ जीवन, विविध सुख, रची ‘सतसई’ एक।
बिहारी ने केवल एक ही ग्रंथ की रचना की-‘बिहारी सतसई’। इस ग्रंथ में लगभग सात सौ दोहे हैं।
दोहा जैसे छोटे से छंद में गहरी अर्थव्यंजना के कारण कहा जाता है कि बिहारी गागर में सागर भरने में निपुण थे। उनके दोहों के अर्थगांभीर्य को देखकर कहा जाता है
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर।
बिहारी की ब्रजभाषा मानक ब्रजभाषा है। सतसई में मुख्यतः प्रेम और भक्ति के सारगर्भित दोहे हैं। इसमें अनेक दोहे नीति संबंधी हैं। यहाँ सतसई के कुछ दोहे दिए जा रहे हैं।
बिहारी मुख्य रूप से शृंगारपरक दोहों के लिए जाने जाते हैं, किंतु उन्होंने लोक-व्यवहार, नीति ज्ञान आदि विषयों पर भी लिखा है। संकलित दोहों में सभी प्रकार की छटाएँ हैं। इन दोहों से आपको ज्ञात होगा कि बिहारी कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ भरने की कला में निपुण हैं।
दोहे
सोहत ओढ़ पीतु पटु स्याह सलोने गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात। ।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ ।।
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करें भौंहनु हँसै, दैन कहँ नटि जाइ ||
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह ।।
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबुत तेरो हियौ,मेरे सिर की बात।।
प्रगट भये द्विराज -कुल सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब,केसव केसवराइ।।
जप माला छापै तिलक,सरै न एकौ काम।
मन -कांचे नाचे बृंथा ,सांचैर रांचे रामु।। पर
दोहे का प्रतिपाद्य:-
उत्तर- बिहारी रीतिकाल के सुप्रसिद्ध कवि थे। अपने काव्य में इन्होंने शृंगार और भक्ति के दोहों को स्थान दिया। प्रस्तुत दोहों में कवि ने भगवान श्रीकृष्ण के साँवले-सलोने रूप का मनोहारी वर्णन किया है। गर्मी ने वन को ऐसा तपोवन बना दिया है कि हिरन, बाघ, साँप, मोर जो स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे के शत्रु होते हैं, वे भी इकट्ठे बैठे हैं। गोपियाँ श्रीकृष्ण से बातें करने के लालच में उनकी बाँसुरी छिपा देती हैं। नायक व नायिका का सगे-संबंधियों से घिरे होने पर नेत्रों से वार्तालाप का बखूबी चित्रण किया गया है। जेठ मास की दुपहरी की भीषणता का वर्णन किया गया है। वियोगी नायिका की असमंजसपूर्ण स्थिति का भावपूर्ण वर्णन है। कवि चाहता है कि भगवान कृष्ण व उसके पिता दोनों उसके सभी कष्ट दूर करें। बाहरी ढोंग, आडंबर, दिखावे की अपेक्षा मन में बसे राम की भक्ति द्वारा कार्य है। इस प्रकार हम कह सकते हैं बिहारी गागर में सागर भरने की कला में निपुण हैं।