ततांरा-वामीरो कथा

पाठ -12 ततांरा -वामीरो कथा

लीलाधर मंडलोई(1954)

लेखक- परिचय

इनका जन्म 1954 को जन्माष्टमी के दिन छिंदवाड़ा जिले के एक छोटे से गाँव गुढ़ी में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा भोपाल और रायपुर में हुई। प्रसारण की उच्च शिक्षा के लिए 1987 में कॉमनवेल्थ रिलेशंस ट्रस्ट, लंदन की ओर से   आमंत्रित किये गए। इन दिनों प्रसार भारती दूरदर्शन के महानिदेशक का कार्यभार संभाल रहे हैं।

पाठ- प्रवेश

जो सभ्यता जितनी पुरानी है, उसके बारे में उतने ही ज्यादा किस्से-कहानियाँ भी सुनने को मिलती हैं। किस्से ज़रूरी नहीं कि सचमुच उस रूप में घटित हुए हों। जिस रूप में हमें सुनने या पढ़ने को मिलते हैं। इतना ज़रूर है कि इन किस्सों में कोई न कोई संदेश या सीख निहित होती है। अंदमान निकोबार द्वीपसमूह में भी तमाम तरह के किस्से मशहूर हैं। इनमें से कुछ को लीलाधर मंडलोई ने फिर से लिखा है।

प्रस्तुत पाठ तताँरा-वामीरो कथा इसी द्वीपसमूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित है। उक्त द्वीप में विद्वेष गहरी जड़ें जमा चुका था। उस विद्वेष को जड़ मूल से उखाड़ने के लिए एक युगल को आत्मबलिदान देना पड़ा था। उसी बलिदान की कथा यहाँ बयान की गई है।

प्रेम सबको जोड़ता है और घृणा दूरी बढ़ाती है, इससे भला कौन इनकार कर सकता है। इसीलिए जो समाज के लिए अपने प्रेम का, अपने जीवन तक का बलिदान करता है, समाज उसे न केवल याद रखता है बल्कि उसके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देता। यही वजह है कि तत्कालीन समाज के सामने एक मिसाल कायम करने वाले इस युगल को आज भी उस द्वीप के निवासी गर्व और श्रद्धा के साथ याद करते हैं

शब्दार्थ-

  • लोककथा- जन-समाज में प्रचलित कथा
  • आत्मीय- अपना
  • साहसिक कारनामा- साहसपूर्ण कार्य
  • विलक्षण- असाधारण
  • बयार- शीतल - मंद वायु
  • तंद्रा- एकाग्रता
  • चैतन्य- चेतना
  • विकल- बेचैन/व्याकुल
  • संचार- उत्पन्न होना (भावना का)
  • असंगत- अनुचित
  • सम्मोहित- मुग्ध
  • झुंझलाना- चिढ़ना
  • अन्यमनस्कता- जिसका चित्र कहीं और हो
  • निर्निमेष- बिना पलक झपकाए
  • अचंभित- चकित
  • रोमांचित- पुलकित
  • निश्चल- स्थिर
  • अफवाह- उड़ती खबर
  • उफनना- उबलना
  • निषेध परंपरा- वह परंपरा जिस पर रोक लगी हो
  • शमन- शांत करना
  • घोंपना- भोंकना
  • दरार- रेखा की तरह का लंबा छिद्र जो फटने के कारण पड़ जाता है।

पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ‘तताँरा वामीरो कथा’अंडमान निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप पर केंद्रित है। उस द्वीप पर एक -दूसरे से शत्रुता का भाव अपनी अंतिम सीमा पर पहुँच चूका था। इस शत्रुता की भावना को जड़ से उखाड़ने के लिए एक जोड़े को आत्मबलिदान देना पड़ा था। उसी जोड़े के बलिदान का वर्णन लेखक ने प्रस्तुत पाठ में किया है।

बहुत समय पहले, जब लिटिल अंदमान और कार -निकोबार एक साथ जुड़े हुए थे, तब वहाँ एक बहुत सुंदर गाँव हुआ करता था। उसी गाँव के पास में ही एक सुंदर और शक्तिशाली युवक रहा करता था। जिसका नाम तताँरा था। निकोबार के सभी व्यक्ति उससे बहुत प्यार करते थे। इसका एक कारण था कि तताँरा एक भला और सबकी मदद करने वाला व्यक्ति था। जब भी कोई मुसीबत में होता तो हर कोई उसी को याद करता था और वह भी भागा -भागा वहाँ उनकी मदद करने के लिए पहुँच जाता था। तताँरा हमेशा अपनी पारम्परिक पोशाक ही पहनता था और हमेशा अपनी कमर में एक लकड़ी की तलवार को बाँधे रखता था। लोगों का मानना था कि उस तलवार में लकड़ी की होने के बावजूद भी अनोखी दैवीय शक्तियाँ हैं। तताँरा कभी भी अपनी तलवार को अपने से अलग नहीं करता था। वह दूसरों के सामने तलवार का प्रयोग भी नहीं करता था। तताँरा की तलवार जिज्ञासा पैदा करने वाला एक ऐसा राज था, जिसको कोई नहीं जानता था।

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