कर चले हम फिदा

पाठ-8 कर चले हम फ़िदा

कैफ़ी आज़मी(1919-2002)

कवि – परिचय

5अगस्त 1947 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्तिनगर में जन्मे वीरेन डंगवाल ने आरंभिक शिक्षा नैनीताल में और उच्च शिक्षा इलाहाबाद में पाई। पेशे से प्राध्यापक डंगवाल पत्रकारिता से भी जुड़े हुए हैं।

समाज के साधारण जन और हाशिए पर स्थित जीवन के विलक्षण ब्योरे और दृश्य वीरेन की कविताओं की विशिष्टता मानी जाती है। इन्होंने ऐसी बहुत-सी चीज़ों और जीव-जंतुओं को अपनी कविता का आधार बनाया है जिन्हें हम देखकर भी अनदेखा किए रहते हैं।

वीरेन के अब तक दो कविता संग्रह इसी दुनिया में और दुष्चक्र में स्रष्टा प्रकाशित हो चुके हैं। पहले संग्रह पर प्रतिष्ठित श्रीकांत वर्मा पुरस्कार और दूसरे पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार के अलावा इन्हें अन्य कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। वीरेन डंगवाल ने कई महत्त्वपूर्ण कवियों की अन्य भाषाओं में लिखी गई कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है। 28 सितंबर 2015 को इनका देहावसान हुआ।     

पाठ प्रवेश

जिंदगी प्राणीमात्र को प्रिय होती है। कोई भी इसे यूँ ही खोना नहीं चाहता। असाध्य रोगी तक जीवन की कामना करता है। जीवन की रक्षा, सुरक्षा और उसे जिलाए रखने के लिए प्रकृति ने न केवल तमाम साधन ही उपलब्ध कराए हैं, सभी जीव-जंतुओं में उसे बनाए,बचाए रखने की भावना भी पिरोई है। इसीलिए शांतिप्रिय जीव भी अपने प्राणों पर संकट आया जान उसकी रक्षा हेतु मुकाबल के लिए तत्पर हो जाते हैं।

लेकिन इससे ठीक विपरीत होता है सैनिक का जीवन, जो अपने नहीं, जब औरों के जीवन पर, उनकी आज़ादी पर आ बनती है, तब मुकाबले के लिए अपना सीना तान कर खड़ा हो जाता है। यह जानते हुए भी कि उस मुकाबले में औरों की जिंदगी और आज़ादी भले ही बची रहे, उसकी अपनी मौत की संभावना सबसे अधिक होती है।

प्रस्तुत पाठ जो युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखा गया था, ऐसे ही सैनिकों के हृदय की आवाज़ बयान करता है, जिन्हें अपने किए-धरे पर नाज़ है। इसी के साथ इन्हें अपने देशवासियों से कुछ अपेक्षाएँ भी हैं। चूँकि जिनसे उन्हें वे अपेक्षाएँ हैं वे देशवासी और कोई नहीं, हम और आप ही हैं, इसलिए आइए, इसे पढ़कर अपने आप से पूछें कि हम उनकी अपेक्षाएँ पूरी कर रहे हैं या नहीं?

कविता

कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई  फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया

कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं सर हिमालय का हमने न झुकने दिया

मरते-मरते रहा बाँकपन साथियों

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो साथियो

जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर जान देने की रुत रोज़ आती नहीं हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं

आज धरती बनी है दुलहन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो राह कुर्बानियों की ना वीरान हो

तुम  सजाते ही न रहना नए काफ़िले फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है जिंदगी मौत से मिल रही है गले

बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे

छू न पाए सीता का दामन कोई

राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियों

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

शब्दार्थ

  • फ़िदा- न्योछावर
  • हवाले- सौंपना
  • रूत- मौसम
  • हुस्न- सुंदरता
  • रुस्वा- बदनाम
  • खूं- खून
  • काफिले- यात्रियों का समूह
  • फतहजीत
  • जश्न- खुशी मनाना
  • नब्ज- नाड़ी
  • कुर्बानियां- बलिदान
  • ज़मीं- जमीन
  • लकीर- रेखा

कविता का सार

प्रस्तुत कविता में देश के सैनिकों की भावनाओं का वर्णन है। सैनिक कभी भी देश के मानसम्मान को बचाने से पीछे नहीं हटेगा। फिर चाहे उसे अपनी जान से ही हाथ क्यों ना गवाना पड़े। भारत – चीन युद्ध के दौरान सैनिकों को गोलियाँ लगने के कारण उनकी साँसें रुकने वाली थी, ठण्ड के कारण उनकी नाड़ियों में खून जम रहा था, परन्तु उन्होंने किसी चीज़ की परवाह न करते हुए दुश्मनों का बहदुरी से मुकाबला किया और दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया। सैनिक गर्व से कहते है कि हमें अपने सर भी कटवाने पड़े, तो हम ख़ुशी ख़ुशी कटवा देंगे, पर हमारे गौरव के प्रतिक हिमालय को नहीं झुकने देंगे अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम नहीं पड़ने देंगे। लेकिन देश के लिए प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी कभी कभी किसी किसी को ही मिल पाती है अर्थात सैनिक देश पर मर मिटने का एक भी मौका नई खोना चाहते। जिस तरह से दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया जाता है, उसी तरह सैनिकों ने भी अपने प्राणों का बलिदान दे कर धरती को खून से लाल कर दिया है। सैनिक कहते हैं कि हम तो देश के लिए बलिदान दे रहे हैं, परन्तु हमारे बाद भी ये सिलसिला चलते रहना चाहिए। जब भी जरुरत हो तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और कहते हैं कि अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए  आगे बढ़े तो उसे तोड़ दो। अपने वतन की रक्षा के लिए तुम ही राम हो और तुम ही लक्ष्मण हो अब इस देश की रक्षा का दायित्व तुम पर है ।

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