गिरगिट

पाठ-14 गिरगिट

अंतोन चेखव(1860-1904)

लेखक -परिचय

इनका जन्म दक्षिणी रूस के तगनोर नगर में 1860 में हुआ था। इन्होनें शिक्षा काल से ही कहानियाँ लिखना आरम्भ कर दिया था। उन्नीसवीं सदी का नौवाँ दशक रूस के लिए कठिन समय था। ऐसे समय में चेखव ने उन मौकापरस्त लोगों को बेनकाब करती कहानियाँ लिखीं जिनके लिए पैसा और पद ही सब कुछ था।

प्रमुख कार्य

कहानियाँ- गिरगिट, क्लर्क की मौत, वान्का, तितली, एक कलाकार की कहानी, घोंघा,ईओनिज,रोमांस,दुलहन।

नाटक – वाल्या मामा, तीन बहनें, सीगल और चेरी का बगीचा।

पाठ प्रवेश

जो भी अन्याय करता है उसके अन्याय को भी न्याय के तराजू में तोला जाता है।सभी व्यक्तियों के अंदर इस तरह की न्याय व्यवस्था के कारण निडरता की भावना पैदा हो जाती है। ऐसी शासन व्यवस्था तभी कायम हो सकती है, जब शासन करने वाले बिना किसी भेदभाव के, अपने अधिकारों और कर्तव्यों का पालन करेंगे। जब कभी भी शासन करने वाले अपना काम सही ढंग से नहीं करते, तब देश में अनियंत्रित एवं विधि विरोधी शासनावस्था का बोलबाला बढ़ जाता है।

शब्दार्थ

  • जब्त- कब्जा करना
  • झरबेरियाँ– बेर की एक किस्म
  • किकियाना– कष्ट में होने पर कुत्ते द्वारा की जाने वाली आवाज़
  • काठगोदाम- लकड़ी का गोदाम
  • कलफ़- मांड लगाया गया कपड़ा
  • बारजोयस- कुत्ते की एक प्रजाति
  • पेचीदा- कठिन
  • गुजारिश– प्रार्थना
  • हरज़ाना- नुकसान के बदले में दी जाने वाली रकम
  • बरदाश्त- सहना
  • खँखारते– खाँसते हुए
  • त्योरियाँ– भौहें चढ़ाना
  • विवरण– ब्योरा देना
  • भद्दा– कुरूप
  • नस्ल– जाति
  • आल्हाद– ख़ुशी

 पाठ का सार

गिरगिट पाठ मशहूर रूसी लेखक चेखव की रचना है, जिसमें उन्होंने उस समय की राजनितिक स्थितियों पर करारा व्यंग्य किया है। बड़े अधिकारियों के तलवे चाटने वाले पुलिसवाले कैसे आम जनता का शोषण करते हैं, इसे बड़े ही सुन्दर ढंग से चित्रित किया गया है ।एक नागरिक को कुत्ते के कट लेने पर पहले तो पुलिस इंस्पेक्टर कुत्ते के खिलाफ बोलता है लेकिन जैसे ही उसे पता चलता है, कुत्ता बड़े अफसर का है तो तुरंत पलटी मार कर कुत्ते के पक्ष में बोलने लगता है ।उसके बाद तो कहानी पूरी तरह अपने नाम को सार्थक करती नज़र आती है। लोगों की बातों के अनुसार जिस प्रकार पल-पल में वह रंग बदलता है, उसे देखकर तो गिरगिट को भी शर्म आ जाये। लेकिन वह इतना ढीठ है कि उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता और वह अंत तक केवल रंग ही बदलता रहता है। जनता के दुःख दर्द से उसे कोई लेना देना नहीं होता.।

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