मीरा के पद
- Books Name
- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-2 मीरा के पद
हरि आप हरो जन री भीर।
द्रौपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर,दासी मीरों लाल गिरघर, हरो म्हारी भीर।
शब्दार्थ-
- हरि-कृष्ण
- हरो-दूर करो
- भीर -पीड़ा
- लाज राखी -इज्ज़त बचाई
- बढ़ाया -बढ़ाए
- चीर -वस्त्र
- धारयो -धारण किया
- गजराज -हाथी
- राख्यो-रक्षा करो
- काटी कुंजर पीर -हाथी से पीड़ा से मुक्त किया
पद का भावार्थ
प्रसिद्ध कवयित्री मीराबाई ने अपने पदों में अपने आराध्य देव श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति, आस्था और श्रद्धा की है। वे उन्हें अपना संरक्षक मानती हैं। पहले पद में वे अपने प्रभु श्रीकृष्ण से जन-जन की पीड़ा हरने की विनती करती भक्त प्रहलाद, गजराज तथा कुंजर का उदाहरण देकर कृष्ण को अपने प्रति कर्त्तव्य का स्मरण कराती हैं की हे गिरिधर! आप मेरी भी पीड़ा हरण कीजिए। मुझे सांसारिक भव-बंधनों से मुक्त कीजिए। इस प्रकार मीरा अपने आराध्य की क्षमताओं का गुणगान करते हुए उनका स्मरण करती है।
प्रसंग
प्रस्तुत पद हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक स्पर्श से लिया गया है।इस पाठ की कवियत्री मीराबाई हैं।इस पद में मीरा अपने आराध्य से अन्य जनों के साथ अपने कष्ट को भी दूर करने की प्रार्थना करती हैं।
व्याख्या
पहले पद में मीराबाई श्री कृष्ण का भक्तों के प्रति प्रेम और अपना श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भाव का वर्णन करती है। - पहले पद में मीरा श्री कृष्ण से कहती हैं कि जिस प्रकार आपने द्रोपदी, प्रह्लाद और ऐरावत के दुखों को दूर किया था उसी तरह मेरे भी सारे दुखों का नाश कर दो।
मीरा के पद
स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में, गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीरां।।
शब्दार्थ
- मोर मुकुट- मोर पंख से बना हुआ मुकुट
- पीताम्बर- पीला वस्त्र
- सौहे- सुशोभित है
- गल- गले में
- वैजन्ती– एक प्रकार का फूल
- धेनु- गाय
- बारी– फुलवारी
- सांवरिया- सांवला कृष्ण
- पहर– पहनकर
- कुसुंबी- लाल रंग की
- दिज्यो- देना
- तीरा- किनारे
- हिबडों- ह्रदय
- घणो- बहुत
- अधीरा- बेचैनी
पद का भावार्थ
दूसरे पद में मीरा अपने आराध्य का सामीप्य पाने के लिए उनकी चाकरी करने की इच्छा प्रकट करती हैं। वे श्रीकृष्ण काम करने को तत्पर हैं। प्रातः उठकर उनके दर्शन करना चाहती हैं। वे वृंदावन की कुंज गलियों में कृष्ण-लीला का गुणगान वह चाहती हैं। उनके रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए वे इष्टदेव से यमुना के किनारे दर्शन देने का भी अनुरोध करती हैं। मीरा इन पदों में कभी अपने आराध्य से मनुहार करती हैं, तो कभी लाड़ लड़ाती हैं, मौका मिलने पर शिकायत करने से भी इकती हैं। इस प्रकार मीरा का संपूर्ण व्यक्तित्व कृष्ण से जुड़ा हुआ है। इनकी भक्ति दैन्य और माधुर्य भाव की है। इन पदों का श्रीकृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम दृष्टिगोचर होता है।
प्रसंग
प्रस्तुत पद हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक स्पर्श से लिया गया है। इसकी कवियत्री मीराबाई हैं।इस पद में मीरा श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन कर रही हैं और श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए कितनी व्याकुल हैं,ये दर्शा रही हैं।
व्याख्या
दूसरे पद में मीरा श्री कृष्ण के दर्शन का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती, वह श्री कृष्ण की दासी बनाने को तैयार है, बाग़- बगीचे लगाने को भी तैयार है, गली गली में श्री कृष्ण की लीलाओं का बखान भी करना चाहती है, ऊँचे ऊँचे महल भी बनाना चाहती है, ताकि दर्शन का एक भी मौका न चुके ।इस पद में श्री कृष्ण के मन मोहक रूप का वर्णन भी किया है और मीरा कृष्ण के दर्शन के लिए इतनी व्याकुल है की आधी रात को ही कृष्ण को दर्शन देने के लिए बुला रही है।