कारतूस
- Books Name
- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-17 कारतूस
हबीब तनवीर(1923-2009)
लेखक-परिचय
1923 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्मे हबीब तनवीर ने 1944 में नागपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात ब्रिटेन की नाटक अकादमी से नाट्य-लेखन का अध्ययन करने गए और फिर दिल्ली लौटकर पेशेवर नाट्यमंच की स्थापना की।
नाटककार, कवि, पत्रकार, नाट्य निर्देशक, अभिनेता जैसे कई रूपों में ख्याति प्राप्त हबीब तनवीर ने लोकनाट्य के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया। कई पुरस्कारों, फेलोशिप और पद्मश्री से सम्मानित हबीब तनवीर के प्रमुख नाटक हैं-आगरा बाज़ार, चरनदास चोर, देख रहे हैं नैन, हिरमा की अमर कहानी। इन्होंने बसंत ऋतु का सपना, शाजापुर की शांति बाई, मिट्टी की गाड़ी और मुद्राराक्षस नाटकों का आधुनिक रूपांतर भी किया।
पाठ– प्रवेश
अंग्रेज़ इस देश में व्यापारी के भेष में आए थे। शुरू में व्यापार ही करते रहे, लेकिन उनके इरादे केवल व्यापार करने के नहीं थे। धीरे-धीरे उनकी ईस्ट इंडिया कंपनी ने रियासतों पर कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया। उनकी नीयत उजागर होते ही अंग्रेज़ों को हिंदुस्तान से खदेड़ने के प्रयास भी शुरू हो गए।
प्रस्तुत पाठ में एक ऐसे ही जाँबाज़ के कारनामों का वर्णन है जिसका एकमात्र लक्ष्य था अंग्रेज़ों को इस देश से बाहर करना। कंपनी के हुक्मरानों की नींद हराम कर देने वाला यह दिलेर इतना निडर था कि शेर की माँद में पहुँचकर उससे दो-दो हाथ करने की मानिंद कंपनी की बटालियन के खेमे में ही नहीं आ पहुँचा, बल्कि उनके कर्नल पर ऐसा रौब गालिब किया कि उसके मुँह से भी वे शब्द निकले जो किसी शत्रु या अपराधी के लिए तो नहीं ही बोले जा सकते थे।
शब्दार्थ
- तख़्त- सिंहासन
- मसलेहत– रहस्य
- ऐश पसं- द भोग विलास पसंद करने वाला
- जाँबाज़- जान की बाज़ी लगाने वाला
- दमखम– शक्ति और दृढ़ता
- जाती तौर पर- व्यक्तिगत रूप से
- वज़ीफा- परवरिश के लिए दी जाने वाली राशि
- मुकर्रर– तय करना
- तलब- किया याद किया
- हुक्मरां- शासक
- गर्द- धूल
- काफ़िला– एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने वाले यात्रियों का समूह
- शुब्हे- संदेह
- दिवार हमगोश दारद– दीवारों के भी कान होते हैं
- लावलश्कर- सेना का बड़ा समूह और युद्ध सामग्री
- कारतूस- पीतल और दफ़्ती आदि की एक नली जिसमें गोली तथा बारूद भरी होती है
पाठ का भावार्थ उज्जैन
प्रस्तुत पाठ में भी एक ऐसे अपनी जान पर खेल जाने वाले शूरवीर के कारनामों का वर्णन किया गया है। जिसका केवल एक ही लक्ष्य था – अंग्रेजों को देश से बाहर निकालना। कंपनी के हुक्म चलाने वालों की उसने नींद हराम कर राखी थी। वह इतना निडर था कि मुसीबत को खुद बुलावा देते हुए न सिर्फ कंपनी के अफसरों के बीच पहुँचा बल्कि उनके कर्नल पर ऐसा रौब दिखाया कि कर्नल के मुँह से भी उसकी तारीफ़ में ऐसे शब्द निकले जैसे किसी दुश्मन के लिए नहीं निकल सकते।