पतझड़ में टूटी पत्तियां

पाठ-16 पतझड़ में टूटी पत्तियां,झेन की देन

रविंद्र केलेकर(1925 -2010)

लेखक परिचय-

इनका जन्म 7 मार्च 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था।ये छात्र जीवन से ही गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए। गांधीवादी चिंतक के रूप में विख्यात केलेकर ने अपने लेखन में जन-जीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यकितगत विचारों को देश और समाज परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। इनकी अनुभवजन्य टिप्पणियों में अपनी चिंतन की मौलिकता के साथ ही मानवीय सत्यतक पहुँचने की सहज चेष्टा रहती है।

प्रमुख कार्य-

कृतियाँ – कोंकणी में उजवाढाचे सूर, समिधा, सांगली ओथांबे, मराठी में कोंकणीचें राजकरण, जापान जसा दिसला और हिंदी में पतझड़ में टूटी पत्तियाँ पुरस्कार – गोवा कला अकादमी के साहित्य पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कार ।

पाठ-प्रवेश

ऐसा माना जाता है कि थोड़े में बहुत कुछ कह देना कविता का गुण है। जब कभी यह गुण किसी गद्य रचना में भी दिखाई देता है तब उसे पढ़ने वाले को यह मुहावरा याद नहीं रखना पड़ता कि ‘सार-सार को गहि रहे थोथा देय उड़ाय’। सरल लिखना, थोड़े शब्दों में लिखना ज्यादा कठिन काम है। फिर भी यह काम होता रहा है। सूक्ति कथाएँ, आगम कथाएँ, जातक कथाएँ, पंचतंत्र की कहानियाँ उसी लेखन के प्रमाण हैं। यही काम कोंकणी में रवींद्र केलेकर ने किया है।

प्रस्तुत पाठ के प्रसंग पढ़ने वालों से थोड़ा कहा बहुत समझना की माँग करते हैं। ये प्रसंग महज पढ़ने-गुनने की नहीं, एक जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा भी देते हैं। पहला प्रसंग गिन्नी का सोना जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगों से परिचित कराता है जो इस जगत को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।

दूसरा प्रसंग झेन की देन बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बीच कुछ चैन भरे पल पा जाते हैं।

शब्दार्थ-

  • व्यावहारिकता– समय और अवसर देखकर काम करने की सूझ
  • प्रैक्टिकल आईडियालिस्ट- व्यावहारिक आदर्श
  • बखान- बयान करना
  • सूझ-बुझ- काम करने की समझ
  • स्तर– श्रेणी
  • के स्तर- के बराबर
  • सजग– सचेत
  • शाश्वत– जो बदला ना जा सके
  • शुद्ध सोना- बिना मिलावट का सोना
  • गिन्नी का सोना– सोने में ताँबा मिला हुआ
  • मानसिक– दिमागी
  • मनोरुग्न- तनाव के कारण मन से अस्वस्थ
  • प्रतिस्पर्धा- होड़
  • स्पीड- गति
  • टी-सेरेमनी– जापान में चाय पिने का विशेष आयोजन
  • चा-नो-यू– जापान में टी सेरेमनी का नाम
  • दफ़्ती- लकड़ी की खोखली सड़कने वाली दीवार जिस पर चित्रकारी होती है
  • पर्णकुटी– पत्तों से बानी कुटिया
  • बेढब सा- बेडौल सा
  • चाजीन- जापानी विधि से चाय पिलाने वाला

पाठ का भावार्थ

पाठ में वर्णित प्रसंग पढ़नेवालों से ‘थोड़ा कहा अधिक समझना’ की माँग करते हैं। ये प्रसंग महज पढ़ने-गुनने हेतु नहीं हैं एक जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा देते हैं। पहला प्रसंग ‘गिन्नी का सोना’ जीवन में अपने लिए सुख-साधन जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगों से परिचय कराता है जो इस जगत् को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं। दूसरा प्रसंग ‘झेन की देन’ बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बीच कुछ चैन भरे पल बिता लेते हैं।

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