कवि परिचय, रचनाएँ, शब्दार्थ, भावार्थ, प्रसंग , स्पष्टीकरण
- Books Name
- Hindi ki pathshala HIndi Course B Book
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 9
- Subject
- Hindi
पाठ 13
1) खुशबू रचते हैं हाथ। 2) नए इलके में
अरुण कमल (1954)
कवि परिचय
अरुण कमल का जन्म बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में 15 फरवरी 1954 को हुआ। ये इन दिनों पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं। इन्हें अपनी कविताओं के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इन्होंने कविता-लेखन के अलावा कई पुस्तकों और रचनाओं का अनुवाद भी किया है।
अरुण कमल की प्रमुख कृतियाँ हैं : अपनी केवल धार, सबूत, नए इलाके में, पुतली में संसार (चारों कविता-संग्रह) तथा कविता और समय (आलोचनात्मक कृति)। इनके अलावा अरुण कमल ने मायकोव्यस्की की आत्मकथा और जंगल बुक का हिंदी में और हिंदी के युवा कवियों की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जो ‘वॉयसेज’ नाम से प्रकाशित हुआ।
पाठ -प्रवेश
प्रस्तुत पाठ की पहली कविता ‘नए इलाके में’ में एक ऐसी दुनिया में प्रवेश का आमंत्रण है, जो एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है। यह इस बात का बोध कराती है। कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता। इस पल-पल बनती-बिगड़ती दुनिया में स्मृतियों के भरोसे नहीं जिया जा सकता। इस पाठ की दूसरी कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ सामाजिक विषमताओं को बेनकाब करती है। यह किसकी और कैसी कारस्तानी है कि जो वर्ग समाज में सौंदर्य की सृष्टि कर रहा है और उसे खुशहाल बना रहा है, वहाँ वर्ग अभाव में, गंदगी में जीवन बसर कर रहा है? लोगों के जीवन में सुगंध बिखेरनेवाले हाथ भयावह स्थितियों में अपना जीवन बिताने पर मजबूर हैं। क्या विडंबना है कि खुशबू रचनेवाले ये हाथ दूरदराज के सबसे गंदे और बदबूदार इलाकों में जीवन बिता रहे हैं। स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान करनेवाले थे लोग इतने उपेक्षित हैं। आखिर कब तक?
शब्दार्थ
- इलाका -क्षेत्र
- अकसर -प्राय:
- ढहा -गिरा हुआ, ध्वस्त
- स्मृति -याद
- जख्म - घाव, चोट
- रातरानी -एक सुगंधित फूल
- मशहूर -प्रसिद्ध
कविता
नए इलाके में
इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था इकमंजिला
और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
भावार्थ-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने शहर में हो रहे अंधा-धुंध निर्माण और बदलाव के बारे में बताया है। रोज कुछ न कुछ बदल ही रहा है। आज अगर कुछ टूटा हुआ है, या कहीं कोई खाली मैदान है, तो कल वहाँ बहुत ही बड़ी -बड़ी इमारतें बन चुकी होंगी। नए-नए मकान बनने के कारण रोज नए-नए इलाके भी बन जा रहे हैं। जहाँ पहले सुनसान रास्ता हुआ करता था। आज वहाँ काफी लोग रहने लगे हैं और चहल-पहल दिखने लगी है। यही कारण है कि लेखक को रास्ते पहचानने में तकलीफ़ होती है और वह अक्सर रास्ता भूल जाता है।
यहां रोज कुछ बन रहा है
रोज कुछ घट रहा है
यहां स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे हो बसंत का गया पतझड़ को लौटा हूं
जैसे बैसाख का गया भादो को लौटा हूं
अब यही है उपाय कि हर दरवाजा खटखटाओ
और पूछो-क्या यही है वह पर?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
हां चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
भावार्थ-इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने रास्ते को भूल जाने का कारण बताते हैं । कवि ने अपने घर को पहचानने का जो स्मृति पटल बनाया था, आज वहां अब ऐसा कुछ भी नहीं है। ना वो खाली जमीन है , ना ही वह पीपल का पेड़ है जहां से उन्हें बाएं मुड़ना था और वहीं पर लोहे के फाटक वाला उनका एक मंजिला घर था। इसलिए कवि कह रहे हैं कि इस बदलती दुनिया में स्मृति का कोई भरोसा नहीं है।
खुशबू रचते हैं हाथ
कई गलियों के बीच
कई नालों के पार
कूड़े-करकट
के ढेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ खुशबू रचते हैं हाथ।
उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
ज़ख्म से फटे हुए हाथ खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
भावार्थ- कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम इस संसार के यथार्थ को दर्शाया है। यहां शहर की मशहूर अगरबत्तियां, खुशबू देने वाली अगरबत्तियां बनाई जाती हैं। इस गंदगी के बीच जहां से गंदे नाले निकाले जाते हैं, जहां पर कूड़े-करकट का ढेर लगा हुआ है, उसी के पास उनकी बस्ती है। यह कैसी विडंबना है कि खुशबू देने वाली अगरबत्ती बनाने वाले लोग इन गंदी बस्ती में गुजारा करते हैं।
उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते-से नए-नए हाथ
जूही की डाल-से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे-पिटे हाथ
ज़ख्म से फटे हुए हाथ खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
भावार्थ-अगरबत्ती बनाने वाले लोगों के हाथों की नसें उभरी हुई दिख रही हैं, तो कहीं सबकी नाखूनें घिसी हुई दिख रही हैं। पीपल के पत्ते जैसे नाजुक हाथ वाले बच्चे हैं यह काम कर रहे हैं। ऐसी लड़कियां जिनके हाथ जूही से डाल से पतले हाथ वह भी इस काम में लगे हुए हैं अर्थात के बच्चे बूढ़े सभी दिन रात लगे हुए हैं