- Books Name
- Hindi ki pathshala HIndi Course B Book
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 9
- Subject
- Hindi
पाठ 8
रहीम के दोहे
रहीम (1556-1626)
कवि परिचय
रहीम का जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान) में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। इनकी नीतिपरक उक्तियों में संस्कृत कवियों की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर नवरत्नों में से एक थे।
रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे। इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं। इनके नीतिपरक दोहे ज्यादा प्रचलित हैं, जिनमें दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है।
रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन। ये सभी कृतियाँ ‘रहीम ग्रंथावली’ में समाहित हैं।
पाठ-प्रवेश
प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। ये दोहे जहाँ एक ओर पाठक को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं. वहीं मानव मात्र को करणीय और अकरणीय आचरण की भी नसीहत देते हैं। इन्हें एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और उन स्थितियों का सामना होते ही इनका याद आना लाजिमी है, जिनका इनमें चित्रण है।
शब्दार्थ
- अठिलैहैं - इठलाना, मजाक उड़ाना
- सींचियो - सिंचाई करना, पौधों में पानी देना
- अघाय - तृप्त
- अरथ (अर्थ) - मायने, आशय
- थोरे - थोड़ा, कम
- पंक - कीचड़
- उदधि - सागर
- नाद - ध्वनि
- रीझि - मोहित होकर
- बिगरी - बिगड़ी हुई
- फाटे दूध - फटा हुआ दूध
- मथे - बिलोना, मथना
- आवे - आना
- निज - अपना
- पिआसो - प्यासा
- चित्रकूट - वनवास के समय श्री रामचंद्र जी सीता और लक्ष्मण के कुछ समय तक चित्रकूट में रहे थे।
दोहे
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।
भावार्थ - रहीम कवि कहते हैं कि प्रेम रूपी धागे को तोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि प्रेम उस कमजोर धागे के समान होता है, जो एक ही झटके में टूट जाता है और फिर जोड़ने पर उसमें अविश्वास रुपी गांठ पड़ जाती है।
दोहे
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब,बाँटि न लैहैं कोय।।
भावार्थ - रहीम कबीर कहते हैं मन की व्यथा को मन में ही रखना चाहिए, उसे किसी से बताना नहीं चाहिए। लोग हमारे दर्द को सुनकर बांट तो सकते नहीं बल्कि सभी हमारा मजाक उड़ाते हैं।
दोहे
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सीचियो, फूलै फूले अघाय॥
भावार्थ - रहीम कवि कहते हैं कि हमें एक ही लक्ष्य की साधना करनी चाहिए। एक लक्ष्य की ही साधना करने से सारे लक्ष्य पूर्ण हो जाते हैं, जिस प्रकार से सिर्फ पेड़ की जड़ में पानी डालने से ही पूरा पेड़ हरा -भरा हो जाता है।
दोहे
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।
भावार्थ - जब श्री रामचंद्र जी को 14 वर्ष का वनवास पड़ा था, तो वे चित्रकूट में अपना जीवन यापन किए थे। उसी प्रकार जिस पर भी विपदा पड़ती है,वो शांति के अंचल में खींचा चला आता है।
दोहे
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चहि जाहि।।
भावार्थ - रहीम कवि कहते हैं कि उनके दोहों में भले ही कम अक्षर या शब्द हैं, परंतु उनके अर्थ बड़े ही गूढ़ और दीर्घ हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे कोई नट अपने करतब के दौरान अपने बड़े शरीर को सिमटा कर कुंडली मार लेने के बाद छोटा लगने लगता है।
दोहे
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय अित अषाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।।
भावार्थ - रहीम कबीर कहते हैं कि कीचड़ का जल ही प्रशंसा का पात्र है, जिसे पीकर छोटे-छोटे जीव अपनी प्यास बुझाते हैं, परंतु समुद्र में अथाह जल है, लेकिन वह किसी की प्यास बुझाने योग्य नहीं है।
दोहे
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेतु समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेडु कछू न देत।।
भावार्थ - कवि कहते हैं कि मुनष्य सबसे विवेकशील प्राणी है फिर भी उस में उदारता नहीं है। दूसरी ओर मृग एक पशु होते हुए भी एक आवाज पर आकर्षित होकर अपना शरीर त्याग देता है।
दोहे
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
भावार्थ - मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकता।
दोहे
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि ।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
भावार्थ – रहीम कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए, क्योंकि जहां छोटी- सी सुई काम आती है, वहां तलवार काम नहीं आ सकती।
दोहे
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय ॥
भावार्थ - रहीम कवि कहते हैं कि अपनी संपत्ति को बुरे समय के लिए बचा कर जरूर रखना चाहिए । क्योंकि विपत्ति के समय में अपनी संपत्ति ही काम आती है।जिस तरह से कमल को बिना जल का सूर्य भी नहीं बचा सकता।
दोहे
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून ॥
भावार्थ - रहीम कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपनी इज्जत जरूर बचा कर रखना चाहिए क्योंकि इज्जत के बिना मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं होता। जैसे चमक के बिना मोती, पानी के बिना चूना और इज्जत के बिना मनुष्य, इन तीनों का कोई मूल्य नहीं है।