कवि परिचय, रचनाएँ, शब्दार्थ, भावार्थ, प्रसंग , स्पष्टीकरण

पाठ 9

 आदमी नामा

नजीर अकबराबादी (1725-1830)

कवि परिचय

नज़ीर अकबराबादी का जन्म दिल्ली शहर में सन् 1735 में हुआ। बाद में इनका परिवार आगरा जाकर बस गया और वहीं इन्होंने आगरा के अरबी-फारसी के मशहूर अदीबों से तालीम हासिल की।
नजीर हिंदू त्योहारों में बहुत दिलचस्पी लेते थे और उनमें शामिल होकर दिलोजान से लुत्फ़ उठाते थे। मियाँ नज़ीर राह चलते नज्में कहने के लिए मशहूर थे। अपने टट्टू पर सवार नजीर को कहीं से कहीं आते-जाते समय राह में कोई भी रोककर फ़रियाद करता था कि उसके हुनर या पेशे से ताल्लुक रखने वाली कोई नज्म कह दीजिए। नजीर आनन-फानन में एक नज्म रच देते थे। यही वजह है कि भिश्ती, ककड़ी बेचनेवाला, बिसाती तक नज़ीर की रची नज्में गा गाकर अपना सौदा बेचते थे, तो वही गीत गाकर गुज़र करनेवालियों के कंठ से भी नजीर की नज्में ही फूटती थीं।
नज़ीर अपनी रचनाओं में मनोविनोद करते हैं। हँसी-ठिठोली करते हैं। ज्ञानी की तरह नहीं. मित्र की तरह सलाह-मशविरा देते हैं, जीवन की समालोचना करते हैं। ‘सब ठाठ पड़ा रह जाएगा. जब लाद चलेगा बंजारा’ जैसी नसीहत देनेवाला यह कवि अपनी रचनाओं में जीवन का उल्लास और जीवन की सच्चाई उजागर करता है।

पाठ प्रवेश

प्रस्तुत नज्म ‘में कवि नज़ीर अकबराबादी ने आदमी के विभन्न रूपों का वर्णन किया है। उनके अनुसार इस संसार में हर तरह के आदमी बसे हुए हैं, फिर चाहे वो अच्छे हों या ख़राब। उनके अनुसार इन्हीं आदमियों में से कोई ऐसा है, जो दूसरों का भला चाहता है, उनकी सहायता करता है, अगर कोई मदद के लिए पुकारे, तो भाग कर जाता है।
इसके ठीक विपरीत कुछ आदमी ऐसे भी हैं, जिनके मन में पाप भरा हुआ है, वे दूसरों से नफरत करते हैं।  दूसरों की चीज़ें चुराते हैं। दूसरों की इज़्ज़त से खिलवाड़ करने में उन्हें मज़ा आता है। इस प्रकार ‘आदमी नामा’ में नजीर ने कुदरत के सबसे नायाब बिरादर, आदमी को आईना दिखाते हुए उसकी अच्छाइयों, सीमाओं और संभावनाओं से परिचित कराया है और इस संसार को और भी सुंदर बनाने के संकेत भी दिए हैं।

शब्दार्थ

  • बादशाह -  राजा
  • मुफलिस - गरीब, दीन -दरिद्र
  • गदा -    भिखारी,फकीर
  • जरदार -  मालदार, दौलतमंद
  • बेनवा -   कमजोर
  • निअमत - स्वादिष्ट भोजन
  • इमाम -  नमाज पढ़ने वाले
  • शाह -   राजा
  • वजीर -  मंत्री
  • मुरीद -  भक्त, शिष्य, चाहने वाला
  • पीर -   धर्मगुरु, संत, भगवान का भक्त
  • कारे -  कार्य,काम

कविता

दुनिया में बादशाह है सो है वह भी आदमी

और मुफ़लिस-ओ-गदा है सो है वो भी आदमी

ज़रदार बेनवा है सो है वो भी आदमी

निअमत जो खा रहा है सो है वो भी आदमी

टुकड़े चबा रहा है सो है वो भी आदमी

भावार्थ - कवि ने इस संसार में अनेक तरह के व्यवहार वाले आदमी का वर्णन किया है।दुनिया में विभिन्न प्रकार के आदमी होते हैं, जैसे कुछ धनी व्यक्ति होते हैं, तो कुछ गरीब भी होते हैं। कुछ बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं, तो कुछ मूर्ख भी होते हैं। यहां कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन खाने वाले व्यक्ति हैं, तो जूठे तथा रूखे-सूखे टुकड़ों को खाकर पलने वाले आदमी भी यहीं मौजूद है।

कविता

मसजिद भी आदमी ने बनाई है यां मियाँ

बनते हैं आदमी ही इमाम और खुतबाख्वाँ

पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां

और आदमी ही उनकी चुराते हैं

जूतियाँ जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी

भावार्थ - कवि ने इन पंक्तियों में मनुष्य की अच्छी और बुरी प्रवृत्तियों का वर्णन किया है और इन्हीं प्रवृत्तियों के अनुसार मनुष्य का नामाकरण होता है।मस्जिद मस्जिद बनाने वाले आदमी होते हैं और इमाम पढ़ने वाले भी आदमी होते है।  कुरान और नमाज अदा करने वाले भी आदमी ही होते हैं । यहां तक कि उनकी जूतियां या चप्पलें चुराने वाले आदमी  ही होते हैं और उन पर नजर रखने वाले भी आदमी होते हैं। इस तरह से आदमी अपने व्यवहार के द्वारा जाने जाते हैं।

कविता

यां आदमी पै जान को वारे है

आदमी और आदमी पै तेग को मारे है

 आदमी पगड़ी भी आदमी की उतारे है

आदमी चिल्ला के आदमी को पुकारे है

आदमी और सुनके दौड़ता है सो है वो भी आदमी

भावार्थ -  इन पंक्तियों में कवि ने आदमी के प्रकृति के बारे में बताया है। कोई आदमी दूसरे आदमी की जान ले लेता है, तो कोई आदमी उसकी जान बचाता है। कोई आदमी किसी को बेइज्जत करता है, तो कोई आदमी उसकी इज्जत बचाने की कोशिश करता है। मदद मांगने के लिए जो पुकार लगाता है, वह भी आदमी है और जो वह पुकार सुनकर मदद करने के लिए दौड़ता है, वह भी आदमी ही है। इस तरह कवि ने हमें यह शिक्षा दी है कि मनुष्य विभिन्न प्रकृति के होते हैं। कोई भला करके खुश होता है, तो कोई बुरा करके।

कविता

अशराफ़ और कमीने से ले शाह ता वज़ीर

ये आदमी ही करते हैं सब कारे दिलपज़ीर

यां आदमी मुरीद है और आदमी ही पीर

अच्छा भी आदमी ही कहाता है ए नज़ीर!

और सबमें जो बुरा है सो है वो भी आदमी

भावार्थ - कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहते हैं कि जो अच्छा है वह भी आदमी है और जो बुरा है वह भी आदमी है। जो राजा बनकर गद्दी पर बैठा है वह भी आदमी है और जो उसका मंत्री है वह भी आदमी है। किसी की खुशी के लिए कुछ भी कर देने वाला भी आदमी है और खुश होने वाला भी आदमी ही है। आदमी ही इच्छा रखने वाला है और उनकी इच्छाओं को पूरा करने वाला भी आदमी है। इस तरह से संसार में अच्छा और बुरा करने वाला जो भी है वह आदमी ही है।

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