कवि परिचय, रचनाएँ, शब्दार्थ, भावार्थ, प्रसंग , स्पष्टीकरण

पाठ 12

 अग्निपथ

हरिवंश राय बच्चन (1907-2003)

कवि परिचय

हरिवंशराय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में 27 नवंबर 1907 को हुआ। ‘बच्चन’ इनका माता-पिता द्वारा प्यार से लिया जानेवाला नाम था. जिसे इन्होंने अपना उपनाम बना लिया था। बच्चन कुछ समय तक विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहने के बाद भारतीय विदेश सेवा में चले गए थे। इस दौरान इन्होंने कई देशों का भ्रमण किया और मंच पर ओजस्वी वाणी में काव्यपाठ के लिए विख्यात हुए।

बच्चन की कविताएँ सहज और संवेदनशील हैं। इनकी रचनाओं में व्यक्ति-वेदना, राष्ट्र- चेतना और जीवन-दर्शन के स्वर मिलते हैं। इन्होंने आत्मविश्लेषणवाली कविताएँ भी लिखी हैं। राजनैतिक जीवन के ढोंग, सामाजिक असमानता और कुरीतियों पर व्यंग्य किया है। कविता के अलावा बच्चन ने अपनी आत्मकथा भी लिखी, जो हिंदी गद्य की बेजोड़ कृति मानी गई। बच्चन की प्रमुख कृतियाँ हैं : मधुशाला, निशा- निमंत्रण, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, आरती और अंगारे, टूटती चट्टानें, रूप तरंगिणी (सभी कविता संग्रह) और आत्मकथा के चार खंड : क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक। बच्चन साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार और सरस्वती सम्मान से सम्मानित हुए।

पाठ-प्रवेश

प्रस्तुत कविता में कवि ने संघर्षमय जीवन को ‘अग्नि पथ’ कहते हुए मनुष्य को यह संदेश दिया है कि राह में सुख रूपी छाँह की चाह न कर अपनी मंजिल की ओर कर्मठतापूर्वक बिना थकान महसूस किए बढ़ते ही जाना चाहिए। कविता में शब्दों की पुनरावृत्ति कैसे मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, यह देखने योग्य है।

शब्दार्थ

  • अग्नि पथ- कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग, आगयुक्त मार्ग
  • पत्र- पत्ता
  • शपथ- कसम, सौगंध
  • अश्रु- आँसू
  • स्वेद- पसीना
  • रक्त- खून, शोणित
  • लथपथ- सना हुआ

कविता

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने, हों बड़े,

एक पत्र – छाँह भी माँग मत, माँग मत!

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! माँग मत!

भावार्थ-कवि हमारे देश के महान युवाओं को संबोधित करते हुए कहते हैं कि यह जीवन धूप और छांव की तरह है अर्थात् हमारे जीवन में सुख- दुख लगे रहते हैं। इसलिए हमें बिना किसी सुख की कामना रखते हुए, जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए और संघर्ष करते करते रहना चाहिए।

कविता

तू न थकेगा कभी!

तू न थमेगा कभी!

तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

भावार्थ-   कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहते हैं कि जब तक हम अपने लक्ष्य को प्राप्त ना कर ले, तब तक हमें  किसी सुख की कामना नहीं करनी है और ना ही रुकना है। कवि ने ऐसा अपने आप से शपथ लेने की बात कही है और युवाओं को प्रोत्साहित किया है।

कविता

यह महान दृश्य है

चल रहा मनुष्य है

अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ !

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

भावार्थ-इन पंक्तियों के माध्यम से  कवि ने कहा है कि मनुष्य अपने कर्मपथ पर चलता है।उसे बहुत संघर्ष कर-ना पड़ता है। वह काफी थक जाता है और इस वजह से अश्रु, पसीने तथा कभी-कभी वह खून से भी लथपथ हो जाता है। मनुष्य का कर्मपथ पर चलता हुआ वह अनुभव अद्भुत लग रहा है।
इसलिए कवि को वह दृश्य बहुत ही मनोरम  लग रहा है। जो बिना रुके, बिना थमे जीवन की कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ता है, वही जीवन में सफल होता है।

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