परिभाषा, वर्गीकरण, भेद उदाहरण
पाठ 1: रचना के आधार पर वाक्य भेद
• सरल वाक्य
• संयुक्त वाक्य
• मिश्रित वाक्य
• संमिश्र वाक्य
सरल वाक्य- जिस वाक्य में एक ही उद्देश्य तथा एक ही विधेय हो, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं।
जैसे
(i) अशोक पुस्तक पढ़ता है।
(ii) मोहन खेलता है।
संयुक्त वाक्य- जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य स्वतन्त्र रूप से समुच्चय बोधक अथवा योजक द्वारा मिले हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।
जैसे-
(i) अशोक पुस्तक पढ़ता है, परन्तु शीला नहीं पढ़ती ।
(ii) अशोक पुस्तक पढ़ता है और शीला लेख लिख रही है।
ऊपर के दोनों वाक्य संयुक्त वाक्य हैं। पहला वाक्य परन्तु तथा दूसरा और समुच्चय बोधक अव्ययों द्वारा संयुक्त किए गए हैं।
मिश्रित वाक्य- जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्रित वाक्य कहा जाता है।
जैसे-
खाने-पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने ।
खाने-पीने का मतलब है = स्वतन्त्र या प्रधान उपवाक्य
कि = समुच्चय बोधक या योजक।
मनुष्य स्वस्थ बने = आश्रित उपवाक्य ।
संमिश्र वाक्य – जिस वाक्य में दो मुख्य उपवाक्य हों और एक या अधिक आश्रित वाक्य हों अर्थात् मिश्रित और संयुक्त वाक्य का जहां मिश्रण हो, वहां समिश्र वाक्य होता है।
जैसे-
सभ्यता के साथ व्यवहार करो, जिससे सब तुम्हारा सम्मान करें और तुम्हारी उन्नति के लिए शुभ कामना करें।
सभ्यता के साथ व्यवहार करो, जिससे सब तुम्हारा सम्मान करें। =मिश्रित वाक्य
और तुम्हारी उन्नति के लिए शुभ कामना करें।=संयुक्त वाक्य
परिभाषा, भेद, वाच्य परिवर्तन, उदाहरण
पाठ 2: वाच्य
वाच्य की परिभाषा- क्रिया के जिस रुप से यह जाना जाए कि वाक्य में क्रिया द्वारा कही गई बात का विषय कर्त्ता है, अथवा कर्म है, या भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।
वाच्य के भेद
1 कर्तृवाच्य
2 कर्मवाच्य
3 भाववाच्य
कर्तृवाच्य- जिस वाक्य में कर्त्ता की प्रधानता होती है, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं।
जैसे-
मोहन पत्र लिखता है।
श्याम स्कूल जाता है।
रेखांकित वाक्यांश लिखता है, जाता है यह क्रिया है।तथा मुख्य उद्देश्य (कर्त्ता) मोहन और श्याम है।
कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों रूप में हो सकती है ।
सकर्मक क्रिया
मोहन पत्र लिखता है।
अकर्मक क्रिया
मोहन सोता है।
कर्मवाच्य- जिस वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है, उसे कर्म वाच्य कहते हैं।
जैसे-
मोहन के द्वारा पत्र लिखा गया।
सीता ने रोटी खाई।
रेखांकित वाक्यांश में कर्म की प्रधानता दिखाई गई है। वाक्य में कर्म के आधार पर क्रिया का लिंग और वचन आधारित है। कर्मवाच्य में क्रिया हमेशा सकर्मक होती है।
भाववाच्य- जिस वाक्य में क्रिया कर्त्ता के भाव पर आधारित होती है, उसे भाववाच्य कहते है।
जैसे-
लंगड़े से चला नहीं जाता।
बच्चे से रोया नहीं जाता।
रेखांकित वाक्यांश कर्त्ता के भाव को दर्शा रहा है। भाववाच्य में क्रिया हमेशा अकर्मक होती है।
परिभाषा, भेद, भेद क प्रकार, उदाहरण
पाठ 3: पद परिचय
पद परिचय की परिभाषा- जब शब्दों का प्रयोग वाक्य में किया जाता है, तो वे पद कहलाते हैं, इन्हीं पदों का व्याकरणिक परिचय देना पद परिचय कहलाता है।
पद परिचय के प्रकार:
प्रयोग के आधार पर पद परिचय आठ प्रकार के होते हैं-
- संज्ञा
- सर्वनाम
- विशेषण
- क्रिया
- क्रिया विशेषण
- संबंधबोधक
- समुच्चयबोधक
- विस्मयादिबोधक
संज्ञा का पद परिचय- वाक्य में आए संज्ञा पदों के भेद, लिंग,वचन,कारक, काल और क्रिया के साथ संबंध बताना आवश्यक होता है।
जैसे-राम ने रावण को बाणों से मारा।
राम-व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक
बाणों -जातिवाचक संज्ञा, भपुल्लिंग, बहुवचन, करण कारक
रावण-व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक
सर्वनाम पद का परिचय- वाक्य में आए सर्वनाम पदों के भेद, लिंग,वचन,कारक, काल और क्रिया के साथ संबंध बताना आवश्यक होता है।
जैसे- जिसे आप लोगों ने बुलाया है, उसे अपने घर जाने दीजिए।
इस वाक्य में ‘जिसे’, ‘आप लोगों ने’, ‘उसे’ और ‘अपने’ पद सर्वनाम हैं। इसका पद परिचय इस प्रकार होगा।
जिसे : अन्य पुरुष, सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।
आप लोगों ने : पुरुषवाचक सर्वनाम, मध्यम पुरुष,पुल्लिंग, बहुवचन, कर्ता कारक।
उसे : अन्य पुरुष, सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।
अपने : निजवाचक सर्वनाम, मध्यम पुरुष, पुल्लिंग,एकवचन, संबंध कारक।
विशेषण का पद परिचय- विशेषण का पद परिचय करते समय विशेषण के भेद, अवस्था, लिंग, वचन और विशेष्य व उसके साथ संबंध आदि को बताना होता है। विशेषण का लिंग,उसका वचन, विशेष्य के अनुसार होता है।
जैसे- ये तीन किताबें बहुत बहुमूल्य हैं। उपर्युक्त वाक्य में ‘तीन’ ‘ बहुत’ और ‘बहुमूल्य’ विशेषण हैं। इन दोनों विशेषणों का पद परिचय निम्नलिखित है:-
तीन : संख्यावाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन, इस विशेषण का विशेष्य ‘किताब’ हैं।
बहुत : संख्यावाचक,स्त्रीलिंग, बहुवचन।
बहुमूल्य : गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन
क्रिया का पद परिचय- क्रिया का पद परिचय करते समय क्रिया का प्रकार, वाच्य, काल, लिंग, वचन, पुरुष, और क्रिया से संबंधित शब्द को लिखना पड़ता है।
जैसे- राम ने रावण को मारा।
मारा- क्रिया, सकर्मक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्तृवाच्य, भूतकाल । ‘मारा’ क्रिया का कर्ता राम तथा कर्म रावण।
क्रिया विशेषण का पद परिचय- क्रिया विशेषण का पद परिचय करते समय,क्रियाविशेषण का प्रकार और उस क्रिया पद का उल्लेख करना होता है, जिस क्रियापद की विशेषता प्रकट करने के लिए क्रिया विशेषण का प्रयोग हुआ है।
जैसे- लड़की उछल कूद कर रही हैं। इस वाक्य में ‘उछल कूद’ क्रियाविशेषण है।
उछल कूद : रीतिवाचक क्रियाविशेषण है जबकि ‘कर रही है’ क्रिया की विशेषता बतलाता है।
संबंधबोधक का पदपरिचय:- संबंधबोधक का पद परिचय करते समय संबंधबोधक का भेद और किस संज्ञा या सर्वनाम से संबंधित शब्द को लिखना पड़ता है।
जैसे- कुर्सी के नीचे बिल्ली बैठी है।
उपर्युक्त वाक्य में ‘के नीचे’ संबंधबोधक है। ‘कुरसी’ और ‘बिल्ली’ इसके संबंधी शब्द हैं।
समुच्चयबोधक का पदपरिचय:- समुच्चयबोधक का करते समय समुच्चयबोधक का भेद और समुच्चयबोधक से संबंधित योजित शब्द को लिखना पड़ता है।
जैसे – दिल्ली अथवा कोटा में पढ़ना ठीक है।
इस वाक्य में ‘अथवा’ समुच्चयबोधक शब्द है। अथवा : विभाजक
अव्यय का पद परिचय- अव्यय का पद परिचय करने के लिए वाक्य में प्रयुक्त अव्यय का भेद और उससे संबंधित पद को लिखना होता है।
जैसे- वे प्रतिदिन जाते हैं।
वाक्य में ‘प्रतिदिन’ अव्यय है।
प्रतिदिन : कालवाचक अव्यय, यहां ‘जाना’ क्रिया के काल बताता है, इसलिए जाना क्रिया का विशेषण है।
परिभाषा, अंग, प्रकार
पाठ 4: रस
रस की परिभाषा- कविता, कहानी, उपन्यास आदि को पढ़ने या सुनने से एवं नाटक को देखने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ‘रस’ कहते हैं। रस काव्य की आत्मा है। रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं— स्थायी भाव और संचारी भाव। यही काव्य के अंग कहलाते हैं।
भरतमुनि के अनुसार, “विभावानुभाव व्यभिचारि संयोगाद्रस निष्पत्तिः” अतः जब स्थायी भाव का संयोग विभाव, अनुभव और व्यभिचारी (संचारी) भाव से होता है, तब रस की निष्पत्ति होती है।
इसके चार अंग होते हैं-
1 स्थायी भाव
2. विभाव
3. अनुभव
4. संचारी भाव (व्यभिचारी भाव)
स्थायी भाव -रस रूप में पुष्ट या परिणत होनेवाला तथा सम्पूर्ण प्रसंग में व्याप्त रहनेवाला भाव स्थायी भाव कहलाता है।
स्थायी भाव नौ माने गये हैं—रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय और निर्वेद। वात्सल्य नाम का दसवाँ स्थायी भाव भी स्वीकार किया जाता है।
विभाव- जो व्यक्ति, वस्तु, परिस्थितियाँ आदि स्थायी भावों को जागरित या उद्दीप्त करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
विभाव दो प्रकार के होते हैं।
आलम्बन विभाव
उद्दीपन विभाव
आलम्बन विभाव- स्थायी भाव जिन व्यक्तियों, वस्तुओं आदि का अवलम्ब लेकर अपने को प्रकट करते हैं, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं।
आलम्बन विभाव के दो भेद हैं-
आश्रय
विषय
आश्रय – जिस व्यक्ति के मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय कहते हैं।
विषय – जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण आश्रय के चित्त में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय कहते हैं।
उद्दीपन विभाव
भाव को उद्दीप्त अथवा तीव्र करने वाली वस्तुएँ, चेष्टाएँ आदि को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
उदाहरणार्थ – सुन्दर, पुष्पित और एकान्त उद्यान में शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के हृदय में रति भाव जागृत होता है। यहाँ शकुन्तला आलम्बन विभाव है और पुष्पित तथा एकान्त उद्यान उद्दीपन विभाव। दुष्यन्त आश्रय है। प्राय: नायक एवं नायिका आलम्बन विभाव होते हैं। शृंगार के उद्दीपन विभाव प्राय: बसन्त काल, उद्यान, शीतल मन्द-सुगन्धित पवन, भ्रमर-गुंजन इत्यादि होते हैं।
अनुभाव- आश्रय की बाह्य शारीरिक चेष्टाओं को अनुभव कहते हैं। अनुभव चार प्रकार के होते हैं- कायिक, मानसिक, आहार्य, सात्विक।
संचारी भाव -आश्रय के चित्त में उत्पन्न होनेवाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। उदाहरणार्थ, शृंगार रस के प्रकरण में शकुन्तला से प्रीतिबद्ध दुष्यन्त के चित्त में उल्लास, चपलता, व्याकुलता आदि भाव संचारी भाव हैं। इन्हें व्यभिचारी भाव भी कहते हैं.
संचारी भाव की संख्या 33 होती है।
रस के भेद- रस दस प्रकार के होते हैं। रस एवं उनके स्थायी भाव निम्नलिखित हैं-
- श्रृंगार रस- रति
- हास्य रस- हास
- करुण रस- शोक
- रौद्र रस- क्रोध
- वीर रस- उत्साह
- भयानक रस- भय
- वीभत्स रस- जुगुप्सा (घृणा)
- अद्भुत रस- विस्मय
- शांत रस- पश्चताप/शम (निर्वेद)
- वात्सल्य रस- वत्सल
अर्थ, मुख्य विषय,लेखन शैली, मुख्य विषय,वाक्य से संबंध, केंद्रीय भाव, संकेत बिंदु
पाठ 5: अनुच्छेद लेखन
अनुच्छेद लेखन का अर्थ-
किसी एक विषय पर लिखे गए अपने भाव या विचार से संबंद्ध तथा लघु- वाक्य समूह को अनुच्छेद लेखन कहते हैं।
अनुच्छेद की भाषा
अनुच्छेद की भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए।
वर्तनी एवं विराम चिन्ह
अनुच्छेद लेखन में शुद्ध वर्तनी और विराम चिन्ह का उचित प्रयोग होना चाहिए ताकि भाषा स्पष्ट हो जाए।
शुद्ध भाषा का प्रयोग
अनुच्छेद लेखन में व्याकरण के नियमों के अनुसार शुद्ध भाषा का प्रयोग होना चाहिए ताकि अनुच्छेद प्रभावशाली हो।
अनुच्छेद लेखन की प्रमुख विशेषताएं-
अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक ही बार एक स्थान पर व्यक्त करता है इसमें अन्य तथ्य की जानकारी नहीं होती।
उदाहरण
मुख्य विषय
(वन और पर्यावरण का सम्बन्ध)
संकेत-बिंदु –
- वन प्रदुषण-निवारण में सहायक,
- वनों की उपयोगिता, वन संरक्षण की आवश्यकता,
- वन संरक्षण के उपाय।
वन और पर्यावरण का बहुत गहरा सम्बन्ध है। प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए पृथ्वी के 33% भाग को अवश्य हरा-भरा होना चाहिए। वन जीवनदायक हैं। ये वर्षा कराने में सहायक होते हैं। धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। वनों से भूमि का कटाव रोका जा सकता है। वनों से रेगिस्तान का फैलाव रुकता है, सूखा कम पड़ता है। वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों के भण्डार हैं। वनों से हमें लकड़ी, फल, फूल, खाद्य पदार्थ, गोंद तथा अन्य प्राप्त होते हैं। आज भारत में दुर्भाग्य से केवल 23% वन बचे हैं। जैसे-जैसे उद्योगों को संख्या बढ़ रही है, शहरीकरण हो रहा है, वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता और बढ़ती जा रही है। वन संरक्षण एक कठिन एवं महत्वपूर्ण काम है। इसमें हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी और अपना योगदान देना होगा। अपने घर-मोहल्ले, नगर में अत्यधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिए।
शब्दों की संख्या
अनुच्छेद लेखन में शब्दों की सीमित संख्या होती है, जिसे 80 से 100 शब्दों के बीच रखा जाता है।
पत्र लेखन की विशेषताएं, पत्र के अंग, पत्र के प्रकार, उदाहरण
पाठ 6: पत्र लेखन
पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं
पत्र लेखन से संबंधित अनेक महत्व है, परन्तु इन महत्व का लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब पत्र एक आदर्श पत्र की भांति लिखा गया हो।
भाषा सरल एवं स्पष्ट- पत्र के अन्तर्गत भाषा एक विशेष तत्व है। पत्र की भाषा शिष्ट व नर्म होनी चाहिए। क्योंकि नर्म एवं शिष्ट पत्र ही पाठक को प्रभावित कर सकते हैं।
संक्षिप्त- मुख्य बातों को बिना संकोच के लिखा जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से लंबे शब्दों को लिखने का परित्याग किया जाना चाहिए।
मौलिकता- पत्र की भाषा पूर्ण मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप लिखा होना चाहिए।
पत्र के अंग
प्रेषक का पता और तिथि― पत्र – लेखन के लिए जिस कागज का प्रयोग किया जाता है उसके उपर के स्थान पर दाहिनी और प्रेषक का पता एवं पत्र लेखन की तिथि का उल्लेख होना चाहिए।
मूल संबोधन – पत्र के बायीं और घनिष्ठता, श्रद्धा या स्नेह-सूचक संबोधन होना चाहिए। जैसे- पूज्य, माननीय, श्रद्धेय, श्रीमान् आदि।
पत्र के निम्न दो प्रकार होते है –
औपचारिक पत्र (Formal Letter)
अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)
औपचारिक पत्र- सरकारी तथा व्यावसायिक कार्यों से संबंध रखने वाले पत्र औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आते है। इसके अतिरिक्त इन पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को भी शामिल किया जाता है।
- प्रार्थना पत्र
- निमंत्रण पत्र
- सरकारी पत्र
- गैर सरकारी पत्र
- व्यावसायिक पत्र
औपचारिक पत्र का प्रारूप
अनौपचारिक पत्र- इन पत्रों के अन्तर्गत उन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने प्रियजनों को, मित्रों को तथा सगे-संबंधियों को लिखे जाते है।
उदहारण के रूप में – पुत्र द्वारा पिता जी को अथवा माता जी को लिखा गया पत्र, भाई-बंधुओ को लिखा जाना वाला, किसी मित्र की सहायता हेतु पत्र, बधाई पत्र, शोक पत्र, सुखद पत्र इत्यादि ।
उदाहरण
औपचारिक पत्र
बड़े भाई के विवाह पर अवकाश के लिए मुख्याध्यापक के नाम प्रार्थना पत्र
सेवा में,
मुख्याध्यापक महोदया,
नगर निगम विद्यालय, उत्तम नगर, दिल्ली
महोदया
…सविनेय निवेदन इस प्रकार है कि 29.8… के दिन मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह होने जा रहा है। बारात दिल्ली से लखनऊ जाएगी। बारात में जाने के कारण में 29.8… तक कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकता।
विनम्र प्रार्थना है कि इन तीन दिनों का अवकाश प्रदान कर मुझे कृतार्थ करें।
आपकी आज्ञाकारी शिष्या
भावना
दिनांक- 25 अगस्त
कक्षा: छठी ‘अ’
अनौपचारिक पत्र
पिता का पुत्र को पत्र
दिनांक : 4 जुलाई, 20xx
प्रिय पुत्र विजय
चिरंजीव रहो!
तुम्हारा पत्र कल मुझे मिल गया था। मुझे यह पढ़कर बहुत खुशी हुई कि तुमने नई कक्षा में प्रवेश ले लिया है और पुस्तकें भी खरीद ली हैं। अब तुम्हें खूब मन लगाकर पढ़ना चाहिए ताकि कक्षा में प्रथम आ सको। मैं छुट्टियों में अवश्य घर आऊँगा। आने से पूर्व पत्र लिख दूंगा। घर में सबको प्यार एवं आशीर्वाद।
तुम्हारा शुभाकांक्षी
रघुबर दत्त
गांधी नगर, मेरठ
परिभाषा, प्रकार, प्रारूप, उदाहरण
पाठ 7: विज्ञापन लेखन
विज्ञापन लेखन की परिभाषा –
विज्ञापन शब्द दो शब्दों के मेल से बना है।
वि+ज्ञापन
वि का अर्थ होता है विशेष और ज्ञापन का अर्थ होता है सार्वजनिक सूचना।
ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करके अपनी वस्तु को बेचना विज्ञापन इसका माध्यम है।
विज्ञापन के प्रकार
- स्थानीय विज्ञापन
- राष्ट्रीय विज्ञापन
- वर्गीकृत विज्ञापन
- औद्योगिक विज्ञापन
- जनकल्याण संबंधित विज्ञापन
- सूचना प्रद विज्ञापन
विज्ञापन लेखन के स्वरूप
विज्ञापन को एक बॉक्स बनाकर कुछ आकर्षित चित्रों और आकर्षित भाषा शैली के साथ लिखते है ताकि विज्ञापन प्रभावशाली लगे।\
उदाहरण
नटराज पेंसिल के लिए 25 से 30 शब्दों में एक आकर्षक विज्ञापन तैयार करें।
विज्ञापन लेखन की विशेषताएं-
विज्ञापन को एक प्रभावशाली ढंग से लिखना चाहिए। विज्ञापन जितना ही प्रभावशाली होगा वस्तुओं की बिक्री उतनी ही अधिक होगी।
परिभाषा, प्रकार, प्रारूप,महत्त्व , विशेषताएं,उदाहरण
पाठ 8: संदेश लेखन
संदेश लेखन का अर्थ- संदेश का अर्थ होता है कि कोई महत्वपूर्ण बात या फिर कोई उद्देश्यप्रद कही गई बात या लिखित भाषा में कोई सूचना या समाचार जो हमें किसी दूसरे को देना होता है, उस प्रक्रिया को हम संदेश कहते हैं।
संदेश के प्रकार
संदेश दो प्रकार के होते हैं –
- औपचारिक संदेश
- अनौपचारिक संदेश
संदेश लिखने के उद्देश्य
संदेश लिखने के पीछे कई उद्देश्य हो सकते हैं।
स्कूलों में छात्रों को संदेश लिखने की विधि समझाना।
कलात्मक और रचनात्मक और बहुत प्रकार की बौद्धिक विकास के लिए भी हम संदेश लेखन का प्रयोग करते हैं।
समाज को जागरूक करने के लिए भी हम संदेश लेखन का प्रयोग करते हैं।
लोगों तक महत्वपूर्ण बातों को पहुंचाने के लिए या व्यक्त करने के लिए भी हम संदेश लेखन का उपयोग करते हैं।
संदेश लेखन के प्रारूप
सन्देश लेखन की विशेताएं
संदेश विशेष विषय पर लिखी जाती है। संदेश लेखन में केवल महत्वपूर्ण बातें ही लिखी जाती है। संदेश लेखन यदि अनौपचारिक हो, तो भाषा का उपयोग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है लेकिन अगर संदेश औपचारिक हो तो भाषा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
उदाहरण
औपचारिक संदेश लेखन
शिक्षक दिवस के अवसर पर विज्ञान शिक्षक को एक पत्र लिखना।
“शिक्षक एक दिया के जैसा होते है, जो खुद जलकर दूसरो को रोशन कर देते हैं।”
दिनांक : 06/06/2021
समय : 01:00 pm
आदरणीय गुरु जी,
आशा करता हूँ कि आप सकुशल होंगे। आपके द्वारा मिली प्रोत्साहन और मोटिवेशन भरी शिक्षा के वजह से मै आज दसवीं कक्षा में विज्ञान के विषय में अच्छे अंकों से उतीर्ण हो गया हूँ। जिसके लिए मै आपका सदा आभारी रहूँगा। मै भगवान से यही प्रार्थना करता हूँ, कि आपके जैसा शिक्षक सभी विद्धार्थी को मिले, ताकि उनकी भी जीवन सँवर जाये। शिक्षक दिवस के अवसर पर मै आपको तहे दिल से आपको ढेर सारी शुभकामनाएं।
आपका छात्र,
राहुल
अनौपचारिक संदेश लेखन
छोटी बहन के जन्मदिन पर एक बधाई संदेश।
दिनांक : 06/06/2022
समय : 12:04 pm
मेरी प्यारी बहन गुड़िया आपको इस जन्मदिन पर ढ़ेर सारी बधाई। आशा करता हूँ कि तुम सकुशल होगी। तुम हमेशा खुश रहो, स्वस्थ्य रहो यही मै हमेशा दुआ करता हूँ। और मै भगवान से यह प्रार्थना करुँगा कि इस साल आपके जीवन की सारी परेशानी दूर हो जाए और आने वाली सभी परीक्षा मे आप खूब मेहनत करो और अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण हो जाओं।
तुम्हारा भाई दीपक