पाठ 2: जॉर्ज पंचम की नाक

कमलेश्वर (1932-2007)

लेखक परिचय

कमलेश्वर का जन्म सन् 1932 में मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने एम.ए. किया। दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर कार्य करने वाले कमलेश्वर ने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया जिनमें सारिका, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर प्रमुख हैं।

साहित्य अकादेमी पुरस्कार से पुरस्कृत कमलेश्वर को भारत सरकार ने पद्म भूषण से भी सम्मानित किया। 27 जनवरी 2007 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। नयी कहानी आंदोलन के अगुआ रहे कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएँ हैं- राजा निरबंसियाँ, खोई हुई दिशाएँ, सोलह छतों वाला घर, जिंदा मुर्दे (कहानी-संग्रह) वही बात, आगामी अतीत, डाक बंगला, काली आँधी और कितने पाकिस्तान (उपन्यास)। उन्होंने आत्मकथा, यात्रा-वृत्तांत और संस्मरण भी लिखे हैं। कमलेश्वर ने अनेक हिंदी फिल्मों एवं टी.वी. धारावाहिकों की पटकथाएँ भी लिखी हैं।

कमलेश्वर की रचनाओं में तेजी से बदलते समाज का बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील चित्रण है। आज की महानगरीय सभ्यता में मनुष्य के अकेले हो जाने की व्यथा को उन्होंने बखूबी समझा और व्यक्त किया है।

पाठ- प्रवेश

हमारे समाज में नाक इज्ज़त का प्रतीक मानी जाती है। इतना ही नहीं नाक से जुड़े अनेक मुहावरे भी हिंदी में प्रचलित हैं जिनमें ‘नाक कटना’ और ‘नाक काटना’ प्रमुख हैं। इसी मुहावरे के अर्थ का विस्तार करते हुए इसका व्यंग्यात्मक उपयोग किया है कमलेश्वर ने जॉर्ज पंचम की नाक कहानी में। सारा व्यंग्य ‘नाक’ शब्द पर केंद्रित करते हुए लेखक ने अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद भी सत्ता से जुड़े विभिन्न प्रकार के लोगों की औपनिवेशक दौर की मानसिकता और विदेशी आकर्षण पर गहरी चोट की है।

अपने कथ्य में सफल यह कहानी पत्रकारिता की सार्थकता को तो रेखाकिंत करती ही है साथ ही व्यावसायिक पत्रकारिता के विरुद्ध भी खड़ी दिखाई देती है । कथाकार के साथ-साथ कमलेश्वर का सफल पत्रकार का रूप भी यहाँ देखा ज सकता है।S

शब्दार्थ

  • बेसाख्ता- स्वाभाविक रूप से
  • नाज़नीन-कोमलांगी
  • खैरख्वाह-भलाई चाहने वाला
  • अचकचाया- चौंक उठना