पाठ-9

संगतकार

संगतकार कविता का भावार्थ

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती
वह आवाज सुंदर कमजोर काँपती हुई थी
वह मुख्य गायक का छोटा भाई है
या उसका शिष्य
या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार

संगतकार कविता का भावार्थ :- जब भी कहीं संगीत का आयोजन होता है तो मुख्य गायक के साथ संगत करने वाला अक्सर देखा जाता है। ज्यादातर लोग संगतकार पर ध्यान नहीं देते हैं और वह पृष्ठभूमि का हिस्सा मात्र बनकर रह जाता है। वह हमारे लिए एक गुमनाम चेहरा हो सकता है। हम उसके बारे में तरह-तरह की अटकलें लगा सकते हैं। लेकिन मुख्य गायक की प्रसिद्धि के आलोक में हममे से बहुत कम ही लोग उस अनजाने संगतकार की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार कर पाते हैं।

मुख्य गायक की गरज में
वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीने काल से

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में
खो चुका होता है
या अपने ही सरगम को लाँघकर
चला जाता है भटकता हुअ एक अनहद में
तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है
जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान
जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन
जब वह नौसिखिया था।

संगतकार कविता का भावार्थ :- सदियों से यह परंपरा रही है कि मुख्य गायक के सुर में संगतकार अपना सुर मिलाता आया है। मुख्य गायक की भारी आवाज के पीछे संगतकार की आवाज दब सी जाती है। लेकिन संगतकार हर क्षण अपनी भूमिका को पूरी इमानदारी से निभाता है। जब गायक अंतरे की जटिल तानों और आलापों में खो जाता है और सुर से कहीं भटक जाता है तो ऐसे समय में संगतकार स्थायी को सँभाले रहता है। उसकी भूमिका इसी तरह की होती है जैसे कि वह आगे चलने वाले पथिक का छूटा हुआ सामान बटोरकर कर अपने साथ लाता है। साथ ही वह मुख्य गायक को उसके बीते दिनों की याद भी दिलाता है जब मुख्य गायक नौसिखिया हुआ करता था।

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला
प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ
आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ
तभी मुख्य गायक को ढ़ाँढ़स बँधाता
कहीं से चला आता है संगीतकार का स्वर

कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ
यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है
और यह कि फिर से गाया जा सकता है
गाया जा चुका राग

संगतकार कविता का भावार्थ :- जब तारसप्तक पर जाने के दौरान गायक का गला बैठने लगता है और उसकी हिम्मत जवाब देने लगती है तभी संगतकार अपने स्वर से उसे सहारा देता है। कभी-कभी संगतकार इसलिए भी गाता है ताकि मुख्य गायक को ये लगे कि वह अकेला ही चला जा रहा है। कभी-कभी वह इसलिए भी गाता है ताकि मुख्य गायक को बता सके कि किसी राग को दोबारा गाया जा सकता है।

और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है
या अपने स्वर को ऊँचा उठाने की जो कोशिश है
उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

संगतकार कविता का भावार्थ :- इन सारी प्रक्रिया के दौरान संगतकार की आवाज हमेशा दबी हुई होती है। ज्यादातर लोग इसे उसकी कमजोरी मान लेते होंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। वह तो गायक की आवाज को प्रखर बनाने के लिए त्याग करता है और जानबूझकर अपनी आवाज को दबा लेता है।

यह कविता संगतकार के बारे में है लेकिन यह हर उस व्यक्ति की तरफ इशारा करती है जो किसी सहारे की भूमिका में होता है। दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में किसी एक व्यक्ति की सफलता के पीछे कई लोगों का योगदान होता है। हम और आप उस एक खिलाड़ी या अभिनेता या नेता के बारे में जानते हैं जो सफलता के शिखर पर होता है। लेकिन हम उन लोगों के बारे में नहीं जानते जो उस खिलाड़ी या अभिनेता या नेता की सफलता के लिए नेपथ्य में रहकर अथक परिश्रम करता है।

कठिन शब्दो के अर्थ

  • संगतकार - मुख्य गायक के साथ गायन करने वाला या वाद्य बजाने वाला कलाकार।
  • गरज- उँची गंभीर आवाज़
  • अंतरा- स्थायी या टेक को को छोड़कर गीत का चरण
  • जटिल कठिन
  • तान- संगीत में स्वर का विस्तार
  • सरणम - संगीत के सात स्वर
  • अनहद - योग अथवा साधन की आनन्दायक स्थिति
  • स्थायी - गीत का वह चरण जो बार-बार गाय जाता है, टेक
  • नौसिखिया - जिसने अभी सीखना आरम्भ किया हो।
  • तारसप्तक - काफी उँची आवाज़
  • राख जैसा गिरता हुआ - बुझ्ता हुआ स्वर
  • ढॉड्स बँधाना- तसलली देना

मंगलेश डबराल का जीवन परिचय

मंगलेश डबराल समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम है। इनका जन्म 16 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड के काफलपानी गाँव में हुआ था।  इनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। मंगलेश डबराल के पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु।

इनकी रचनाओं के लिए इन्हें कई पुरस्कारों, जैसे साहित्य अकादमीकुमार विकल स्मृति पुरस्कार एवं दिल्ली हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान से सम्मानित किया गया है। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर भी लेखन करते हैं। उनका सौंदर्य-बोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी है।

पाठ 9: संगतकार

मंगलेश डबराल

कवि परिचय

मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तरांचल) के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा हुई देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की।

सन् 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।

मंगलेश डबराल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं और आवाज़ भी एक जगह है। साहित्य अकादेमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मानित मंगलेश की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है।

पाठ-प्रवेश

संगतकार कविता गायन में मुख्य गायक का साथ देनेवाले संगतकार की भूमिका के महत्व पर विचार करती है। दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियों जैसे-नाटक, फ़िल्म, संगीत, नृत्य के बारे में तो यह सही है ही; हम समाज और इतिहास में भी ऐसे अनेक प्रसंगों को देख सकते हैं जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कविता हममें यह संवेदनशीलता विकसित करती है कि उनमें से प्रत्येक का अपना-अपना महत्त्व है और उनका सामने न आना उनकी कमजोरी नहीं मानवीयता है। संगीत की सूक्ष्म समझ और कविता की दृश्यात्मकता इस कविता को ऐसी गति देती है मानो हम इसे अपने सामने घटित होता देख रहे हो।

काव्यांश-1

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती

वह आवाज सुंदर कमजोर काँपती हुई थी वह मुख्य गायक का छोटा भाई है

या उसका शिष्य

या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार

मुख्य गायक की गरज में

वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से

भावार्थ - कवि अपनी इन पंक्तियों में कहता है कि जब मुख्य गायक अपने चट्टान जैसे भारी स्वर में गाता है, तब संगतकार हमेशा उसका साथ देता है। संगतकार की आवाज बहुत ही कमजोर, कापंती हुई प्रतीत हो रही है। लेकिन फिर भी वह बहुत ही मधुर थी, जो मुख्य गायक की आवाज के साथ मिलकर उसकी प्रभावशीलता को और बढ़ा देती है। कवि को ऐसा लगता है कि यह संगतकार गायक का कोई बहुत ही करीब का रिश्तेदार या जान-पहचान वाला है, या फिर ये उसका कोई शिष्य है, जो कि उससे गायकी सीख रहा है। इस प्रकार, वह बिना किसी की नजर में आए, निरंतर अपना कार्य करता रहता है

काव्यांश-2

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में

खो चुका होता है

या अपने ही सरगम को लाँघकर

चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में

तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है

जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान

जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन जब वह नौसिखिया था।

भावार्थ - इन पंक्तियों में कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि जब कोई महान संगीतकार अपने गाने की लय में डूब जाता है, तो उसे गाने के सुर-ताल की भनक नहीं पड़ती और वह कभी कभी अपने गाने में कहीं भटक-सा जाता है। आगे सुर कैसे पकड़ना है, यह उसे सम नहीं आता और वह उलझ-सा जाता है।

काव्यांश-3

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला

प्रेरणा साथ छोड़ती हुई, उत्साह अस्त होता हुआ

आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता

कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर

कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ

यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है

और यह कि फिर से गाया जा सकता है

भावार्थ - उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब कभी मुख्य गायक ऊंचे स्वर में गाता है तो उसका गला बैठने लगता है। उससे सुर सँभलते नहीं हैं। तब गायक को ऐसा लगने लगता है जैसे कि अब उससे आगे गाया नहीं जाएगा। उसके भीतर निराशा छाने लगती है। उसका मनोबल खत्म होने लगता है। उसकी आवाज कांपने लगती हैं जिससे उसके मन की निराशा व हताशा प्रकट होने लगती है।

उस समय मुख्य गायक को हौसला बढ़ाने वाला व उसके अंदर उत्साह जगाने वाला संगतकार का मधुर स्वर सुनाई देता हैं। उस सुंदर आवाज को सुनकर मुख्य गायक फिर नए जोश से गाने लगता है

कवि आगे कहते हैं कि कभी- कभी संगतकार मुख्य गायक को यह बताने के लिए भी उसके स्वर में अपना स्वर मिलाता है कि वह अकेला नहीं है। कोई है जो उसका साथ हर वक्त देता है। और यह भी बताने के लिए कि जो राग या गाना एक बार गाया जा चुका है। उसे फिर से दोबारा गाया जा सकता है।

काव्यांश-4

गाया जा चुका राग

और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है

या अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की जो कोशिश है

उसे विफलता नहीं

उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

भावार्थ - उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब भी संगतकार मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलता है यानि उसके साथ गाना गाता है तो उसकी आवाज में एक हिचक साफ सुनाई देती है। और उसकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि उसकी आवाज मुख्य गायक की आवाज से धीमी रहे।

लेकिन हमें इसे संगतकार की कमजोरी या असफलता नही माननी चाहिए क्योंकि वह मुख्य गायक के प्रति अपना  सम्मान प्रकट करने के लिए ऐसा करता है। यानि अपना स्वर ऊँचा कर वह मुख्य गायक के सम्मान को ठेस नही पहुंचाना चाहता है। यह उसका मानवीय गुण हैं।