पाठ 4: एही ठैयां झूलनी हेरानी हो रामा!

शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’(1911-1970)

लेखक परिचय

शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ का जन्म सन् 1911 में काशी में हुआ। उनकी शिक्षा काशी के हरिश्चंद्र कॉलेज, क्वींस कॉलेज एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हुई। रुद्र जी स्कूल एवं विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया और कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया। बहुभाषाविद् रुद्र जी एक साथ ही उपन्यासकार, नाटककार, गीतकार, व्यंग्यकार, पत्रकार और चित्रकार थे।

उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- बहती गंगा, सुचि (उपन्यास), ताल तलैया, गजलिका, परीक्षा पचीसी (गीत एवं व्यंग्य गीत संग्रह)। उनकी अनेक संपादित रचनाएँ काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हुई हैं। वे सभा के प्रधानमंत्री पद पर भी रहे। सन् 1970 में उनका देहांत हो गया।

पाठ-प्रवेश

सन् 1952 में प्रकाशित शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ की अनूठी मानी जाने वाली कृति बहती गंगा में काशी के दो सौ वर्षों (1750-1950) के अविच्छिन्न जीवन प्रवाह की अनेक झाँकियाँ हैं जिनमें से एक झाँकी है एही ढैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! (हे राम इसी स्थान पर मेरी झुलनी-नाक के दोनों छिद्रों के बीच पहने जाने वाला गहना-खो गई है)। काशी की बेफ्रिकी, अक्खड़ बोली-बानी का अपना एक रंग है और इसी रंग से विद्यार्थियों को रूबरू कराने के लिए यह कहानी संकलित की गयी है।

बनारस में चार-पाँच के समूह में गानेवालियों की एक परंपरा रही है-गौनहारिन दुलारी बाई उसी परंपरा की एक कड़ी है। उसका परिचय एक कार्यक्रम में 17 वर्षीय टुन्नू से होता है जो संगीत में उसका प्रतिद्वंद्वी था। टुन्नू और दुलारी के बीच विकसित होता यह प्रेम गोपन भी है और प्रकट भी, मानवीय भी है और अतिमानवीय भी. अस्वीकृत भी है और स्वीकृत भी, वैयक्तिक भी है और सामाजिक भी। अपने सारे अंतर्विरोध के साथ पलता दुलारी और टुन्नू का व्यक्तिगत प्रेम का अंततः देश-प्रेम में परिणत हो जाना ही इस कहानी को एक नया स्वर देता है। लेखक ने यहाँ तथाकथित समाज की मुख्य धारा से बहिष्कृत और उपेक्षित समझ जाने वाले वर्ग के अंतर्मन में व्याप्त जन्मभूमि के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता के जुए को उतार फेंकने की उत्कट लालसा और आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को रेखांकित किया है। कहानी एक साथ कई उद्देश्यों को लेकर चलती है जिसमें सच न छापने वाले संपादक का दोहरा चरित्र भी सामने आता है।

शब्दार्थ

  • विलोल-चंचल, अस्थिर
  • दुक्कड़ -तबले जैसा एक बाजा
  • कजली -एक तरह का लोकगीत
  • दबती-लिहाज करना
  • गौनहारियों-गाने का पेशा करने वाली
  • रंग उतर- शोभा या रौनक घटना
  • बिथा- व्यथा
  • डांका- लांघना
  • मेघमाला- आंसूओं की झड़ी
  • उद्भ्रांत- भ्रमित चित्त