CHAPTER 2
भालू ने खेली फुटबॉल

कहानी का सारांश

सर्दियों का मौसम था। चारों तरफ कोहरा छाया हुआ था। एक शेर का बच्चा गोल-मटोल बनकर जामुन के पेड़ के नीचे सोया हुआ था। तभी एक भालू सैर करता हुआ जामुन के पेड़ के नीचे जा पहुँचा। वहाँ उसने जामुन के पेड़ के नीचे शेर के बच्चे को पड़ा देखा। उसने शेर के बच्चे को समझा कि यह फुटबॉल है। उसने जोर से अपने पैरों से उसे उछाल दिया। घबराया शेर का बच्चा दहाड़ा और उसने पेड़ की एक डाल पकड़ ली। परंतु डाल टूट गई। भालू को मामला समझ में आ गया। उसने दौड़कर फुर्ती से शेर के बच्चे को पकड़ लिया। किंतु यह क्या? शेर का बच्चा भालू को फिर से उछालने के लिए कह रहा था। इस प्रकार से, भालू ने शेर के बच्चे को एक नहीं, दो नहीं, बल्कि कई बार अपने पैरों से मारकर उछाला। शेर के बच्चे को उछलने में मजा आ रहा था, किंतु भालू थककर परेशान हो गया था। बारहवीं बार शेर के बच्चे को उछालकर भालू अपने घर की ओर भाग खड़ा हुआ। इस बार शेर का बच्चा धड़ाम से जमीन पर आ गया और पेड़ की डाल भी टूट गई। पेड़ की टूटी डाली देखकर माली शेर के बच्चे पर बरस पड़ा और उससे हर्जाने की माँग करने लगा। शेर के बच्चे ने माली से कहा कि ठीक हो जाने पर मैं तुम्हें हर्जाना दे दुंगा । माली ने कहा कि ठीक है, मैं अभी आता हूँ । माली के वहाँ से जाते ही शेर का बच्चा भी नौ दो ग्यारह हो गया। उसने सोचा कि जान बची तो लाखों पाए। 

शब्दार्थः  कोहरा ओले या ओस के छोटे कण जो वातावरण में भाप के रूप में छा जाते हैं।
सैर-भ्रमण। दहाड़ना-गुर्राना, गरजना।
डाली - पेड़ की छोटी शाखा।
फुर्ती - शीघ्र, जल्दी।
हर्जाना - मुआवजा, क्षतिपूर्ती।
नौ-दो ग्यारह होना - भाग जाना।