CHAPTER 8
तितली और कली
कविता का सारांश
‘तितली और कली’ शीर्षक कविता की कवयित्री शोभा देवी मिश्र हैं। इस कविता में कवयित्री कहती हैं कि पौधे की हरी डाल पर एक नन्ही सुंदर-सी कली लगी हुई थी। एक तितली ने उस कली के पास आकर कहा कि-तुम बड़ी सुंदर लग रही हो। अब तुम जागो, अपनी आँखें खोलो और हमारे संग खेलो। अपनी सुगंध गली-गली में फैलाओ। खेलने की बात सुनकर कली छिटककर खिल उठी। कली को खिलता देख कर तितली उसे छूने के लिए चल पड़ी।
काव्यांशों की व्याख्या
हरी डाल पर लगी हुई थी,
नन्ही सुंदर एक कली।
तितली उससे आकर बोली,
तुम लगती हो बड़ी भली।
अब जागो तुम आँखें खोलो,
और हमारे सँग खेलो।
फैले सुंदर महक तुम्हारी,
महके सारी गली गली।
शब्दार्थ: डाल - पेड़-पौधों की शाखा।
नन्ही - छोटी।
भली - अच्छी।
महक - सुगंध।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘रिमझिम’ भाग-2 में संकलित कविता ‘तितली और कली’ से ली गई हैं। इसमें कवयित्री शोभा देवी मिश्र ने एक तितली तथा एक कली के बीच संवाद का चित्रण किया है।
व्याख्या – एक पौधे की हरी डाल पर एक छोटी-सी सुंदर कली थी। एक तितली उसके पास आकर बोली कि वह बहुत ही सुंदर लग रही है। तितली कली से बोली कि-अब तुम जागो तथा अपनी आँखें खोलो और अपनी सुगंध को गली-गली में पहुँचाओ।
कली छिटककर खिली रँगीली,
तुरंत खेल की सुनकर बात।
साथ हवा के लगी भागने,
तितली छूने उसे चली।
शब्दार्थ: छिटकना – खिलकर, मुँह खोलकर,
रँगीली - सुंदर रंगों से भरी।
प्रसंग – पूर्ववत।
व्याख्या – खेल की बात सुनते ही कली फैलकर खिल उठी। यह देखकर तितली कली को छूने चल पड़ी।