पाठ 10: नेताजी का चश्मा

स्वयं प्रकाश

लेखक परिचय

स्वयंप्रकाश का जन्म सन् 1947 में इंदौर (मध्यप्रदेश) स्वयं में हुआ। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी करने वाले स्वयं प्रकाश का बचपन और नौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थान में बीता। फिलहाल स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद वे भोपाल में रहते हैं और वसुधा पत्रिका के संपादन से जुड़े हैं।

आठवें दशक में उभरे स्वयं प्रकाश आज समकालीन कहानी के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनके तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें सूरज कब निकलेगा, आएँगे अच्छे दिन भी, आदमी जात का आदमी और संधान उल्लेखनीय हैं। उनके बीच में विनय और ईंधन उपन्यास चर्चित रहे हैं। उन्हें पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादेमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से जा चुका है। पुरस्कृत किया जा चुका है।

पाठ प्रवेश

चारों ओर सीमाओं से घिरे भूभाग का नाम ही देश नहीं होता। देश बनता है उसमें रहने वाले सभी नागरिकों, नदियों, पहाड़ों, पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों से और इन सबसे प्रेम करने तथा इनकी समृद्धि के लिए प्रयास करने का नाम देशभक्ति है। नेताजी का चश्मा कहानी कैप्टन चश्मे वाले के माध्यम से देश के करोड़ों नागरिकों के योगदान को रेखांकित करती है जो इस देश के निर्माण में अपने-अपने तरीके से सहयोग करते हैं। कहानी यह कहती हैं कि बड़े ही नहीं बच्चे भी इसमें शामिल हैं।

सारांश

प्रस्तुत कहानी द्वारा समाज में देश प्रेम की भावना को जागृत किया गया है। पाठ का नायक ‘कैप्टन’ साधारण व्यक्ति होने के बावजूद भी एक देशभक्त नागरिक है। वह कभी नेताजी को बिना चश्मे के नहीं रहने देता है। इस कहानी द्वारा लेखक चाहता है कि देशवासी लोगों की कुर्बानियों को न भूलें और उन्हें उचित सम्मान दें।