CHAPTER 6

बहुत हुआ 

 कविता का सारांश 

प्रस्तुत कविताबहुत हुआके कवि हरीश निगम हैं। इस कविता में कवि ने वर्षा के कारण बच्चों को होने वाली कठिनाइयों का वर्णन किया है। बच्चों के माध्यम से कवि कहता है कि हे बादल भईया, अब पानी बरसाना बंद करो। बहुत हो चुका। रात भर वर्षा के कारण घर के चूने से हम सब को नानी याद गई है। हम कहाँ जाएँ और कहाँ खेलें। चारों तरफ कीचड़ और पानी है। घर में फँसकर हमारी स्थिति पिंजरे में बंद सुग्गे (तोते) की तरह हो गई है। बच्चे सूरज दादा से प्रार्थना करते हैं कि वे जल्दी धूप खिलाएँ। बच्चे अपने दोस्तों से कहते हैं कि सब मिलकर सड़कों से पानी हटने की दुआ करें।

काव्यांशों की व्याख्या
 बादल
भईया बहुत हुआ!

कीचड़-कीचड़ पानी पानी।

याद सभी को आई नानी
सारा घर दिन रात चुआ 

शब्दार्थ:   कीचड़   -   पानी में मिली हुई धूल या मिट्टी।

चुआ   -  टपका।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-2 में संकलित कविताबहुत हुआसे ली गई हैं। इस कविता के कवि हरीश निगम ने वर्षा के कारण बच्चों को होने वाली कठिनाइयों का वर्णन किया है।

व्याख्या – इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बादल से कहता है कि बादल भइया, कीचड़-कीचड़, पानी-पानी अब अब बस करो। वर्षा के कारण सभी बच्चों को नानी याद गई है तथा घर दिन-रात टपकता रहता है।

जाएँ कहाँ कहाँ पर खेलें?
घर में फंसे बोरियत झेलें
ज्यों पिंजरे में मौन सुआ
सूरज दादा धूप खिलाएँ
ताल नदी सड़कों से जाएँ
तुम भी भैया करो दुआ!

शब्दार्थ: बोरियत  -  मन लगना उबाऊपन।

मौन  चुप, खामोश।

सुआ सुग्गा, तोता। ताल  - तालाब।

प्रसंग पूर्ववत।

व्याख्या इन पंक्तियों में बच्चे कह रहे हैं कि वर्षा के कारण हम कहाँ जाएँ और कहाँ खेलें। घर में फँसकर हम बोर हो जाएँगे। यहाँ हमारी स्थिति पिंजरे में बंद तोते की तरह हो गई है। बच्चे सूरज दादा से धूप खिलाने को कह रहे हैं। वे अपने मित्रों से कह रहे हैं कि सब मिलकर दुआ करो कि सड़कों पर से जमा पानी निकल जाए।