CHAPTER 3
म्याऊँ, म्याऊँ!!
कविता का सारांश
‘म्याऊँ, म्याऊँ’ शीर्षक कविता के कवि धर्मपाल शास्त्री हैं। इस कविता में कवि ने एक छोटी बच्ची के मन में एक चुहिया के प्रति उपजे डर का वर्णन किया है। एक चुहिया ने एक सोई हुई बच्ची की नाक की नोक पर चूँटी काट ली। लड़की बिलख-बिलखकर रोने लगी। वह सामने चुहिया को देखकर डर के मारे काँपने लगी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तभी उसे चुहिया को डराने की एक तरकीब सूझी। वह चुहिया को डराने के लिए बिल्ली की आवाज़ में म्याऊँ, म्याऊँ करने लगी।
काव्यांशों की व्याख्या
सोई सोई एक रात मैं
एक रात मैं सोई-सोई
रोई एकाएक बिलखकर
एकाएक बिलखकर रोई।
रोती क्यों ना, मुझे नाक पर
मुझे नाक की एक नोक पर
काट गई थी चुहिया चूँटी
चुहिया काट गई चूंटी भर।
शब्दार्थः बिलखना – जोर-जोर से रोना।
चूंटी – चिकोटी।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-2 में संकलित कविता ‘म्याऊँ, म्याऊँ!’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि धर्मपाल शास्त्री ने एक चुहिया से डरी हुई लड़की की मनोदशा का चित्रण किया है।
व्याख्या – रात में सोए-सोए अचानक एक छोटी लड़की बिलख-बिलखकर रोने लगी, क्योंकि उसकी नाक की नोक पर किसी चुहिया ने चूंटी काट ली थी।
सचमुच बहुत डरी चुहिया से
चुहिया से सच बहुत डरी मैं
खड़ी देखकर चुहिया को मैं
लगी काँपने घड़ी-घड़ी मैं।
सूझा तभी बहाना मुझको
मुझको सूझा एक बहाना
जरा डराना चुहिया को भी
चुहिया को भी ज़रा डराना।
कैसे भला डराऊँ उसको
कैसे उसको भला डराऊँ
धीरे से मैं बोली म्याऊँ
म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ।
शब्दार्थः काँपना – थरथराना। घड़ी-घड़ी – एक-एक क्षण।
सूझना – ध्यान में आना। ज़रा – थोड़ा, कम। प्रसंग – पूर्ववत।
व्याख्या – लड़की कह रही है कि वह चुहिया को देखकर बहुत ही डर गई। चुहिया को सामने देखकर वह थरथर काँपने लगी। तभी उसे चुहिया को डराने की एक तरकीब सूझी। चुहिया को डराने के लिए वह ‘म्याऊँ, म्याऊँ’ कहने लगी।