CHAPTER 13
सूरज जल्दी आना जी 

कविता का सारांश
प्रस्तुत कविता ‘सूरज जल्दी आना जी’ के कवि रमेश तैलंग हैं। इस कविता में बच्चे सूरज से जल्दी निकलने का आग्रह कर रहे हैं। बच्चे कह रहे हैं कि चारों तरफ़ कुहासा (कोहरा) फैला है तथा आर-पार कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा। क्या ऐसे कोई किसी के घर टिकता है? बच्चे सूरज से सच-सच बताने के लिए कह रहे हैं। कल की बारिश में जो कपड़े भीग गए थे, वे अब तक गीले हैं। दीवार तथा दरवाजे सब-के-सबै सीले हैं। बच्चे सूरज से कह रहे हैं कि बहाना छोड़कर जल्दी आ जाओ।

काव्यांशों की व्याख्या
एक कटोरी, भर कर गोरी 
धूप हमें भी लाना जी।
सूरज जल्दी आना जी।

जमकर बैठा यहाँ कुहासा
आर-पार न दिखता है।
ऐसे भी क्या कभी किसी के
घर में कोई टिकता है?
सच-सच जरा बताना जी।
सूरज जल्दी आना जी।

शब्दार्थ: कुहासा-कोहरा। टिकना-ठहरना।।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-2 में संकलित कविता ‘सूरज जल्दी आनी जी’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि रमेश तैलंग हैं। इसमें कवि बच्चों के माध्यम से सूरज को जल्दी निकलने के लिए कह रहा है।
व्याख्या – बच्चे सूरज से जल्दी निकलने को कह रहे हैं। बच्चे कह रहे हैं कि यहाँ चारों तरफ़ कुहासा फैला है और आर-पार कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा है। ऐसे में क्या कोई किसी के घर में टिकता है। बच्चे सूरज से इस बारे में सच-सच बताने तथा जल्दी आने को कह रहे हैं।

कल की बारिश में जो भीगे।
कपड़े अब तक गीले हैं। 
क्या दीवारें, क्या दरवाजे

सब-के-सब ही सीले हैं।
छोड़ो आज बहाना जी।
ना-ना ना-ना ना-ना जी।
सूरज जल्दी आना जी।।

शब्दार्थ: बारिश-वर्षा,
 सीला-गीला, तर।

प्रसंग – पूर्ववत।
व्याख्या – बच्चे सूरज से कह रहे हैं कि कल की बारिश में जो कपड़े भीग गए थे, वे अब तक गीले हैं। दरवाजे और दीवारें भी गीली हो गई हैं। बच्चे सूरज से कह रहे हैं कि बहाना बनाना छोड़कर जल्दी से आ जाओ।