CHAPTER 12
बस के नीचे बाघ 

कहानी का सारांश

किसी जंगल में एक छोटा बाघ खेल रहा था। खेलते-खेलते वह जंगल के पासवाली सड़क पर निकल आया। वहाँ एक बस खड़ी थी। बस का दरवाजा खुला था। बाघ अपने पंजे को सीढ़ी पर रखकर बस के भीतर देखने लगा। उसने देखा कि बस के भीतर आगे की तरफ से घर-घर की आवाज़ आ रही है और उसके पास एक आदमी बैठा है। बाघ ने देखा कि उस आदमी के सामने एक दीवार में से बाहर की हर चीज़ साफ़ दिखाई दे रही है। बाघ ने देखा कि बस में कई लोग बैठे हैं। आगेवाली सीट पर छोटी लड़कियाँ बैठी थीं। बाघ को लगा कि लोग उससे डर रहे हैं और उसे भगाना चाहते हैं।
तभी सामने की सीट पर बैठा आदमी दरवाजा खोलकर बाहर कूद गया। बाकी लोग भी बस के पीछेवाले दरवाजे से बाहर भागने लगे। लोगों को भागता देखकर बाघ घबरा गया और बस के आगेवाले पहिये के पास जाकर दुबक गया। किंतु वहाँ उसे अच्छा नहीं लगा। थोड़ी देर के बाद वह बाहर निकला तथा बस के सामने वाली सीट पर बैठकर बाहर देखने लगा। सामने से काफी लोगों से भरी बस आ रही थी। बाघ सोचने लगा कि आखिर उसे देखकर लोग क्यों भाग गए।

शब्दार्थ: पंजा - पैर की अगॅलियों सहित अगला चौड़ा भाग।
अज़ीब - विचित्र, अनोखा।
चीज़ - वस्तु। दरवाज़ा - द्वार, फाटक।

पहिया-चक्का।