CHAPTER 1

ऊँट चला 

काव्यांशों की व्याख्या

ऊँट चला, भई ऊँट चला
हिलता डुलता ऊँट चला।

इतना ऊँचा ऊँट चला
ऊँट चला, भई ऊँट चला।
ऊँची गर्दन, ऊँची पीठ
पीठ उठाए ऊँट चला।

प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-2 में संकलित कविता ‘ऊँट चला’ से ली गई हैं। इस कविता के कवि प्रयाग शुक्ल ने एक ऊँट के क्रियाकलापों का वर्णन किया है
व्याख्या – उपर्युक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि हिलता-डुलता ऊँट चला जा रहा है। ऊँट का कद काफी ऊँचा है। वह ऊँची गर्दन तथा ऊँची पीठ किए चला जा रहा है।

बालू है, तो होने दो।  
बोझ ऊँट को ढोने दो।
नहीं फँसेगा बालू में

बालू में भी ऊँट चला।
जब थककर बैठेगा ऊँट
किस करवट बैठेगा ऊँट?
बता सकेगा कौन भला
ऊँट चला, भई ऊँट चला।

शब्दार्थ : बालू-रेत। करवट-हाथ या पीठ के बल लेटने की स्थिति।
प्रसंग-पूर्ववत।

व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहता है कि बालू में ऊँट नहीं फँसेगा। वह इसमें भी बोझ ढो सकता है। जब ऊँट थककर बैठेगा तो वह किस करवट बैठेगा, कोई नहीं बता सकता। कवि पुनः कहता है कि ऊँट चलता जा रहा है, चलता ही जा रहा है।