CHAPTER 8

चूहो! म्याऊँ सो रही है 

 कविता का सारांश
चूहो। म्याऊँ सो रही हैनामक इस कविता के रचयिता धर्मपाल शास्त्री हैं। इस कविता में कवि ने एक दिन बिल्ली मौसी के सो जाने पर चूहों को स्वच्छंदतापूर्वक मनमानी करने हेतु ललकारा है। इस कविता में कवि कह रहे हैं कि घर के पीछे तथा छत के नीचे पाँव पसारे, पूँछ सँवारे बिल्ली मौसी सो रही है। उसकी साँसों सेघर घर घर घरकी आवाज़ रही है। बिल्ली सोई है और रसोई में खाने-पीने की चीजों से भरे हुए पतीले और रसीले चने रखे हैं। कवि चूहों से कहता है कि झटका देकर मटके को उलट दो तथा जो कुछ मिले, उसे चट कर जाओ। आज तुम्हें किसी बात का डर नहीं है। आज तुम किसी भी चीज़ को कुतर सकते हो। तुम अपनी पूँछ मरोड़ों, पूँछ सिकोड़ों या कितना भी तबाही मचा दो, आज कोई कुछ कहनेवाला नहीं है, क्योंकि आज बिल्ली सो रही है। आज घर पर तुम्हारा ही राज है।

काव्यांशों की व्याख्या
घर के पीछे, छत के नीचे,
पाँव पसारे, पूँछ सँवारे।

देखो कोई,मौसी सोई,
नासों में से, साँसों में से।
घर
घर घर घर हो रही है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।

शब्दार्थ : पसारे -फैलाए।
नास नाक।
प्रसंग : उपर्युक्त पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम,भाग-1 में संकलित कविताचूहो! म्याऊँ सो रही हैसे ली गई हैं। इसके रचयिता धर्मपाल शास्त्री हैं। इसमें कवि ने बिल्ली के सो जाने पर चूहों को अपनी मनमानी करने के लिए ललकारा है।
व्याख्या : इन पंक्तियों में कवि कहता है कि घर के पीछे तथा छत के नीचे, पाँव पसारे एवं पूँछ सँवारे बिल्ली सो रही है। बिल्ली मौसी की नाक और साँसों से घर-घर की आवाज़ रही है।

 

बिल्ली सोईखुली रसोई,
भरे पतीलेचने रसीले।  

उलटो मटकादेकर झटका,
जो कुछ पाओचट कर जाओ।
आज हमारा दूध दही हैचूहो! म्याऊँ सो रही है।

शब्दार्थ : पतीला - चौड़े मुँह की बटलोई।
रसीला- रस से भरा हुआ।
मटका- मिट्टी का बड़ा घड़ा।
प्रसंग: पूर्ववत।

व्याख्या : कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि बिल्ली सो रही है और रसोईघर खुला पड़ा है। इसमें भरे हुए पतीले तथा रसीले चने रखे हैं। कवि चूहों से कहता है कि एक झटके में मटके को उलट दो तथा जो कुछ मिले, उसे चट कर जाओ। आज रसोईघर में रखा दूध-दही सब हमारा है। इसका कारण यह है कि बिल्ली सो रही है।

मूंछ मरोड़ो, पूँछ सिकोड़ो,
नीचे उतरो, चीजें कुतरो। 

आज हमारा, राज हमारा,
करो तबाही, जो मनचाही।

आज मची है, चूहा शाही,
डर कुछ भी चूहों को नहीं है,
चूहो! म्याऊँ सो रही है।

शब्दार्थ : कुतरना -काटना।
चूहा शाही -चूहों का राज।
प्रसंग: पूर्ववत।
व्याख्या
: कवि चूहों को ललकारते हुए कहता है कि अपनी मूंछे मरोड़कर, पूँछे सिकोड़कर नीचे उतरो और चीज़ों को कुतर डालो। आज तो केवल चूहों का ही राज है। आज चूहों को किसी का भी डर नहीं है, क्योंकि बिल्ली सो रही है।