CHAPTER 7

रसोईघर 

कविता का सारांश
‘रसोईघर’ मधु पंत द्वारा लिखित एक रोचक कविता है। इस कविता के माध्यम से कवयित्री बड़े ही रोचक शब्दों में रसोईघर की चीजों का वर्णन कर रही हैं। खेलते हुए मुन्ना मुन्नी जब रसोईघर की खिड़की को खोलकर देखते हैं तो पाते हैं कि अंदर चकला-बेलन, चाकू-छलनी आदि बातें कर रहे हैं। चाकू कहता है कि मैं फल और सब्ज़ियाँ काटता हूँ और टुकड़े टुकड़े करके सभी को बाँटता हूँ। गाजर-मूली, प्याज-टमाटर आदि को मैं काटता तथा छीलता हूँ और लोग इसे सजाकर रखते हैं। थाली कहती है कि मेरा आकार गोल चौड़ा-सा है और मैं ताली की तरह बज भी सकती हूँ। मुझमें रोटी-सब्ज़ी डालकर सब झटपट खाते हैं।
काव्यांशों की व्याख्या
आज रसोईघर की खिड़की,  
मुन्ना-मुन्नी खोल रहे हैं।

अंदर देखा, चकला-बेलन,
चाकू-छलनी बोल रहे हैं।

मैं चाकू, सब्जी-फल काटू,
टुकड़ा-टुकड़ा सबको बाँटू।
गाजर-मूली प्याज-टमाटर,
छीलो काटो रखो सजाकर।

शब्दार्थ : चकला-पत्थर या काठ का गोल पाटा, जिस पर रोटी बेली जाती है। बेलन-काठ का लंबा दस्ता, जो रोटी आदि बेलने के काम आता है।
प्रसंग : उपर्युक्त पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-1 में संकलित कविता ‘रसोईघर’ से ली गई हैं। इस कविता की कवयित्री मधु पंत हैं। इसमें रसोईघर में प्रयोग में लाई जानेवाली चीज़ों के महत्व के विषय में बताया गया है।
व्याख्या : आज जब मुन्ना-मुन्नी ने रसोईघर की खिड़की खोली तो अंदर देखा कि चकला-बेलन, चाकू-छलनी इत्यादि आपस में बातचीत कर रहे हैं। चाकू कह रही है कि मैं फल-सब्जी आदि को टुकड़ा-टुकड़ा करके सबको बाँटता हूँ। मैं गाजर-मूली, प्याज-टमाटर आदि को काटता तथा छीलता हूँ और लोग इसे सजाकर रखते हैं।

गोल चाँद-सी हूँ मैं थाली,   
बज सकती हूँ बनकर ताली।

मुझमें रोटी-सब्ज़ी डाली,
और सभी ने झटपट खा ली।

प्रसंग : पूर्ववत।
व्याख्याः इन पंक्तियों में थाली कहती है कि मैं गोल चाँद-सी हूँ। मैं ताली बनकर बज सकती हूँ। मुझमें रोटी-सब्ज़ी रखकर हर कोई झटपट खाना खाता है।