CHAPTER 18

छोटी का कमाल 

कविता का सारांश
‘छोटी का कमाल’ कविता के कवि सफ़दर हाश्मी हैं। इस कविता में उन्होंने एक मोटे लड़के और एक पतली लड़की का बड़े ही चुटीले शब्दों में वर्णन किया है। कवि कहता है कि समरसिंह नामक एक लड़का अपने मोटापे पर बहुत घमंड करता था। वह ‘छोटी’ नामक एक दुबली-पतली लड़की को हेय दृष्टि से देखता था। वह अपने को आलू भरा पराँठा और छोटी को पतली रोटी कहता था। वह अपने को लंबा, मोटा-तगड़ा तथा मोटा पटसन का रस्सा समझता था, जबकि छोटी को दुबली-पतली तथा छोटी कच्ची सुतली। लेकिन जब दोनों सी-सॉ पर बैठे तो समरसिंह के होश ठिकाने आ गए। हल्की होने के कारण छोटी झूले के दूसरे हिस्से में चोटी पर पहुँच गई और समरसिंह भारी होने के कारण झूले के दूसरे छोर पर नीचे रह गया। समरसिंह की अकड़ दूर हो गई।
काव्यांशों की व्याख्या
समरसिंह थे बहुत अकड़ते,
छोटी, कितनी छोटी।
मैं हूँ आलू भरा पराँठा.

छोटी पतली रोटी।
मैं हूँ लंबा, मोटा तगड़ा,
छोटी पतली दुबली।

मैं मोटा पटसन का रस्सा,
छोटी कच्ची सुतली।

शब्दार्थ: अकड़ना- घमंड दिखाना।
पटसन- एक पौधा, जिसके रेशे से रस्सी, बोरा आदि बनाए जाते हैं।
सुतली- डोरी, रस्सी।

प्रसंग: उपर्युक्त पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-1 में संकलित कविता ‘छोटी का कमाल’ से ली गई हैं। यह कविता सफ़दर हाश्मी द्वारा रचित है। इसमें उन्होंने एक मोटे लड़के के घमंड को दर्शाया है।
व्याख्या: समरसिंह नामक लड़के को अपने मोटापे पर बहुत घमंड है। वह पतली लड़की छोटी को बड़े ही उपहास की दृष्टि से देखता है। वह सोचता है कि मैं आलू भरे पराँठे की तरह हूँ और छोटी पतली रोटी की तरह। मैं लंबा, मोटा-तगड़ा हूँ, जबकि छोटी दुबली-पतली। समरसिंह अपने को पटसन का रस्सा तथा छोटी को कच्ची सुतली मानता है।

लेकिन जब बैठे सी-सॉ पर,  
होश ठिकाने आए,

छोटी जा पहुँची चोटी पर,
समरसिंह चकराए।

शब्दार्थ: होश ठिकाने आना-समझ में आना।
चोटीऊँचाई।
चकराना- चकित होना।

प्रसंग: पूर्ववत।
व्याख्याः कवि कहता है कि अपनी लंबाई-चौड़ाई तथा मोटापे के अभिमान में डूबे समरसिंह जब सी-सॉ पर बैठे तब उनका घमंड चूर हो गया। हल्की होने के कारण छोटी झूले के दूसरे छोर पर ऊपर हो गई, जबकि मोटा और भारी होने के कारण समरसिंह नीचे रह गए और उनका घमंड जाता रहा।