CHAPTER 17

चकई के चकदुम 

कविता का सारांश
चकई के चकदुमकविता के रचयिता रमेश तैलंग हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने ग्रामीण परिवेश का चित्रण बड़े ही सुंदर और सहज शब्दों में किया है। कवि बच्चों से कहता है कि आओ, हम तुम मिलकर गाँव में बनी झोंपड़ी में साथ-साथ रहें। ग्वाले की गाय का दूध हम-तुम मिलकर पिएँ। कवि कहता है कि हम-तुम मिलकर पानी में कागज़ की नाव तैराएँ और फुलवा की बगिया से फूल चुनें। अंत में वे खेल समाप्ति की घोषणा करते हैं और घर चलने को कहते हैं।
काव्यांशों की व्याख्या
चकई के चकदुम, चकई के चकदुम!
गाँव की मडैया, साथ रहें हम-तुम।
चकई
के चकदुम, चकई के चकदुम!
ग्वाले की गैया, दूध पिएँ हम-तुम।

शब्दार्थ: मडैया - झोंपड़ी।
ग्वाला- गाय पालने वाला।
गैयागाय।
प्रसंग: उपर्युक्त पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-1 में संकलित कविताचकई के चकदुमसे ली गई हैं। इस कविता के रचयिता रमेश तैलंग ने बड़े ही सरल और सहज शब्दों में बच्चों को ग्रामीण परिवेश से परिचित करवाया है।
व्याख्या: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बच्चों से एक बड़ा ही रोचक खेलचकई के चकदुमखेलने के लिए कहता हैं। कवि कहता है कि हम-तुम मिलकर गाँव की झोंपड़ी में रहें और ग्वाले की गाय का दूध साथ मिलकर पिएँ।

चकई के चकदुम, चकई के चकदुम!
कागज़ की नैया, पार करें हम-तुम। 

चकई के चकदुम, चकई के चकदुम!
फुलवा की बगिया, फूल चुनें हम-तुम।

चकई के चकदुम, चकई के चकदुम!
खेल खतम भैया! आओ चलें हम-तुम!

शब्दार्थ : नैया- नाव।
बगिया- फुलवारी।
प्रसंग: पूर्ववत।
व्याख्या : उपर्युक्त पंक्तियों में कवि बच्चों से कागज की नाव बनाकर पानी में तैराने के लिए कहता हैं। वह कहता है कि हम-तुम मिलकर फुलवा की बगिया (फुलवारी) से फूल चुनें। अंत में वे खेल समाप्ति की घोषणा करते हुए अपने-अपने घर चलने के लिए कहते हैं।