CHAPTER 10

पगड़ी 

 

कविता का सारांश
पगड़ीएक बड़ी रोचक कविता है, जिसके रचनाकार सर्वेश्वरदयाल सक्सेना हैं। इस कविता में विचित्र स्थितियों का सामना करती एक पगड़ी का वर्णन किया गया है। कवि कह रहा है कि एक पगड़ी को रगड़-रगड़कर इतना साफ़ किया गया कि मैल तो रह गई, किंतु पगड़ी फट गई। इस पर पगड़ी की हट्टी-कट्टी मालकिन इतनी झगड़ी कि मैल और पगड़ी दोनों ही तर-बतर हो गए।
काव्यांशों की व्याख्या
मैली पगड़ी
इतनी रगड़ी,
इंतनी रगड़ी,
इतनी रगड़ी,
इतनी रगड़ी,
रह गया मैल,
रह गई पगड़ी।

शब्दार्थ : मैली - गंदी।
पगड़ी- सिर पर लपेटकर बाँधने का कपड़ा।

मैल- गंदगी

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक रिमझिम, भाग-1 में संकलित कविता ‘पगड़ी’ से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता सर्वेश्वरदयाल सक्सेना हैं। इसमें कवि ने एक पगड़ी के विषय में बताया है।
व्याख्याः इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि एक मैली पगड़ी को नौकर ने रगड़-रगड़कर इतना साफ किया कि वह तो फट गई लेकिन उसका मैल खत्म नहीं हुआ।

हट्टी-कट्टी।
मोटी-तगड़ी,
मलकिन झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
इतनी झगड़ी,
तर गया मैल,
और तर गई पगड़ी।
शब्दार्थ : हट्टी-कट्टी-मोटी-ताजी।
तर जाना- पूरी तरह से मुक्त हो जाना।

प्रसंग : पूर्ववत।
व्याख्या : नौकर के द्वारा पगड़ी की मैल को साफ़ किए जाने के क्रम में उसके फट जाने पर उसकी मालकिन ने खूब झगड़ा किया। उसने इतना झगड़ा किया कि इसमें पगड़ी और मैल दोनों ही तर गए।