मुख्य उद्देश्य, ध्यान देने योग्य बातें, विधि, शीर्षक

पाठ 1

 अपठित  गद्यांश

अपठित गद्यांश का् मुख्य उद्देश्य

अपठित का अर्थ होता है ‘जो पढ़ा नहीं गया हो’। यह पाठ्यक्रम के बाहर से लिया जाता है। इसके द्वारा छात्रों की काव्य संबंधी समझ का मूल्यांकन किया जाता है। इसके अंतर्गत विषय वस्तु का मूल्यांकन किया जाता है। इसके अंतर्गत विषय वस्तु, अलंकार, भाषिक योग्यता संबंधी समझ की परख की जाती है।

ध्यान देने योग्य बातें एवं विधि

  • दिए गए गद्यांश को कम से कम दो-तीन बार ध्यान से पढ़ना चाहिए।
  • गद्यांश पढ़ते समय मुख्य बातों को रेखांकित कर देना चाहिए।
  • गद्यांश के उत्तर एकदम सरल भाषा में लिखने चाहिए।
  • उत्तर अपनी भाषा में सरल, संक्षिप्त व सहज लिखने चाहिए।
  • प्रश्नों के उत्तर गद्यांश में से हीं तथा कम-से-कम शब्दों में देने चाहिए।
  • उत्तर में जितना पूछा जाए केवल उतना हीं लिखना चाहिए। अर्थात, उत्तर प्रसंग के अनुसार होना चाहिए।
  • मूलभाव के आधार पर शीर्षक लिखना चाहिए।

शीर्षक का चुनाव

  • शीर्षक मूल विषय से संबंधित होना चाहिए।
  • शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक तथा सार्थक होना चाहिए।
  • शीर्षक में अनुच्छेद से संबंधित सारी बातें आ जानी चाहिए।
  • शीर्षक का व्याप मूल विषय से अधिक नहीं होना चाहिए।

उदहारण

आज की भारतीय शिक्षित नारी को गृहणी के रूप में न देख पाना पुरूषों की एकांगी दृष्टि का परिणाम है । विवाह के बाद बदली हुई उनकी मनः स्थिति तथा परिस्थितियों की कठिनाइयों पर ध्यान नहीं दिया जाता। उसकी रूचियों और भावनाओं की उपेक्षा की जाती है। पुरूष यदि अपने सुख के साथ पत्नी के सुख का ध्यान रखे, तो वह अच्छी गृहणी हो सकती है। पत्नी और पति दोनों का कर्तव्य है कि वे एक-दूसरे के कार्य में हाथ बँटाएँ और एक-दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और रूचियों का ध्यान रखें। आखिर नारी भी तो मनुष्य है। उसकी अपनी जरूरतें भी हैं और वह भी परिवार में, पड़ोस तथा समाज में सम्मान पाना चाहती है। यदि नारी त्याग की मूर्ति है, तो पुरुष को बलिदानी होना चाहिए।

परिभाषा, प्रकार, उदाहरण:

पाठ 2: उपसर्ग

उपसर्ग की परिभाषा

“उपसर्ग उस शब्दांश या अव्यय को कहते है, जो किसी शब्द के पहले आकर उसका विशेष अर्थ प्रकट करता है ।तात्पर्य यह है कि जो शब्दांश किसी शब्द के पूर्व (पहले) जुड़ते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं।

उपसर्ग दो शब्दों- उप + सर्ग के योग से बना है। जिसमें ‘उप’ का अर्थ है- समीप, पास या निकट और ‘सर्ग’ का अर्थ है सृष्टि करना। इस तरह ‘उपसर्ग’ का अर्थ है पास में बैठाकर दूसरा नया अर्थवाला शब्द बनाना या नया अर्थ देना । जैसे- ‘यत्न’ के पहले ‘प्र’ उपसर्ग लगा दिया गया तो एक नया शब्द ‘प्रयत्न’ बन गया। इस नए शब्द का अर्थ होगा प्रयास करना।

उपसर्ग के प्रकार

उपसर्गों के तीन प्रकार होते हैं।

संस्कृत उपसर्ग (जिनकी संख्या 22 है)

अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि ।

हिंदी उपसर्ग (इनकी संख्या 10 है)

अ, अध, ऊन, औ, दु, नि, बिन, भर, कु, सु ।

उर्दू उपसर्ग (इनकी संख्या 19 है)

अल, ऐन, कम, खुश, गैर, दर, ना, फ़िल्, ब, बद, बर, बा, बिल, बिला।

उदहारण

हिंदी उपसर्ग और उससे बनने वाले शब्द-

अ (अभाव, नहीं, निषेध)

अपच, अबोध, अजान, अछूता, अथाह, अटल, अलग, अकाज, अचेत, अपढ़, आगाह आदि ।

अन (नहीं, बिना, निषेध)

अनपढ़, अनबन, अनमोल, अनमेल, अनहित, अलग, अनजान, अनसुना, अनकहा, अनदेखा, अनगिनत, अनगढ़, अनहोनी, अनबूझ आदि ।

उपसर्ग बनाने के नियम

 अ उपसर्ग

अ+ भाव = अभाव

अ+थाह   = अथाह

नि उपसर्ग

नि + डर = निडर

जैसे :-  अ+सुंदर = असुंदर (यहां अर्थ बदल गया है )

अति +सुंदर =अतिसुन्दर (यहां शब्द मे विशेषता आई है )

इसी तरह हम अन्य उदाहरण देखेंगे

आ+हार  = आहार (नया शब्द बना है )

प्रति+हार  = प्रतिहार (नया शब्द बना है

प्र+हार  = प्रहार (नया शब्द बना है )

अति+अल्प  = अत्यल्

परिभाषा, प्रकार, उदाहरण:

पाठ 3: प्रत्यय

प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। प्रत्यय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – प्रति + अय। प्रति का अर्थ होता है ‘साथ में, पर बाद में” और अय का अर्थ होता है “चलने वाला”, अत: प्रत्यय का अर्थ होता है साथ में पर बाद में चलने वाला।

प्रत्यय की परिभाषा

प्रति’ और ‘अय’ दो शब्दों के मेल से प्रत्यय’ शब्द का निर्माण हुआ है। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में होता है । ‘अय’ का अर्थ होता है, ‘चलनेवाला । इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश |

अतः जो शब्दांश के अंत में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। जैसे- ‘बड़ा’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय जोड़ कर बड़ाई’ शब्द बनता है।

वे शब्द जो किसी शब्द के अन्त में जोड़े जाते हैं, उन्हें प्रत्यय ( प्रति + अय = बाद में आने वाला) कहते हैं। जैसे- गाड़ी + वान = गाड़ीवान, अपना + पन = अपनापन

प्रत्यय के भेद

संस्कृत के प्रत्यय

हिंदी के प्रत्यय

विदेशी भाषा के प्रत्यय

संस्कृत के प्रत्यय के दो मुख्य भेद हैं

कृत्

तद्धित

कृत्-प्रत्यय

क्रिया अथवा धातु के बाद जो प्रत्यय लगाये जाते हैं, उन्हें कृत्-प्रत्यय कहते हैं। कृत्-प्रत्यय के मेल से बने शब्दों को पीकृदंत कहते हैं।

कृत प्रत्यय के उदाहरण

अक= लेखक, नायक, गायक, पाठक

अक्कड = भुलक्कड, घुमक्कड़, पियक्कड़

आक= तैराक, लडाक

तद्धित प्रत्यय

संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण के अंत में लगनेवाले प्रत्यय को तद्धित’ कहा जाता है। तद्धित प्रत्यय के मेल से बने

शब्द को तद्धितांत कहते हैं।

उदाहरण:

लघु + त= लघुता

बड़ा + आई = बड़ाई

ता = सुंदर + त = सुंदरता

बुढ़ा + प= बुढ़ापा

विदेशज प्रत्यय

 (उर्दू एवं फ़ारसी के प्रत्यय)

विदेशी भाषा से आए हुए प्रत्ययों से निर्मित शब्द

कार – पेश, काश्त

पेशकार, काश्तकार

खाना - डाक, मुर्गी

डाकखाना, मुर्गीखाना

खोर – रिश्वत, चुगल

रिश्वतखोर, चुगलखोर

दान -कलम, पान

कलमदान, पानदान

दार – फल, माल

फलदार, मालदार

आ-  खराब, चश्म

खराबा, चश्मा

आब – गुल, जूल

गुलाब, जुलाब

इन्दा – वसि, चुनि

बसिन्दा, चुनिन्दा

इनके प्रयोग से भाववाचक स्त्रीलिंग शब्द बनते हैं ।

प्रत्यय – मूल शब्द – उदाहरण

ई – रिश्तेदार, दोस्त 

रिश्तेदारी, दोस्ती

बाज- अकड़, नशा

अकड़बाज, नशाबाज

आना – आशिक, मेहनत

आशिकाना, मेहनताना

गर- कार, जिल्द

कारगर, जिल्दगर

उदाहरण

प्रत्यय – मूल क्रिया – उदाहरण

आइन – पण्डित, लाला

पण्डिताइन, ललाइन

आनी – राजपूत, जेठ

राजपूतानी, जेठानी

इन – तेली, दर्जी

तेलिन, दर्जिन

इया – चूहा, बेटा

चुहिया, बिटिया

ई – घोड़ा, नाना

घोड़ी, नानी

नी – शेर, मोर

शेरनी, मोरनी

परिभाषा, प्रकार, उदाहरण,शब्द निर्माण

पाठ 4: शब्द

दो या दो से अधिक वर्णों के मेल  शब्द कहते हैं, जिससे कोई सार्थक अर्थ निकलता हो।

जैसे-

क्+अ+म्+अ+ल्+अ=कलम

द्+ए+श्+अ=देश

शब्द के भेद या प्रकार

हिंदी व्याकरण में शब्दों के चार भेद होते हैं –

  • अर्थ की दृस्टि से
  • उत्पति की दृस्टि से
  • व्युत्पत्ति की दृस्टि से
  • प्रयोग की दृस्टि से।

अर्थ की दृस्टि से शब्द के भेद

अर्थ की दृस्टि से शब्द के दो भेद होते हैं –

सार्थक शब्द – जिन हिंदी शब्दों का कुछ अर्थ होता हैं, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं।

सार्थक शब्द के उदाहरण – कलम, छात्र, शिक्षक, विज्ञापन, कंप्यूटर आदि।

निरर्थक शब्द – जिन हिंदी शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता हैं, उन्हें निरर्थक शब्द कहते हैं।

निरर्थक शब्द के उदाहरण – पट, लक, खग, मच, अप आदि।

उत्पति की दृस्टि से शब्द के भेद

उत्पति की दृस्टि से शब्द के पांच भेद होते हैं –

तत्सम शब्द – जो संस्कृत शब्द अपना रूप बदले बिना ही हिंदी भाषा में प्रयुक्त होते हैं, वे तत्सम शब्द कहलाते हैं।

तत्सम शब्द के उदाहरण – साक्षी, चक्र, जंघा, तृण, विवाह आदि।

तद्भव शब्द – जिन शब्दों का मूल रूप तो संस्कृत हैं लेकिन

अभी वर्तमान समय में यह परिवर्तित हो गया हैं, इसे तद्भव शब्द कहते हैं।

तद्भव शब्द के उदाहरण – कछुआ, शक़्कर, लाख, राखी, रात आदि।

देशज शब्द – देशज शब्दों का व्युत्पत्ति का पता नहीं चलता। इनका कोई श्रोत नहीं है, ये अपने ही देश में बोलचाल से बने हैं। इसीलिए इन्हें देशज कहते हैं।

देशज शब्द के उदाहरण – तेंदुआ, पगड़ी, पटाखा, भिन्डी, चाँद आदि।

विदेशी शब्द – विदेशी भाषा से हिन्दी में आये शब्दों को विदेशी शब्द कहते हैं। इनमें फारसी, अरबी, अंग्रेजी, तुर्की, पुर्तगाली और फ्रांसीसी आदि भाषाओं से आये शब्द प्रमुख हैं –

विदेशी शब्द के उदाहरण – आवाज, पेपर, अमीर, मुगल, चाबी आदि।

संकर शब्द – जो शब्द दो भाषाओं के योग से बनते हैं, उन्हें संकर शब्द कहते हैं।

संकर शब्द के उदाहरण –

डाक (हिन्दी) + खाना (अरबी) = डाकखाना

रेल (अंग्रेजी) + यात्री (संस्कृत) =रेलयात्री

अश्रु (संस्कृत) + गैस (अंग्रेजी) = अश्रुगैस

मांग (हिन्दी) + पत्र (संस्कृत) = मांगपत्र

रक्त (संस्कृत) + दान (अरबी) = रक्तदान आदि।

व्युत्पत्ति की दृस्टि से शब्द के भेद

व्युत्पत्ति की दृस्टि से शब्द के तीन भेद होते हैं –

रूढ़ शब्द – वे शब्द जो किसी व्यक्ति, स्थान, प्राणी और वस्तु के लिए वर्षों से प्रयुक्त होने के कारण किसी विशिष्ट अर्थ में प्रचलित हो गए हैं। इन शब्दों की निर्माण प्रक्रिया भी ज्ञात नहीं होती तथा इनका कोई अन्य अर्थ भी नहीं होता।

रूढ़ शब्द के उदाहरण – गाय, रोटी, देवता, आकाश, मेढ़क आदि।

यौगिक शब्द – वे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों से बने हैं। शब्दों का अपना पृथक अर्थ भी होता है किन्तु अपने मूल अर्थ के अतिरिक्त एक नए अर्थ का बोध कराते हैं। समस्त संधि, समास, उपसर्ग एवं प्रत्यय से बने शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं।

यौगिक शब्द के उदाहरण – विद्यालय (विद्या + आलय), प्रेमसागर (प्रेम + सागर), राष्ट्रपति (राष्ट्र + पति), पुस्तकालय (पुस्तक + आलय), राजमहल (राज + महल) आदि।

योगरूढ़ शब्द – वे यौगिक शब्द जिनका निर्माण पृथक-पृथक अर्थ देने वाले शब्दों के योग से बनता है, किन्तु वे अपने द्वारा प्रतिपादित अनेक अर्थों में से किसी एक विशेष अर्थ का ही प्रतिपादन करने के लिए रूढ़ हो गए हैं।

योगरूढ़ शब्द के उदाहरण – पीताम्बर, नीलकंठ, लंबोदर, दशानन

प्रयोग की दृस्टि से शब्द के भेद

 प्रयोग की दृस्टि से शब्द के दो भेद होते हैं –

विकारी शब्द – वे शब्द जिनका लिंग, वचन, कारक एवं काल के अनुसार रूप परिवर्तित हो जाता है, विकारी शब्द कहलाते हैं। इनमे समस्त संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया शब्द आते हैं।

अविकारी शब्द – वे शब्द जिनका लिंग, वचन, कारक एवं काल के अनुसार रूप परिवर्तित नहीं होता, अविकारी शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों का रूप सदैव वही बना रहता है।

अविकारी शब्द में क्रिया विशेषण, सम्बन्ध बोधक, समुच्चय बोधक तथा विस्मयादि बोधक आदि शब्द आते हैं।

पद के भेद, पद परिचय, उदाहरण

पाठ 5: पद

पद परिचय की परिभाषा-जब शब्दों का प्रयोग वाक्य में किया जाता है, तो वे पद कहलाते हैं, इन्हीं पदों का व्याकरणिक परिचय देना पद परिचय कहलाता है।

पद परिचय के प्रकार:

प्रयोग के आधार पर पद परिचय आठ प्रकार के होते हैं-

  • संज्ञा
  • सर्वनाम
  • विशेषण
  • क्रिया
  • क्रिया विशेषण
  • संबंधबोधक
  • समुच्चयबोधक
  • विस्मयादिबोधक

संज्ञा का पद परिचय-वाक्य में आए संज्ञा पदों के भेद, लिंग,वचन,कारक, काल और क्रिया के साथ संबंध बताना आवश्यक होता है।

जैसे-राम ने रावण को बाणों से मारा।

राम-व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता कारक

बाणों -जातिवाचक संज्ञा, भपुल्लिंग, बहुवचन, करण कारक

रावण-व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक

सर्वनाम पद का परिचय-वाक्य में आए सर्वनाम पदों के भेद, लिंग,वचन,कारक, काल और क्रिया के साथ संबंध बताना आवश्यक होता है।

जैसे- जिसे आप लोगों ने बुलाया है, उसे अपने घर जाने दीजिए।

इस वाक्य में ‘जिसे’, ‘आप लोगों ने’, ‘उसे’ और ‘अपने’ पद सर्वनाम हैं। इसका पद परिचय इस प्रकार होगा।

जिसे : अन्य पुरुष, सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।

आप लोगों ने : पुरुषवाचक सर्वनाम, मध्यम पुरुष,पुल्लिंग, बहुवचन, कर्ता कारक।

उसे : अन्य पुरुष, सर्वनाम, पुल्लिंग, एकवचन, कर्म कारक।

अपने : निजवाचक सर्वनाम, मध्यम पुरुष, पुल्लिंग,एकवचन, संबंध कारक।

विशेषण का पद परिचय-विशेषण का पद परिचय करते समय विशेषण के भेद, अवस्था, लिंग, वचन और विशेष्य व उसके साथ संबंध आदि को बताना होता है। विशेषण का लिंग,उसका वचन, विशेष्य के अनुसार होता है।

जैसे- ये तीन किताबें बहुत बहुमूल्य हैं। उपर्युक्त वाक्य में ‘तीन’ ‘ बहुत’ और ‘बहुमूल्य’ विशेषण हैं। इन दोनों विशेषणों का पद परिचय निम्नलिखित है:-

तीन : संख्यावाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन, इस विशेषण का विशेष्य ‘किताब’ हैं।

बहुत : संख्यावाचक,स्त्रीलिंग, बहुवचन।

बहुमूल्य : गुणवाचक विशेषण, पुल्लिंग, बहुवचन

क्रिया का पद परिचय- क्रिया का पद परिचय करते समय क्रिया का प्रकार, वाच्य, काल, लिंग, वचन, पुरुष, और क्रिया से संबंधित शब्द को लिखना पड़ता है।

जैसे- राम ने रावण को मारा।

मारा- क्रिया, सकर्मक, पुल्लिंग, एकवचन, कर्तृवाच्य, भूतकाल । ‘मारा’ क्रिया का कर्ता राम तथा कर्म रावण।

क्रिया विशेषण का पद परिचय- क्रिया विशेषण का पद परिचय  करते समय,क्रियाविशेषण का प्रकार और उस क्रिया पद का उल्लेख करना होता है, जिस क्रियापद की विशेषता प्रकट करने के लिए क्रिया विशेषण का प्रयोग हुआ है।

जैसे- लड़की उछल कूद कर रही हैं। इस वाक्य में ‘उछल कूद’ क्रियाविशेषण है।

उछल कूद  : रीतिवाचक क्रियाविशेषण है जबकि  ‘कर रही है’ क्रिया की विशेषता बतलाता है।

संबंधबोधक का पदपरिचय:- संबंधबोधक का पद परिचय करते समय संबंधबोधक का भेद और किस संज्ञा या सर्वनाम से संबंधित शब्द को लिखना पड़ता है।

जैसे- कुर्सी के नीचे बिल्ली बैठी है।

उपर्युक्त वाक्य में ‘के नीचे’ संबंधबोधक है। ‘कुरसी’ और ‘बिल्ली’ इसके संबंधी शब्द हैं।

समुच्चयबोधक का पदपरिचय:- समुच्चयबोधक का करते समय समुच्चयबोधक का भेद और समुच्चयबोधक से संबंधित योजित शब्द को लिखना पड़ता है।

जैसे – दिल्ली अथवा कोटा में पढ़ना ठीक है।

इस वाक्य में ‘अथवा’ समुच्चयबोधक शब्द है।  अथवा : विभाजक

अव्यय का पद परिचय- अव्यय का पद परिचय करने के लिए वाक्य में प्रयुक्त अव्यय का भेद और उससे संबंधित पद को लिखना होता है।

जैसे-  वे प्रतिदिन जाते हैं।

वाक्य में ‘प्रतिदिन’ अव्यय है।

प्रतिदिन : कालवाचक अव्यय, यहां ‘जाना’ क्रिया के काल बताता  है, इसलिए जाना क्रिया का विशेषण है।

परिभाषा, उदाहरण, प्रयोग,अनुस्वार के मुख्य नियम

पाठ 6: अनुस्वार

अनुस्वार की परिभाषा

अनुस्वार का शाब्दिक अर्थ है- अनु + स्वर अर्थात् स्वर के बाद आने वाला।

दूसरे शब्दों में- अनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यञ्जन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है। हिंदी भाषा की लिपि में अनुस्वार का चिह्न बिंदु (.) के रूप में विभिन्न जगहों पर प्रयोग किया जाता है।

अनुस्वार का प्रयोग

अनुस्वार ( ) का प्रयोग पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म ये पंचाक्षर कहलाए जाते हैं) के स्थान पर किया जाता है।

जैसे-

  • गङ्गा = गंगा
  • चञ्चल = चंचल
  • डण्डा = डंडा
  • गन्दा = गंदा
  • कम्पन = कंपन

अनुस्वार के कुछ मुख्य नियम नियम

यदि पंचम अक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचम अक्षर अनुस्वार ( ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा।

जैसे –वाड्.मय, अन्य, उन्मुख आदि सभी शब्द वांमय, अंय, उंमुख के रुप में नहीं लिखे जा सकते ।

पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दोबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार ( ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा।

जैसे – प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि को प्रसंन, अंन, संमेलन इस तरह नहीं लिखा जाता।

हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि संयुक्त वर्ण दो व्यंजनों से मिलकर बनता है। जैसे- त् + र=त्र, ज् + ञ=ज्ञ बन जाता है इसीलिए अनुस्वार के बाद संयुक्त वर्ण या जिन व्यंजनों से संयुक्त वर्ण बना है, उसका पहला वर्ण जिस वर्ग से जुड़ा है, अनुसार उसी वर्ग के पंचम वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।

जैसे –मंत्र शब्द में

म + अनुस्वार + त्र (त् + र) संयुक्त अक्षर से मिलकर बना है। अनुस्वार के बाद त् आया है और तू वर्ग का पंचम अक्षर है न् इसीलिए अनुस्वार न् के उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है ।

जैसे –संरक्षक शब्द में है सम् + रक्षक। यहाँ अनुस्वार के बाद ‘र’ आया है। व्यंजन संधि के नियमानुसार यहाँ अनुस्वार ‘म्’ के उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है

परिभाषा, उदाहरण, प्रयोग,अनुनासिक के मुख्य नियम

पाठ 7: अनुनासिक

अनुनासिक की परिभाषा

जिन स्वरों के उच्चारण में मुख के साथ-साथ नासिका की भी सहायता लेनी पड़ती है। अर्थात् जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं।

इनका चिह्न चन्द्रबिन्दु(ँ) है।

अनुनासिक का प्रयोग

जिस प्रकार अनुनासिक की परिभाषा में बताया गया है कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है, वे अनुनासिक कहलाते हैं और इन्हीं स्वरों को लिखते समय इनके ऊपर अनुनासिक के चिह्न चन्द्रबिन्दु ( ँ) का प्रयोग किया जाता है। यह ध्वनि (अनुनासिक) वास्तव में स्वरों का गुण होती है। अ, आ, उ, ऊ, तथा ॠ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक लगता है।

जैसे- कुआँ, चाँद, अँधेरा आदि।

परिभाषा, उदाहरण, अर्थ

पाठ 9: श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द

श्रुतिसम/समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द की परिभाषा

ऐसे शब्द जो पढ़ने और सुनने में लगभग एक-से लगते हैं, परंतु अर्थ की दृष्टि से भिन्न होते हैं, श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में- कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनमें स्वर, मात्रा अथवा व्यंजन में थोड़ा-सा अन्तर होता है। वे बोलचाल में लगभग एक जैसे लगते हैं, परन्तु उनके अर्थ में भिन्नता होती है। ऐसे शब्द ‘श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द’ कहलाते हैं ।

जैसे- घन और धन दोनों के उच्चारण में कोई खास अन्तर महसूस नहीं होता परन्तु अर्थ में भिन्नता है।

घन= बादल

धन= दौलत

उदाहरण

शब्द- अर्थ

  • अधम- नीच
  • अधर्मपाप
  • अनाज- अन्न
  • अन्य- दूसरा
  • दिनदिवस
  • दीन- गरीब
  • अवधिसमय
  • अवधी- भाषा
  • अंस कंधा
  • अंश- हिस्सा
  • आदि- प्रारम्भ
  • आदी- आदत

विलोम शब्द की परिभाषा, उदाहरण

पाठ 10: विलोम शब्द

विलोम शब्द की परिभाषा

एक-दूसरे के विपरीत या उल्टा अर्थ देने वाले शब्दों को, विलोम शब्द कहते हैं। अर्थात् जो शब्द किसी दूसरे शब्द का उल्टा अर्थ बताते हैं, उन्हें विलोम शब्द या विपरीतार्थक शब्द या विरुद्धार्थी शब्द कहते है। जैसे- हार- जीत, आय- व्यय, आजादी- गुलामी, नवीन- प्राचीन आदि

विलोम शब्द के प्रकार या भेद

स्वतंत्र विलोम शब्द इस प्रकार के विलोम शब्दों की अनुलोम शब्दों से किसी प्रकार की स्वभावगत या रुपगत समानता नहीं होती तथा वह अनुमोल (गलती) की रूपप्रवृति से स्वतंत्र होती है। उदाहरण – गुण-दोष, जन्म- मृत्यु, असली- नकली, आज-कल, छोटा-बड़ा।  

उपसर्गों के योग से बनने वाले विलोम शब्द – ऐसे शब्द जिसमें मूल शब्द के साथ उपसर्ग लगा कर उसके शब्द को उल्टा या विपरीत कर देते है; जैसे- वादी के साथ प्रति उपसर्ग लगा कर ‘वादी’ का उल्टा अर्थ प्रकट किया जाता है और बनता है प्रतिवादी । यानि वादी- प्रतिवादी, इसी प्रकार मान का उल्टा अपमान, फल का उल्टा प्रतिफल।

उपसर्गों के परिवर्तन से बनने वाले विलोम शब्द – ऐसे उपसर्ग शब्द जिसमें उपसर्गों के परिवर्तन या बदलाव से बनता हैं। जैसे  – अनुकूल का उल्टा प्रतिकूल , अनुराग का उल्टा विराग ,सुरुचि का कुरुची, अनाथ का सनाथ आदि । 

लिंग परिवर्तन के आधार पर बने विलोम शब्द  इसमें ऐसे शब्द आते हैं जिसे शब्द के लिंग बदल कर या परिवर्तन कर उसका उल्टा अर्थ निकाला जाता है जैसे पुल्लिंग से स्त्रीलिंग या फिर स्त्रीलिंग से पुल्लिंग बनाकर किया जाता हैं। उदाहरण के रूप में – बेटा से बेटी, पति से पत्नी, नर से नारी, माता से पिता, बहन से भाई, रानी से राजा आदि।

परिभाषा, प्रकार, , उदाहरण

पाठ 11: अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद

अर्थ के आधार पर वाक्य का तात्पर्य है, वाक्यों का वर्गीकरण अर्थ के आधार पर करना । इस प्रकार के वाक्यों को पहचानना बहुत ही आसान होता है। जिस प्रकार शब्द के अर्थ होते हैं, उसी प्रकार जब अर्थपूर्ण शब्दों को मिलाते है, तो हमें अर्थपूर्ण वाक्य की प्राप्ति होती है ।

अर्थ के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं-

  • विधानवाचक वाक्य
  • निषेधवाचक वाक्य
  • प्रश्नवाचक वाक्य
  • विस्मयादिवाचक वाक्य
  • आज्ञा वाचक वाक्य
  • इच्छा वाचक वाक्य
  • संदेह वाचक वाक्य
  • संकेतवाचक वाचक

विधानवाचक वाक्य-

जिन वाक्यों से किसी क्रिया के करने या होने की सामान्य सूचना मिलती है उसे विधानवाचक वाक्य कहते हैं।

उदाहरण-

  • मैं कल दिल्ली गया था।
  • हम स्नान करके।
  • सूर्य पश्चिम में डूबता है।

निषेधवाचक वाक्य

जिन वाक्यों से किसी कार्य की निषेध या ना होने का बोध होता हो उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं इस तरह के वाक्य को नकारात्मक वाक्य भी कहा जाता है।

उदाहरण-

  • माला नहीं नाचेगी।
  • श्याम आज नहीं पड़ेगा।
  • मोहन के अध्यापक ने कक्षा नहीं ली।

प्रश्न वाचक वाक्य

जिन वाक्यों में प्रश्न किया जाए अर्थात किसी से कोई बात पूछी जाए उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहती है।

उदाहरण-

  • तुम पढ़ने कब जाओगे?
  • तुम्हारा घर कहां है?
  • क्या तुम खेलोगे?

विस्मयादिबोधक वाक्य

जिन वाक्यों से आश्चर्य, शोक, हर्ष, और घृणा के भाव व्यक्त हों उन्हे विस्मयादिबोधक वाक्य कहते हैं।

उदाहरण -

  • अरे! इतनी लंबी रेलगाड़ी
  • आह! बड़ा अनर्थ हो गया।
  • कैसा! सुंदर दृश्य।

आज्ञावाचक वाक्य

जिन वाक्यों से आज्ञा या अनुमति देने का बोध हो, उन्हें आज्ञा वाचक वाक्य कहते हैं।

उदाहरण

  • अपना-अपना काम करो।
  • आप जा सकते हैं।
  • आप खाना खा लो।
  • चुप रहिए।

इच्छावाचक वाक्य

वक्ता की इच्छा आशा या आशीर्वाद को व्यक्त करने वाले वाक्य इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं।

उदाहरण

  • ईश्वर तुम्हें लंबी आयु दे।
  • नववर्ष मंगलमय हो।
  • भगवान करे आपका सब काम हो जाए।

संदेहवाचक वाक्य

जिन वाक्यों में कार्य के होने में संदेह अथवा संभावना का बोध हो, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।

उदाहरण-

  • संभवतः वह सुधर जाए।
  • वह शायद आए।
  • शायद मैं बाहर चला जाऊंगा

संकेतवाचक वाक्य

जिन वाक्यों से एक क्रिया के दूसरी क्रिया पर निर्भर होने का बोध हो उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। इन्हें हेतु वाचक वाक्य भी कहते हैं। इनसे कारण शर्त आदि का बोध होता है।

उदाहरण-

  • यदि छुट्टियां हुई तो हम श्रीनगर अवश्य जाएंगे।
  • वर्षा होती तो फसल अच्छी होती।
  • आप आते तो समस्याएं दूर हो जाती।

परिभाषा, प्रकार, , उदाहरण

पाठ 12: अनुच्छेद-लेखन

अनुच्छेद लेखन का अर्थ-

किसी एक विषय पर लिखे गए अपने भाव या विचार से संबंद्ध तथा लघु- वाक्य समूह को अनुच्छेद लेखन कहते हैं।

अनुच्छेद की भाषा

अनुच्छेद की भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए।

वर्तनी एवं विराम चिन्ह

अनुच्छेद लेखन में शुद्ध वर्तनी और विराम चिन्ह का उचित प्रयोग होना चाहिए ताकि भाषा स्पष्ट हो जाए।

शुद्ध भाषा का प्रयोग

अनुच्छेद लेखन में व्याकरण के नियमों के अनुसार शुद्ध भाषा का प्रयोग होना चाहिए ताकि अनुच्छेद प्रभावशाली हो।

अनुच्छेद लेखन की प्रमुख विशेषताएं-

अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक ही बार एक स्थान पर व्यक्त करता है इसमें अन्य तथ्य की जानकारी नहीं होती।

उदाहरण

मुख्य विषय

(वन और पर्यावरण का सम्बन्ध)

संकेत-बिंदु –

  • वन प्रदुषण-निवारण में सहायक,
  • वनों की उपयोगिता, वन संरक्षण की आवश्यकता,
  • वन संरक्षण के उपाय।

वन और पर्यावरण का बहुत गहरा सम्बन्ध है। प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए पृथ्वी के 33% भाग को अवश्य हरा-भरा होना चाहिए। वन जीवनदायक हैं। ये वर्षा कराने में सहायक होते हैं। धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। वनों से भूमि का कटाव रोका जा सकता है। वनों से रेगिस्तान का फैलाव रुकता है, सूखा कम पड़ता है। वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों के भण्डार हैं। वनों से हमें लकड़ी, फल, फूल, खाद्य पदार्थ, गोंद तथा अन्य प्राप्त होते हैं। आज भारत में दुर्भाग्य से केवल 23% वन बचे हैं। जैसे-जैसे उद्योगों को संख्या बढ़ रही है, शहरीकरण हो रहा है, वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता और बढ़ती जा रही है। वन संरक्षण एक कठिन एवं महत्वपूर्ण काम है। इसमें हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी और अपना योगदान देना होगा। अपने घर-मोहल्ले, नगर में अत्यधिक संख्या में वृक्षारोपण करना चाहिए।

शब्दों की संख्या

अनुच्छेद लेखन में शब्दों की सीमित संख्या होती है, जिसे 80 से 100 शब्दों के बीच रखा जाता है

विशेषताएं,अंग ,प्रकार , उदाहरण

पाठ 13: पत्र लेखन

पत्र लेखन के आवश्यक तत्व अथवा विशेषताएं

पत्र लेखन से संबंधित अनेक महत्व है, परन्तु इन महत्व का लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब पत्र एक आदर्श पत्र की भांति लिखा गया हो।

भाषा सरल एवं स्पष्ट- पत्र के अन्तर्गत भाषा एक विशेष तत्व है। पत्र की भाषा शिष्ट व नर्म होनी चाहिए। क्योंकि नर्म एवं शिष्ट पत्र ही पाठक को प्रभावित कर सकते हैं।

संक्षिप्त- मुख्य बातों को बिना संकोच के लिखा जाना चाहिए। अनावश्यक रूप से लंबे शब्दों को लिखने का परित्याग किया जाना चाहिए।

मौलिकता- पत्र की भाषा पूर्ण मौलिक होनी चाहिए। पत्र सदैव उद्देश्य के अनुरूप लिखा होना चाहिए।

पत्र के अंग

प्रेषक का पता और तिथि पत्र – लेखन के लिए जिस कागज का प्रयोग किया जाता है उसके उपर के स्थान पर दाहिनी और प्रेषक का पता एवं पत्र लेखन की तिथि का उल्लेख होना चाहिए।

मूल संबोधन – पत्र के बायीं और घनिष्ठता, श्रद्धा या स्नेह-सूचक संबोधन होना चाहिए। जैसे- पूज्य, माननीय, श्रद्धेय, श्रीमान् आदि।

पत्र के निम्न दो प्रकार होते है –

औपचारिक पत्र (Formal Letter)

अनौपचारिक पत्र (Informal Letter)

औपचारिक पत्र- सरकारी तथा व्यावसायिक कार्यों से संबंध रखने वाले पत्र औपचारिक पत्रों के अन्तर्गत आते है। इसके अतिरिक्त इन पत्रों के अन्तर्गत निम्नलिखित पत्रों को भी शामिल किया जाता है।

प्रार्थना पत्र

निमंत्रण पत्र

सरकारी पत्र

गैर सरकारी पत्र

व्यावसायिक पत्र

औपचारिक पत्र का प्रारूप

अनौपचारिक पत्र-इन पत्रों के अन्तर्गत उन पत्रों को सम्मिलित किया जाता है, जो अपने प्रियजनों को, मित्रों को तथा सगे-संबंधियों को लिखे जाते है।

उदहारण के रूप में – पुत्र द्वारा पिता जी को अथवा माता जी को लिखा गया पत्र, भाई-बंधुओ को लिखा जाना वाला, किसी मित्र की सहायता हेतु पत्र, बधाई पत्र, शोक पत्र, सुखद पत्र इत्यादि ।

अनौपचारिक पत्र का प्रारूप

उदाहरण

औपचारिक पत्र

बड़े भाई के विवाह पर अवकाश के लिए मुख्याध्यापक के नाम प्रार्थना पत्र

सेवा में,

मुख्याध्यापक महोदया,

नगर निगम विद्यालय, उत्तम नगर, दिल्ली

महोदया

सविनेय निवेदन इस प्रकार है कि 29.8 के दिन मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह होने जा रहा है। बारात दिल्ली से लखनऊ जाएगी। बारात में जाने के कारण में 29.8… तक कक्षा में उपस्थित नहीं हो सकता।

विनम्र प्रार्थना है कि इन तीन दिनों का अवकाश प्रदान कर मुझे कृतार्थ करें।

आपकी आज्ञाकारी शिष्या

भावना

दिनांक- 25 अगस्त

कक्षा: छठी ‘अ’

अनौपचारिक पत्र

पिता का पुत्र को पत्र

दिनांक : 4 जुलाई, 20xx

प्रिय पुत्र विजय

चिरंजीव रहो!

तुम्हारा पत्र कल मुझे मिल गया था। मुझे यह पढ़कर बहुत खुशी हुई कि तुमने नई कक्षा में प्रवेश ले लिया है और पुस्तकें भी खरीद ली हैं। अब तुम्हें खूब मन लगाकर पढ़ना चाहिए ताकि कक्षा में प्रथम आ सको। मैं छुट्टियों में अवश्य घर आऊँगा। आने से पूर्व पत्र लिख दूंगा। घर में सबको प्यार एवं आशीर्वाद।

तुम्हारा शुभाकांक्षी

रघुबर दत्त

गांधी नगर, मेरठ

संवाद-लेखन, परिभाषा, प्रारूप, प्रकार, गुण, उदाहरण

पाठ 14: संवाद-लेखन

संवाद लेखन की परिभाषा

संवाद – ‘वाद’ मूल शब्द में ‘सम्’ उपसर्ग लगाने से ‘संवाद’ शब्द बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बातचीत’ है। इसे वार्तालाप भी कहा जाता है। सामान्य रूप से दो लोगों के बीच होने वाली बातचीत को संवाद कहा जाता है।

संवाद लेखन की विशेषताएं

स्वाभाविकता- संवाद में स्वाभाविकता होनी चाहिए। पात्रों की अपनी स्थिति, संस्कार आदि को ध्यान में रखकर बोलना चाहिए।

पात्रानुकूल भाषा- संवाद में भाग ले रहे छात्रों की भाषा उनकी शिक्षा आयु आदि के अनुरूप होनी चाहिए। एक शिक्षित और उसके साथ संवाद कर रहे अनपढ़ की भाषा में अंतर नज़र आना चाहिए।

प्रभावीशैली- संवाद को बोलने की शैली प्रभावशाली होनी चाहिए। सुनने वाले पर संवादों का असर होना चाहिए।

जटिलता से दूर- संवाद की भाषा में जटिलता नहीं होनी चाहिए। इससे सुनने वाला बात को आसानी से समझ सकता है और यथोचित जवाब देता है।

शालीनता- संवाद की भाषा में शालीनता अवश्य होनी चाहिए। इसमें अशिष्ट भाषा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

संवाद लेखन का प्रारूप

हर प्रवक्ता के लिए नया संवाद-

प्रत्येक वक्ता को एक नया अनुच्छेद मिलता है, हर बार एक वक्ता कुछ कहता है, जिसे आपको एक नए अनुच्छेद में रखना होता है, भले ही वह सिर्फ एक शब्द हो ।

विराम चिह्न उद्धरण चिह्नों के अंतर्गत आते हैं।

संवाद के साथ उपयोग किए जाने वाले सभी विराम चिह्नों को उद्धरण के तहत रखा जाना चाहिए।

यदि पैरा लंबा है, तो उद्धरण समाप्त करें यदि संवाद का पैराग्राफ बहुत लंबा है और आपको पैराग्राफ को बदलने की आवश्यकता है, तो अंतिम उद्धरण डालने की कोई आवश्यकता नहीं है।

संवाद टैग

संवाद टैग अर्थात वह कहता है / वह हमेशा संवाद के बाहर लिखा जाता है और एक अल्पविराम द्वारा अलग किया जाता है। जब बातचीत एक प्रश्न या विस्मयादिबोधक चिह्न में समाप्त होती है, तो निम्न मामलों में शुरू होने वाले टैग ।

उदाहरण के लिए वे कहते हैं, “हमें अपना व्यवसाय शुरू करना चाहिए।“

संवाद के प्रकार

सामान्य संवाद।

औपचारिक कार्य व्यापार के लिए संवाद।

विचार व्यक्त करने वाले संवाद।

भावनाएं व्यक्त करने वाली संवाद।

संवाद लेखन के चार गुण होते हैं-

हर संवाद में छिपी होती है एक कहानी

कोई श्रोता या दर्शक वही सुनना व देखना चाहता है, जिसका कोई अर्थ निकलता हो। यानी जानकारियों में भी कहानी छुपी हो। इससे जो भी संवाद किया जा रहा है, वह लोगों तक सहजता से पहुंच जाता है।

संवाद की तैयारी पहले करें -

पहले तैयारी से परिस्थितियों को पहले से समझने में मदद मिलती है। इससे आपकी जानकारी की पुष्टि होती है। यह सुनिश्चित करता है कि जानकारी ऊंचे मापदंडों के अनुरूप है।

भावयुक्त संवाद स्थापित होना

एक कुशल वक्ता असर पैदा करने और बात मनवाने के लिए अध्ययन, प्रयास और संवाद का सहारा लेते है।दर्शकों की जरूरतो की ही बात करें। विश्वसनीयता स्थापित करें। संवाद दिखना चाहिए और वह हर प्रकार से श्रेष्ठ हो ।

संक्षिप्त संवाद करें-

कम से कम शब्दों से ज्यादा कहना संक्षिप्त संवाद की पहचान है। एक श्रेष्ठ वक्ता वाक्य का प्रयोग नहीं करेगा, जहां एक शब्द से काम चल सकता है।

संवाद लेखन के उदाहरण

दो विद्यार्वियों के बीच दूरदर्शन की उपयोगिता पर संवाद

राम- आजकल जिसे भी देखो, टी. वी. से चिपका रहता है।

श्याम- यह ठीक है कि टी. वी. पर कई उपयोगी एवं मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित किए जा रहे हैं। पर कई विदेशी – चैनल अश्लील कार्यक्रम भी दिखा रहे हैं।

राम- इन कार्यक्रमों को देखकर हमारी युवा पीढ़ी गलत दिशा में जा रही है।

श्याम- इस प्रवृत्ति पर रोक लगानी आवश्यक है ।

राम- पर इस पर रोक कैसे लगाई जा सकती है?

श्याम- सरकार को ‘दूरदर्शन नियंत्रण बोर्ड बनाना चाहिए। बोर्ड की स्वीकृति के बाद ही कार्यक्रम प्रसारित किया जाना चाहिए।

राम- वह तो ठीक है, पर समाज को भी तो कुछ करना चाहिए

संदेश लेखन की परिभाषा, प्रारूप, प्रकार, महत्व, उदाहरण

पाठ 15: संदेश लेखन

संदेश लेखन का अर्थ- संदेश का अर्थ होता है कि कोई महत्वपूर्ण बात या फिर कोई उद्देश्यप्रद कही गई बात या लिखित भाषा में कोई सूचना या समाचार जो हमें किसी दूसरे को देना होता है, उस प्रक्रिया को हम संदेश कहते हैं।

संदेश के प्रकार

संदेश दो प्रकार के होते हैं

  • औपचारिक संदेश
  • अनौपचारिक संदेश

संदेश लिखने के उद्देश्य

  • संदेश लिखने के पीछे कई उद्देश्य हो सकते हैं।
  • स्कूलों में छात्रों को संदेश लिखने की विधि समझाना।
  • कलात्मक और रचनात्मक और बहुत प्रकार की बौद्धिक विकास के लिए भी हम संदेश लेखन का प्रयोग करते हैं।
  • समाज को जागरूक करने के लिए भी हम संदेश लेखन का प्रयोग करते हैं।
  • लोगों तक महत्वपूर्ण बातों को पहुंचाने के लिए या व्यक्त करने के लिए भी हम संदेश लेखन का उपयोग करते हैं।

संदेश लेखन के प्रारूप

सन्देश लेखन की विशेताएं

संदेश विशेष विषय पर लिखी जाती है। संदेश लेखन में केवल महत्वपूर्ण बातें ही लिखी जाती है। संदेश लेखन यदि अनौपचारिक हो, तो भाषा का उपयोग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है लेकिन अगर संदेश औपचारिक हो तो भाषा पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

उदाहरण

औपचारिक संदेश लेखन

शिक्षक दिवस के अवसर पर विज्ञान शिक्षक को एक पत्र लिखना।

“शिक्षक एक दिया के जैसा होते है, जो खुद जलकर दूसरो को रोशन कर देते हैं।”

दिनांक : 06/06/2021

समय : 01:00 pm

आदरणीय गुरु जी,

आशा करता हूँ कि आप सकुशल होंगे। आपके द्वारा मिली प्रोत्साहन और मोटिवेशन भरी शिक्षा के वजह से मै आज दसवीं कक्षा में विज्ञान के विषय में अच्छे अंकों से उतीर्ण हो गया हूँ। जिसके लिए मै आपका सदा आभारी रहूँगा। मै भगवान से यही प्रार्थना करता हूँ, कि आपके जैसा शिक्षक सभी विद्धार्थी को मिले, ताकि उनकी भी जीवन सँवर जाये। शिक्षक दिवस के अवसर पर मै आपको तहे दिल से आपको ढेर सारी शुभकामनाएं।

आपका छात्र,

राहुल

अनौपचारिक संदेश लेखन

छोटी बहन के जन्मदिन पर एक बधाई संदेश।

दिनांक : 06/06/2022

समय : 12:04 pm

मेरी प्यारी बहन गुड़िया आपको इस जन्मदिन पर ढ़ेर सारी बधाई। आशा करता हूँ कि तुम सकुशल होगी। तुम हमेशा खुश रहो, स्वस्थ्य रहो यही मै हमेशा दुआ करता हूँ। और मै भगवान से यह प्रार्थना करुँगा कि इस साल आपके जीवन की सारी परेशानी दूर हो जाए और आने वाली सभी परीक्षा मे आप खूब मेहनत करो और अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण हो जाओं।

तुम्हारा भाई दीपक

नारा लेखन, भेद, प्रकार, उद्देश्य, गुण, महत्व, उदाहरण

पाठ 16: नारा लेखन

नारे की परिभाषा

ऐसा वाक्य जो संक्षिप्त हो और सार्थक तथा प्रेरणादायक शब्द हो तो ऐसे शब्दों से बने वाक्य को ही नारा कहते हैं नारा समाज के उत्थान देश के विकास लोगों में उत्साह भरने का कार्य करता है लीI

नारा विभिन्न विषयों से संबंधित , समाज में किसी वस्तु की विशेषता को स्थापित करता है। संक्षिप्त , सार्थक एवं प्रेरणादायक वाक्य ही नारा या स्लोगन कहलाता है।

नारों के प्रकार –

नारे कई प्रकार के होते हैं। जैसे सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, उत्साहदायक, व्यवसायिक आध्यात्मिक एवं प्रेरकात्मक नारे। अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग उद्देश्य से नारे लिखे जाते हैं। नारों का प्रभाव सकारात्मक व् नकारात्मक दोनों ही तरह से पड़ सकता है। हर क्षेत्र में नारों का अपना अलग ही महत्त्व रहा है।

नारे लेखन का उद्देश्य

नारे लिखने के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं –

किसी विशेष व्यक्ति, संस्था, सामाजिक राजनैतिक या किसी भी अन्य अभियान की ओर लोगों का ध्यान खींचने के लिए।

समाज को एक आदर्श संदेश देना ।

लोगों को किसी कार्य विशेष के लिए प्रेरित करना ।

(iv) सामाजिक अभिव्यक्ति को प्रकट करना ।

लोगों को किसी उद्देश्य के प्रति जागरूक करना ।

जैसे जल ही जीवन है - में पानी को बचाने के लिए लोगो जाग्रत किया गया है।

नारा लेखन का प्रारूप

  • नारा सरल भाषा में होना चाहिए
  • नारा लिखने के लिए प्रेरणादायक शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए, जिससे लोग प्रेरित हों
  • नारा लिखने के लिए ऐसे शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए जो लोगों के मन को आकर्षित करें
  • नारा लेखन में अधिक से अधिक बीस शब्दों का ही प्रयोग करें
  • नारा लेखन में प्रभावशाली शब्दों का ही प्रयोग करें
  • नारा लेखन में शब्दों में लय और तुकांत होना चाहिए ताकि लोगों को लुभा सके
  • नारा लेखन में उचित शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए

नारा लेखन के प्रकार

  • सामाजिक नारा
  • राजनैतिक नारा
  • धार्मिक नारा
  • नैतिक नारा
  • वयव्यसायिक नारा
  • प्रदूषण नारा

नारा लेखन का उद्देश्य

नारा लेखन समाज को एक अच्छा सन्देश देने के लिए लिखा जाता है। नारा लेखन के माध्यम से कुछ प्रेरणा लोगो तक पहुंचाई जाती है। समाज को जागृत करने के लिए नारा लेखन लिखा जाता है।

नारा लेखन के गुण

बुलंद आवाज या फिर तेज आवाज में, अकेले या फिर एक समूह में बोले जाने वाले ऐसे शब्द जो लोगों को प्रभावित करते हैं. नारा लोगों को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार से प्रभावित करता है.

नारा एक ऐसा वाक्य है, जो लोगों को तेजी से याद हो जाता है या लोगों को मन में तेजी से बैठ जाता है नारा एक सरल वाक्य होता है.

नारों का महत्त्व

  • नारों की शक्ति अचूक होती है जो जनमानस के हृदय पर सीधा प्रभाव डालती है।
  • नारों के माध्यम से बहुत कम शब्दों में अपनी बात को जन जन तक पहुंचाया जा सकता हैं।
  • लोकप्रिय नारे समाज में परिवर्तन की क्षमता रखते हैं।
  • नारों का असर बहुत तीव्र व जल्दी होता है।
  • नारे शब्द रूपी वो हथियार है, जो जिस मकसद से लिखे या बोले जाते हैं। उस मकसद को जल्दी पूरा करते हैं।
  • नारे लोगों को प्रेरित करने के लिए जोर जोर से व बार-बार दोहराये जाते है। जिससे लोगों पर इसका असर जल्दी होता हैं।

उदहारण

  • कुछ प्रसिद्ध नारे
  • जय हिन्द – सुभाष चन्द्र बोस
  • करो या मरो – महात्मा गाँधी
  • वन्दे मातरम् – बंकिम चन्द्र चटर्जी
  • इन्कलाब जिंदाबाद – भगत सिंह
  • जय जवान जय किसान – लाल बहादुर शास्त्री
  • स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर रहूँगा – बल गंगाधर तिलक
  • तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हे आजादी दूंगा  – सुभाष चन्द्र बोस
  • सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है – रामप्रसाद बिस्मिल
  • आराम हराम है – जवाहरलाल नेहरु

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