पाठ 3

 तुम कब जाओगे अतिथि

शरद जोशी (1931-1991)

लेखक परिचय

शरद जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में 21 मई 1931 को हुआ। इनका बचपन शहरों में बीता। कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे, फिर इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया। इन्होंने आरंभ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य लेखन करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। हिंदी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने वाले कैलेंडर व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं। हैं।
शरद जोशी की प्रमुख व्यंग्य-कृतियाँ हैं : परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लियां, तिलस्म, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन। दो व्यंग्य नाटक हैं : अंधों का हाथी और एक था गधा। एक उपन्यास है: मैं, मैं, केवल मैं, उर्फ कमलमुख बी.ए.।

पाठ-प्रवेश

प्रस्तुत पाठ ‘तुम कब जाओगे, अतिथि’ में शरद जोशी ने ऐसे व्यक्तियों की खबर ली है, जो अपने किसी परिचित या रिश्तेदार के घर बिना कोई पूर्व सूचना दिए चले आते हैं और फिर जाने का नाम ही नहीं लेते, भले ही उनका टिके रहना मेज़बान पर कितना ही भारी क्यों न पड़े।

अच्छा अतिथि कौन होता है? वह, जो पहले से अपने आने की सूचना देकर आए, एक-दो दिन मेहमानी कराके विदा हो जाए या वह, जिसके आगमन के बाद मेजबान वह सब सोचने को विवश हो जाए, जो इस पाठ के मेज़बान निरंतर सोचते रहे।

शब्दार्थ

  • आगमन- आना
  • निस्संकोच- संकोच रहित
  • नम्रता- नत होने का भाव
  • सतत- निरंतर
  • आतिथ्य- आवभगत
  • अंतरंग- घनिष्ठ, गहरा
  • आशंका- खतरा,भय
  • मेहमाननवाजी- अतिथि- सत्कार
  • छोर- किनारा
  • भावभीनी- प्रेम से ओतप्रोत
  • आघात- चोट, प्रहार
  • अप्रत्याशित- आकस्मिक, अनसोचा
  • मार्मिक- मर्मस्पर्शी
  • सामिप्य- निकटता, समीपता
  • औपचारिक- दिखावटी
  • निर्मूल- मूलरहित
  • कोनलों- कोनों से
  • सौहार्द- मैत्री
  • रूपांतरित- जिसका रूप, आकार बदल गया हो
  • उष्मा- गर्मी, उग्रता
  • संक्रमण- एक स्थिति या अवस्था से दूसरी में प्रवेश
  • गुंजायमान- गुंजता हुआ