परिभाषा, उदाहरण, प्रयोग,अनुस्वार के मुख्य नियम

पाठ 6: अनुस्वार

अनुस्वार की परिभाषा

अनुस्वार का शाब्दिक अर्थ है- अनु + स्वर अर्थात् स्वर के बाद आने वाला।

दूसरे शब्दों में- अनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यञ्जन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है। हिंदी भाषा की लिपि में अनुस्वार का चिह्न बिंदु (.) के रूप में विभिन्न जगहों पर प्रयोग किया जाता है।

अनुस्वार का प्रयोग

अनुस्वार ( ) का प्रयोग पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म ये पंचाक्षर कहलाए जाते हैं) के स्थान पर किया जाता है।

जैसे-

  • गङ्गा = गंगा
  • चञ्चल = चंचल
  • डण्डा = डंडा
  • गन्दा = गंदा
  • कम्पन = कंपन

अनुस्वार के कुछ मुख्य नियम नियम

यदि पंचम अक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचम अक्षर अनुस्वार ( ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा।

जैसे –वाड्.मय, अन्य, उन्मुख आदि सभी शब्द वांमय, अंय, उंमुख के रुप में नहीं लिखे जा सकते ।

पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दोबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार ( ं) के रूप में परिवर्तित नहीं होगा।

जैसे – प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि को प्रसंन, अंन, संमेलन इस तरह नहीं लिखा जाता।

हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि संयुक्त वर्ण दो व्यंजनों से मिलकर बनता है। जैसे- त् + र=त्र, ज् + ञ=ज्ञ बन जाता है इसीलिए अनुस्वार के बाद संयुक्त वर्ण या जिन व्यंजनों से संयुक्त वर्ण बना है, उसका पहला वर्ण जिस वर्ग से जुड़ा है, अनुसार उसी वर्ग के पंचम वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।

जैसे –मंत्र शब्द में

म + अनुस्वार + त्र (त् + र) संयुक्त अक्षर से मिलकर बना है। अनुस्वार के बाद त् आया है और तू वर्ग का पंचम अक्षर है न् इसीलिए अनुस्वार न् के उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है ।

जैसे –संरक्षक शब्द में है सम् + रक्षक। यहाँ अनुस्वार के बाद ‘र’ आया है। व्यंजन संधि के नियमानुसार यहाँ अनुस्वार ‘म्’ के उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है

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