- Books Name
- वसंत भाग - ३ का संशोधित रूप
- Publication
- DMinors publication
- Course
- CBSE Class 8
- Subject
- Hindi
पाठ - 15 सूरदास के पद
सूरदास - जीवन परिचय-सूरदास का जन्म 1478 ई. में सीही नामक ग्राम में हुआ था, लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि सूरदास का जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था, सूरदास का जन्म निर्धन सारस्वत ब्राह्मण पं0 रामदास के यहाँ हुआ था। सूरदास के पिता गायक थे। सूरदास के माता का नाम जमुनादास था।
सूरदास के पद का सार - पहले पद में सूरदास जी ने कृष्ण के मन के भावों का सुन्दर वर्णन है। कृष्ण चाहते थे कि उनकी चोटी भाई बलराम की तरह ज़मीन पर लोटे। यद्यपि माँ यशोदा नियम से उनके बाल धोती थी और गूंथती थी। फिर भी उनके बाल लंबे नहीं होते थे। दूसरे पद में एक ग्वालन माँ यशोदा को उलाहना देते हुए कहती हैं कि नटखट कृष्ण प्रतिदिन उनके घर से मक्खन चोरी करके खा जाते हैं। वह यशोदा से कहती हैं कि उसने अनोखे पुत्र को जन्म दिया है जो दूसरों से अलग है। ग्वालन की शिकायत में सूरदास जी द्वारा वात्सल्य प्रेम की अभिव्यक्ति सराहनीय है।
(1)
मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्नै है लाँबी-मोटी।
काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिन सी भुइँ लोटी।
काचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन-रोटी।
सूर चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।
व्याख्या – सूरदास जी बताते हैं कि श्री कृष्ण बालपन में यशोदा से पूछते हैं कि उनकी चोटी कब बढ़ेगी, यह आज तक क्यों नहीं बढ़ी। वह माँ यशोदा से शिकायत करते हैं कि तुम मुझसे कहती थी की जैसे बलराम भैया की लंबी-मोटी चोटी है, मेरी भी वैसी हो जायेगी। तू मेरे बाल बनाती है, इन्हें धोती है पर यह नागिन की तरह भूमि पर क्यों नहीं लोटती। तू मुझे सिर्फ बार-बार दूध पिलाती है, मक्खन व रोटी खाने को नहीं देती। इसलिए ये बड़ी नहीं होती। सूरदास जी कहते हैं की ऐसी सुन्दर लीला दिखाने वाले दोनों भाई कृष्ण और बलराम की जोड़ी बनी रहे।
(2)
तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ।
दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढूँढ़ि-ढँढ़ोरि आपही आयौ।
खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं, दूध-दही सब सखनि खवायौ।
उफखल चढ़ि, सींवेफ कौ लीन्हौ, अनभावत भुइँ मैं ढरकायौ।
दिन प्रति हानि होति गोरस की, यह ढोटा कौनैं ढँग लायौ।
सूर स्याम कौं हटकि न राखै तैं ही पूत अनोखौ जायौ।
व्याख्या – सूरदास जी कहते हैं कि गोपियाँ सदा श्री कृष्ण की शिकायत यशोदा माँ से करती रहती है। एक गोपी यशोदा जी को कहती है कि आपका लाल मेरा मक्खन खा जाता है, दोपहर के समय जब उसका घर खाली होता है, तो कृष्ण स्वयं ही ढूंढकर घर आ जाते हैं। वह हमारे मंदिर के दरवाज़े खोलकर उसमे घुस जाते हैं तथा अपने मित्रों को दही-मक्खन खिला देते हैं। वह ओखली पर चढ़कर छीके तक पहुँच जाते हैं तथा मक्खन खा लेते हैं, और बहुत सारा मक्खन भूमि पर गिरा देते हैं। जिससे हर रोज़ दूध-दही का नुकसान कर देते हैं, गोपियाँ कहती हैं कि आपका यह बेटा कैसा है जो हमें सताता हैं। सूरदास जी कहते हैं कि फिर भी उसे अपने से अलग नहीं करा जा सकता। यशोदा तुमने सबसे अनोखे बेटे को जन्म दिया है।
कठिन शब्द अर्थ -
- कबहिं – कब
- किती – कितनी
- पियत – पिलाना
- अजहूँ – आज भी
- बल – बलराम
- बेनी – चोटी
- लाँबी-मोटी – लंबी-मोटी
- काढ़त – बाल बनाना
- गुहत – गूँथना
- न्हवावत – नहलाना
- नागिन – नागिन
- भुइँ – भूमि
- लोटी – लोटने लगी
- काचौ – कच्चा
- पियावति – पिलाती
- पचि-पचि – बार-बार
- माखन – मखक्न
- ढूँढ़ि – खोजकर
- आपही – अपने आप
- किवारि – दरवाजा
- पैठि – घुसकर
- सखनि – दोस्त/मित्र
- उखल – ओखली
- चढि – चढ़ना
- सींके – छिका
- अनभावत – जो अच्छा न लगे