भगवन के डाकिये (कविता)

पाठ 6 भगवान् के डाकिये

प्रकृति का ज्ञान - प्रकृति हमारा सबसे बड़ा मित्र है क्योंकि हम इस ग्रह पृथ्वी पर रहते हैं और इसके सभी क्षेत्रों में प्रकृति का सौंदर्य देखने को मिलता है। प्रकृति से ही हमें पीने को पानी, शुद्ध-हवा, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, अच्छा भोजन और रहने को घर मिलता है जिससे मनुष्य एक बेहतर और अच्छा जीवन व्यतीत कर पाता है।

भगवान के डाकिए पाठ सार

इस कविता में “दिनकर” जी बताते है की पक्षी और बादल भगवान के डाकिए हैं जो एक विशाल देश का सन्देश लेकर दूसरे विशाल देश को जाते हैं। उनके लाये पत्र हम नहीं समझ पाते मगर पेड़-पौधे, जल और पहाड़ पढ़ लेते हैं। यहाँ कवि ने बादलों को हवा में और पक्षियों को पंखो पर तैरते दिखाया है। 

पाठ का अर्थ -

महान कवि और लेखक श्री रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म 26 सितम्बर 1908 में बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ। इनकी कविताएं जोश, क्रांति, विद्रोह और आक्रोश के भावों से भरी नज़र आती हैं। इन्होंने रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, उर्वशी जैसी महान रचनाएं लिखीं। रामधारी सिंह दिनकर जी को ‘उर्वशी’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साथ ही, इन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण की उपाधि भी दी।

पक्षी और बादल,

ये भगवान के डाकिए हैं,

जो एक महादेश से

दूसरे महादेश को जाते हैं।

हम तो समझ नहीं पाते हैं

मगर उनकी लाई चिट्ठियाँ

पेड़, पौधे, पानी और पहाड

बाँचते हैं।

भगवान के डाकिए भावार्थ: आसमान में तैरते बादल और पक्षी भगवान के डाकिए हैं। ये एक देश से उड़कर दूसरे देश तक जाते हैं और ख़ास संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं। ये संदेश हम समझ नहीं पाते, लेकिन भगवान के संदेश को पर्वत, जल, पेड़-पौधे आदि  समझ लेते हैं।

हम तो केवल यह आँकते हैं

कि एक देश की धरती

दूसरे देश को सुगंध भेजती है।

और वह सौरभ हवा में तैरते हुए

पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।

और एक देश का भाप

दूसरे देश में पानी

बनकर गिरता है।

भगवान के डाकिए भावार्थ: रामधारी सिंह दिनकर जी ने यहां हमें प्रकृति की महानता के बारे में बताया है। हम तो धरती को सीमाओं में बांट लेते हैं, लेकिन प्रकृति के लिए सब एक-समान हैं। इसीलिए एक देश की धरती अपनी सुगंध दूसरे देश को भेजती है। ये सुगंध पक्षियों के पंखों पर बैठकर यहां-वहां फैलती है और एक देश की भाप, दूसरे देश में पानी बनकर बरस जाती है।

कठिन शब्द अर्थ

  • डाकिये - पत्र देने वाले
  • महादेश - बड़ा देश
  • बांचते - समझ जाना
  • आंकते - देखते है
  • सुगंध - खुशबु
  • पाँखों - पंख

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