बस की यात्रा (व्यंग्य)

पाठ - 3 बस की यात्रा (व्यंग्य )

लेखक का परिचय - हरिशंकर परसाई (जन्म: 22 अगस्त¸ 1924-1995) हिंदी के प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। उनका जन्म जमानी¸ होशंगाबाद¸ मध्य प्रदेश मे हुआ था। वे हिंदी के पहले रचनाकार है¸ जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दरजा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है।

पाठ का सार - लेखक अपने चार मित्रों के साथ जबलपुर जाने वाली अपनी ट्रैन  पकड़ने के लिए बीएस से यात्रा करते है परन्तु कुछ लोग उन्हें बस से सफर न करने की सलाह देते है लोगों की बात न मानकर वे उसी बस में यात्रा करते है पर बस की हालत देखकर कहते है की ये बस तो पूजा करने के योग्य है।

नाज़ुक हालत देखकर लेखक की आँखों में श्रद्धा का भाव उत्पन्न होता है इंजन के स्टार्ट होते हे लगता है की पूरी बीएस हे इंजन हो। सीट पे बैठके वो सोचता है की वो सीट पे बैठा है या सीट उसपे। बीएस को देखकर वो कहता है की ज़रूर यह बीएस गाँधी जी के असहयोग आंदोलन की है तभी सभी पुर्जे एक दुसरे को असयोग कर रहे है।  कुछ समय पश्चात बीएस रुक गयी पता चला की पेट्रोल की टंकी में छेद होगया है ऐसी दशा देखकर वो सोचने लगा न जाने कब इसका ब्रेक फ़ैल हो जाये या स्टेयरिंग टूट जाये आगे पेड़ और झील को देखकर सोचता है न जाने कब टकरा जाये या गोटा लगा ले। अचानक बस फिरसे रुक जाती है। आत्मग्लानि से मन भर उठता था और सोचता था की क्यों हे वृद्धा पर सवार होगये।

इंजन ठीक होजाने पर बस फिर चल पड़ती  हैकिन्तु इस बार और धीरे हो जाती है आगे पुलिया पर पहुंचते हे उसका टायर पंचर हो जाता है अब तो सब यात्री समय पे पहुंचने की उम्मीद छोड़ देते है और चिंतामुक्त होने के लिए हसी मज़ाक करने लगते है अंत में लेखक डॉ को त्यागकर आनंद उठाने का प्रयास करते है और स्वय को उस बस का हिस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से निकाल देते है।

पाठ का अर्थ - वे इस लेख के द्वारा, अपने व्यक्तिगत अनुभव का बखान करते हैं जोकि है ‘‘बस की यात्रा।” वे एक बार बस के द्वारा अपनी यात्रा करते हैं और किस तरह की परेशानियाँ इस यात्रा में आती हैं, इस सब का अनुभव इस रचना के द्वारा दर्षाया गया है।

एक बार बस से पन्ना को जा रहे थे बस बहुत ही पुरानी थी जैसा कि दर्शाया गया है इस सफर में क्या-क्या अनुभाव किया, क्या-क्या उनके साथ घटा, और उन्होंने परिवहन निगम की जो बसें होती हैं उनकी घसता हलात पर व्यंग किया है और ये भी दर्शाया गया है कि किस तरह से वे अपनी बसों की देख-भाल नहीं करते हैं और एक घसियत पद की तरह से इस रचना को लिखा है जब हम इसको पढ़ते हैं तो बहुत सी घटानाऐं हास्यपद (हँसीपद) लगती हैं और बहुत ही रोंचक हो गई है उनकी यह रचना। तो आइए हम भी चलते हैं उनकी इस यात्रा पर।

कठिन शब्द अर्थ

  • निमित - साधन
  • इत्तफाक - संयोग
  • बियाबान - जंगल
  • अंत्येष्टि - डाह संस्कार
  • प्रयाण - मरना
  • बेताबी - बेचैनी

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