लाख की चूड़ियां (कहानी)

पाठ - 2  लाख की चूड़िया

चूड़ियों की जानकारी -

सुहागनगरी के नाम से मशहूर फिरोजाबाद की चूड़ियों की खनक देश विदेश तक में है। यहां की बनी कांच की चूड़ियां कलाई में पहनकर सुहागन महिलाएं सजती संवरती हैं। बदलते परिवेश में यहां की चूड़ियों की स्टाइल भी बदल गई है। यहां की फोटो और नाम वाली चूड़ियों की खनक से 'विदेशी दुल्हनों का दिल' भी धड़कने लगा है। यही कारण है कि शहर से फोटो और नाम वाली चूड़ियों की डिमांड विदशों से आने लगी हैं।

ऐसा कहा जाता है की 34000 लाख के कीड़ों से 1 किलोग्राम रंगीन लाख प्राप्त किया जाता है एवं 14400 लाख के कीड़ों से 1 किलो ग्राम कुसमी लाख प्राप्त होती है . इसमें से जो रंगीन लाख निकलती है उसका उपयोग कंगन एवं रंगीन चूड़ियां बनाने में किया जाता है। . हमारे देश में प्राचीन समय से ही लाभ का उपयोग किया जाता रहा है लाख की वस्तुओं का सबसे अधिक निर्माण राजस्थान में होता है। इसके अलावा मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश व गुजरात में भी लाख पाई जाती है। इसलिए वहाँ भी लाख का सामान बनाया जाता है। लाख से चूड़ियों के अतिरिक्त कई प्रकार के अभूषण, खिलौने व सजाने का सामान बनाया जाता है।

कहानी का अर्थ -

कहानी में मानव जीवन के किसी एक पक्ष का मनोहारी चित्रण किया जाता हैं। किसी एक प्रभाव को उत्पन्न करना ही कहानी का उद्देश्य रहता हैं।

पाठ का सार - 'लाख की चूड़ियों में कामनाथ जी ने कारीगरों के काम को छींटे हुए और एक कुशल कारीगर के स्वाभिमान को दर्शाया है।

लेखक बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में अपने ननिहाल मां के पास जाया करते थे डेढ़ महीना रहते भी थे वहां उन्हें बदलू नाम का व्यक्ति सबसे अच्छा लगता था क्युकी वो उन्हें लाख  की गोलियां दिया करता था वह पेशे से महिहार चूड़िया बनाने वाला था वह लाख की सूंदर सुंदर चूड़िया बनाया करता था बदलू का मकान गाँव में कुछ उचाई पर था जिसके बगल में नीम का पेड़ था।  बगल में भट्टी थी जिसपे लाख को पिघलके वह चूड़िया बनाता था लाख को मुंगरियों पे चढ़ाकर उन्हें चूड़ियों का आकर देता था।

लेखक अन्य बच्चों की तरह उन्हें बदलू काका कहता था आस पास की औरते अनाज देके पैसे न न देके उन्ही से चूरिया ले जाती थी हांलांकि परन्तु शादी ब्याह में मुँह बोलै दाम लिया करता था वह स्वाभाव में सीधे थे। बदलू को कांच की चूड़ियों से छिड़ थी लेखक सेहर में सब औरते कांच की चूड़िया पहनती है ये बताता था बदलू लेखक को लाख की गोलिया ,गाय का ढूढ़ , आम की फसल के समय देता था जब भी वह आता था।

पिता की बदली न होने के कारन लेखक गाँव न जा स्का आम देता था जब भी वह आता था। वह लगभग आठ दस साल के बाद गाँव गया बड़ा होने में उसकी रूचि नहीं थी लेखक ने देखा अब सभी स्त्रिया कांच  की चूड़िया  पहनती ह।

एक दिन मां की लड़की गिर गयी और उसके कांच की चूड़ी टूटकर लग गयी उसकी मरहम पट्टी लेखक ने हे कराया जब वह बदलू से मिलने गया आज भी वह नीम के पेड़ के नीचे बैठा हुआ बदलू काका का शरीर बूढ़ा हो चूका था बदलू लेखक को पहचान नहीं पाया तब लेखक ने खुद का परिचय दिया।

बदलू ने बताया मशीनों के करण अब सब कांच की चूड़िया

पहनते है लाख का चूड़िया कोई नहीं लेता इतने में बदलू की बेटी राजू आगयी जिसके हाथ मेंलाख की चूड़िया थी  यह बदलू ने जमींदार की बेटी के लिए बनाए थी ये आखिरी जोड़ा था दस आने देने पे उसने वह नहीं दिया शहर से लेन को बोल दिया इसमें उसका स्वाभिमान साफ़ झलक उठता है।

कठिन शब्द अर्थ

  • सलाख - सलाई
  • मुंगरी - गोल
  • खपत - माल की बिक्री
  • कसर - कमी
  • नाज़ुक - कोमल
  • मचिया - बैठने में उपयोग में आने वाली सुतली
  • फबना - शोभा देना

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