पाठ - 1 ध्वनि

लेखक का परिचय -

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फ़रवरी, सन् १८९९ में हुआ था। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। उनका जन्म मंगलवार को हुआ था। जन्म-कुण्डली बनाने वाले पंडित के कहने से उनका नाम सुर्जकुमार रखा गया।निराला प्रमुख रूप से कवि हैं यद्यपि उन्होंने बहुत सा गद्य भी लिखा है लेकिन उनकी प्रमुख पहचान कवि के रूप में है। प्रस्तुत इकाई भी उनके रचनाकार व्यक्तित्व के अनुकूल विशेष रूप से कविता पर और गौण रूप से गद्य पर केन्द्रित है। उनकी रचनओं में क्रांति, विद्रोह और प्रेम की उपस्थिति देखने को मिलती है। उनका जन्म कवियों की जन्मभूमि यानि बंगाल में हुआ। अनामिका, परिमल, गीतिका आदि उनकी प्रसिद्ध कविताएं हैं। निराला जी ने स्वामी परमहंस एवं विवेकानंद जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा ली और स्वंत्रता-संघर्ष में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कविता का सार -

यह कविता सूर्यकांत निराला जी ने  मानव को विपरीत परिस्थियों में भी कभी उदास न होकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है वह मानव में जोश भरने का प्रयास कर रहे हैकवी कहते है अभी उसका अंत नहीं होगा अभी अभी तो सुकुमार रुपी शिशु वसंत का आगमन उनके जीवन में हुआ है जिसकी तरह वह भी ख्याति फैलाना चाहते है कवी अपने सपनो से भरे हाथो को कोमल अलसाए कलियों पर फिराना चाहते है नयी सुबह दिखाना चाहते है जिससे युवा भी सोये न बल्कि नए युग का सृजन करे।

कवी प्रत्येक पुरुष यानि युवा की आँखों से आलस्य हटाकर उसमे जागरूकता भरना चाहते है। कवी उन पुष्पों को हरा भरा रखने के लिए उन्हें  अपने नवजीवन के अमृत से सींचना चाहते है अभी जीवन में वसंत आया है अभी अंत नहीं होने वाला बल्कि अभी तो बहुत से काम करने है।

कठिन शब्द अर्थ -

मृदुल - कोमल

  • पात - पत्ता
  • गात - शरीर
  • निद्रित - सोया हुआ
  • प्रत्युष - प्रातः काल
  • तंद्रालस - नींद से अलसाया हुआ

कविता का अर्थ -

अभी न होगा मेरा अंत

अभी-अभी ही तो आया है

मेरे मन में मृदुल वसंत

अभी न होगा मेरा अंत

ध्वनि कविता का भावार्थ (suryakant tripathi nirala poem dhwani in hindi): कवि सूर्यकांत त्रिपाठी जी ध्वनि कविता की इन पंक्तियों में कह रहे हैं कि उनका अंत अभी नहीं होगा। उनके जीवन में वसंत रूपी यौवन अभी-अभी ही तो आया है। इन पंक्तियों में कवि छिपे हुए तरीके से कह रहे हैं कि उनका मन जोश और उत्साह से भरा हुआ है। जब तक वो अपने लक्ष्य को पा नहीं लेते, वो हार नहीं मानेंगे।

हरे-हरे ये पात,

डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर

फेरूंगा निद्रित कलियों पर

जगा एक प्रत्यूष मनोहर।

ध्वनि कविता का भावार्थ (suryakant tripathi nirala poem dhwani in hindi): ध्वनि कविता की इन पंक्तियों में कवि निराला जी ने प्रकृति का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। कवि कहते हैं कि चारों तरफ हरे-भरे पेड़ हैं और पौधों पर खिली कलियाँ मानो अब तक सो रही हैं। मैं सूरज को यहाँ खींच लाऊँगा और इन सोई कलियों को जगाऊँगा।

इन पंक्तियों में कवि ने हारे हुए और निराश लोगों को सोई हुई कलियाँ कहा है। जिस प्रकार सूरज के आ जाने से सभी पेड़-पौधों और कलियों में जान आ जाती है, ठीक उसी प्रकार निराला जी अपने प्रेरणा रूपी सूर्य से निराश लोगों के मन में उत्साह और उल्लास भरना चाहते हैं। इस तरह ध्वनि कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी जी जीवन से हार मान चुके लोगों को नया जीवन देना चाहते हैं।

पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं।

अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं।

ध्वनि कविता का भावार्थ (suryakant tripathi nirala poem dhwani in hindi): ध्वनि कविता की इन पंक्तियों में कवि वसंत रूपी उम्मीद बनकर, सोये-अलसाए फूलों रूपी उदास लोगों से आलस और उदासी बाहर निकाल लेने की बात कर रहे हैं। वो इन सभी लोगों को नया जीवन देना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने कहा है कि मैं हर पुष्प से आलस व उदासी खींचकर, उसमें नए जीवन का अमृत भर दूँगा।

द्वार दिखा दूंगा फिर उनको

हैं वे मेरे जहाँ अनंत

अभी न होगा मेरा अंत।

ध्वनि कविता का भावार्थ (suryakant tripathi nirala poem dhwani in hindi): ध्वनि कविता की इन पंक्तियों में कवि निराला जी कहते हैं कि मैं सोये हुए फूलों यानि निराश लोगों को जीवन जीने की कला सिखा दूँगा। फिर, वो कभी उदास नहीं होंगे और अपना जीवन सुख से व्यतीत कर पाएंगे।

कवि का मानना है कि अगर युवा पीढ़ी परिश्रम करेगी, तो उसे मनचाहा लक्ष्य मिलेगा और इस आनंद का कभी अंत नहीं होगा। इस प्रकार, कवि कहते हैं कि जब तक वो थके-हारे लोगों और युवा पीढ़ी को सही राह नहीं दिखा देंगे, तब तक उनका अंत होना असंभव है।