पाठ 4 दीवानो की हस्ती (कविता )

कवि ने अपने प्रेम से भरे हृदय को दर्शाया है क्योंकि कवि का स्वभाव बहुत ही प्रेमपूर्ण है। सभी संसार के व्यक्तियों से वह प्रेम करता है और खुशियाँ बाँटता है यही सब इस कविता में दर्शाया है। वो अपने जीवन को अपने ढंग से जीते हैं, मस्त-मौला है चारों ओर प्रेम बाँटने का सन्देश देते हैं। इस कविता के द्वारा एक सीख देते है की हमें सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। वे खुशियों का संचार करते हैं, जहाँ भी जाते हैं खुशियाँ  बिखेरते हैं और जीवन में असफल हो जाने पर हार जाने पर भी किसी को दोष नहीं देते । इस कविता में सन्देश देते हैं कि हमें अपनी सफलता और असफलता का श्रेय स्वयं को ही देना चाहिए क्योंकि अगर हम असफल होते है तो उसमें भी कहीं न कहीं दोष हमारा ही होता है किसी और का नहीं और सफल होते है तो भी श्रेय हमारा ही होता है क्योंकि महेनत हमने की होती है। और स्वंय असफल होने पर किसी अन्य को दोषी नहीं मानते है। वे जब जीवन में कभी हार जाते हैं, असफल हो जाते है इस सब का दोष किसी और को नहीं देते । यह इंसानियत की बहुत ही बड़ी बात है जोकि कवि में देखी जाती है।

कबिता का सार - दीवानों की हस्ती कविता में कवि भगवती प्रसाद वर्मा जी ने एक मस्तमौला और बेफिक्र व्यक्ति का स्वभाव दर्शाया है। कवि के अनुसार, ऐसे दीवाने और बेफिक्र व्यक्ति जहां भी जाते हैं, वहाँ केवल ख़ुशियाँ ही फैलाते हैं। उनका हर रूप मन को प्रसन्न कर देता है, फिर चाहे किसी की आँखों में आँसू ही क्यों ना हों।

कवि कभी भी एक जगह पर ज्यादा समय तक नहीं टिकते हैं। वे तो संसार को कुछ मीठी-प्यारी यादें और एहसास देकर, अपने सफर पर निकल पड़ते हैं। कवि लोग सांसारिक बंधनों में बंधे नहीं होते, इसीलिए वो दुख और सुख, दोनों को एक समान रूप से स्वीकारते हैं। यही उनके हमेशा ख़ुश रहने की प्रमुख वजह है।

कवि के अनुसार, उनके लिए संसार में कोई भी पराया नहीं होता है। वो अपने जीवन के रास्ते पर चलकर ख़ुश रहते हैं और सदा अपने चुने रास्तों पर ही चलना चाहते हैं।

कठिन शब्द अर्थ -

  • दीवानों: अपनी मस्ती में रहने वाले
  • हस्ती: अस्तित्व
  • मस्ती: मौज
  • आलम: दुनिया
  • उल्लास: ख़ुशी
  • जग: संसार
  • छककर: तृप्त होकर
  • भाव: एहसास
  • भिखमंगों: भिखारियों
  • स्वच्छंद: आजाद
  • निसानी: चिन्ह
  • उर: ह्रदय
  • असफलता: जो सफल न हो
  • भार: बोझ
  • आबाद: बसना
  • स्वयं: खुद

भगवती चरण वर्मा का जीवन परिचय (Bhagvati Charan Varma Ka Jeevan Parichay) : हिंदी साहित्य जगत के प्रसिद्ध लेखक श्री भगवती चरण वर्मा का जन्म सन् 1903 में, उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर में हुआ। इन्होंने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से बीए और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। शुरुआत में इन्होंने कविता लेखन पर ध्यान दिया, मगर बाद में उपन्यास लेखन में इनकी रुचि बढ़ गयी।

इन्होंने फिल्मों में भी काम किया, लेकिन पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। भगवती चरण वर्मा जी ने काफी समय तक आकाशवाणी रेडियो के लिए भी काम किया। बाद में, इन्हें राज्यसभा सदस्य की मानद उपाधि भी दी गयी।

उनकी प्रमुख कृतियों में ‘महाकाल’, ‘कर्ण’, ‘मधुकण’, ‘प्रेम-संगीत’ आदि शामिल हैं। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने अद्भुत योगदान हेतु इन्हें सन् 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। श्री भगवती चरण वर्मा जी ने 5 अक्टूबर 1981 को दिल्ली में अपनी देह त्याग दी।

दीवानों की हस्ती –

हम दीवानों की क्या हस्ती,

हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,

मस्ती का आलम साथ चला,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

आए बन कर उल्लास अभी,

आँसू बन कर बह चले अभी,

सब कहते ही रह गए, अरे,

तुम कैसे आए, कहाँ चले?

किस ओर चले? यह मत पूछो,

चलना है, बस इसलिए चले,

जग से उसका कुछ लिए चले,

जग को अपना कुछ दिए चले,

दो बात कही, दो बात सुनी।

कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।

छककर सुख-दुख के घूँटों को

हम एक भाव से पिए चले।

हम भिखमंगों की दुनिया में,

स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,

हम एक निसानी – सी उर पर,

ले असफलता का भार चले।

अब अपना और पराया क्या?

आबाद रहें रुकने वाले!

हम स्वयं बँधे थे और स्वयं

हम अपने बँधन तोड़ चले।

दीवानों की हस्ती कविता का सारांश- Deewano Ki Hasti Summary : दीवानों की हस्ती कविता में कवि भगवती प्रसाद वर्मा जी ने एक मस्तमौला और बेफिक्र व्यक्ति का स्वभाव दर्शाया है। कवि के अनुसार, ऐसे दीवाने और बेफिक्र व्यक्ति जहां भी जाते हैं, वहाँ केवल ख़ुशियाँ ही फैलाते हैं। उनका हर रूप मन को प्रसन्न कर देता है, फिर चाहे किसी की आँखों में आँसू ही क्यों ना हों।

कवि कभी भी एक जगह पर ज्यादा समय तक नहीं टिकते हैं। वे तो संसार को कुछ मीठी-प्यारी यादें और एहसास देकर, अपने सफर पर निकल पड़ते हैं। कवि लोग सांसारिक बंधनों में बंधे नहीं होते, इसीलिए वो दुख और सुख, दोनों को एक समान रूप से स्वीकारते हैं। यही उनके हमेशा ख़ुश रहने की प्रमुख वजह है।

कवि के अनुसार, उनके लिए संसार में कोई भी पराया नहीं होता है। वो अपने जीवन के रास्ते पर चलकर ख़ुश रहते हैं और सदा अपने चुने रास्तों पर ही चलना चाहते हैं।

दीवानों की हस्ती अर्थ सहित

हम दीवानों की क्या हस्ती,

हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,

मस्ती का आलम साथ चला,

हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि दीवानों की कोई हस्ती नहीं होती। अर्थात, वो इस घमंड में नहीं रहते कि वो बहुत बड़े आदमी हैं और ना ही उन्हें किसी चीज़ की कमी का कोई मलाल होता है। कवि ख़ुद भी एक दीवाने हैं और बस अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं। उनकी इस मस्ती और ख़ुशी के आगे ग़म टिक नहीं पाता है और धूल की तरह उड़न-छू हो जाता है।

आए बन कर उल्लास अभी,

आँसू बन कर बह चले अभी,

सब कहते ही रह गए, अरे,

तुम कैसे आए, कहाँ चले?

दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि ने कहा है कि दीवाने-मस्तमौला लोग जहाँ भी जाते हैं, वहाँ का माहौल ख़ुशियों से भर जाता है। फिर जब वो उस जगह से जाने लगते हैं, तो सब काफी दुखी हो जाते हैं। लोगों को उनके जाने का पता तक नहीं चलता। वो तो मन में ही अफ़सोस करते रह जाते हैं कि उन्हें मालूम ही नहीं हुआ, कवि कब आए और कब चले गए।

इस प्रकार कवि कह रहे हैं कि एक जगह टिककर रहना उनका स्वभाव नहीं है, उन्हें घूमते रहना पसंद है। इसीलिए वो अक्सर अलग-अलग जगह आते-जाते रहते हैं।

किस ओर चले? यह मत पूछो,

चलना है, बस इसलिए चले,

जग से उसका कुछ लिए चले,

जग को अपना कुछ दिए चले,

दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता में आगे कवि कहते हैं कि मुझसे मत पूछो में कहाँ जा रहा हूँ। मुझे तो बस चलते रहना है, इसीलिए मैं चले जा रहा हूँ। मैनें इस दुनिया से कुछ ज्ञान प्राप्त किया है, अब मैं उस ज्ञान को बाकी लोगों के साथ बाँटना चाहता हूँ। इसलिए मुझे निरंतर चलते रहना होगा।

दो बात कही, दो बात सुनी।

कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।

छककर सुख-दुख के घूँटों को

हम एक भाव से पिए चले।

दीवानों की हस्ती भावार्थ : भगवती चरण वर्मा दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कह रहे हैं कि वो जहाँ भी जाते हैं, लोगों से ख़ूब घुलते-मिलते हैं, उनके सुख-दुख बांटते हैं। कवि के लिए सुख और दुख, दोनों भावनाएं एक समान हैं, इसलिए, वो दोनों परिस्थितियों को शांत रहकर सहन कर लेते हैं।

इस तरह, कवि अपने मार्ग पर चलते हुए, लोगों का दुख-सुख बाँटते हैं और उन्हें एक समान ढंग से ग्रहण करके आगे बढ़ जाते हैं।

हम भिखमंगों की दुनिया में,

स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,

हम एक निसानी – सी उर पर,

ले असफलता का भार चले।

दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि ये दुनिया बड़ी ही स्वार्थी है। लोग स्वार्थ में इतने अंधे हैं कि बस भिखमंगों की तरह सबसे कुछ ना कुछ माँगते ही रहते हैं। मगर, कवि स्वार्थी नहीं हैं, इसलिए उन्होंने स्वार्थी दुनिया पर बिना किसी शर्त के अपना अनमोल प्यार लुटाया है। लोगों को प्यार बाँटने का खूबसूरत एहसास हमेशा कवि के दिल में रहता है।

उन्होंने जीवन में काफी बार असफलता और हार का स्वाद भी चखा है, लेकिन इसका बोझ उन्होंने कभी किसी दूसरे व्यक्ति पर नहीं डाला। इस तरह कवि ने स्वार्थी दुनिया को भरपूर प्यार दिया और अपनी नाकामयाबी का भार हमेशा स्वयं ही उठाया है।

अब अपना और पराया क्या?

आबाद रहें रुकने वाले!

हम स्वयं बँधे थे और स्वयं

हम अपने बँधन तोड़ चले।

दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता की इन अंतिम पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अब उनके लिए दुनिया में कोई भी अपना या पराया नहीं है। जो लोग एक मंज़िल पाकर, वहीं ठहर जाना चाहते हैं, उन्हें कवि ने सुखी और आबाद रहने का आशीर्वाद दिया है। मगर, कवि ख़ुद एक जगह बंध कर नहीं रहना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने अपने सभी सांसारिक बंधन तोड़ दिये हैं और अब वो अपने चुने हुए मार्ग पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। वो इसी में ख़ुश और संतुष्ट हैं।