पाठ-18 टोपी

टोपी पाठ सार

यह कहानी एक गौरैया के जोड़े की है। उन दोनों में बहुत प्रेम था। एक-दूसरे के बगैर वे कोई भी काम नहीं करते थे। एक बार मादा गौरैया ने किसी मनुष्य को कपड़े पहने देखा तो उसकी प्रशंसा की परंतु नर गौरैया ने कहा कि वस्त्रों से मनुष्य सुन्दर नहीं लगता, वह तो मनुष्य के वास्तविक सौंदर्य को ढाक लेता है। परन्तु मादा गौरैया को टोपी पहनने का मन करता है, नर गौरैया कहता है कि हमें वस्त्रों की कोई आवश्यकता नहीं हम तो ऐसे ही ठीक हैं। मगर मादा गौरैया अपनी जिद की पक्की थी, उसने निश्चय कर लिया था कि वह टोपी बनवाकर ही रहेगी।

एक दिन उसे रूई का टुकड़ा मिला, जिसे पहले वह धुनिया के पास ले जा कर धुनवाती है, फिर सूत कतवाने के लिए कोरी के पास ले जाती है तथा दोनों को बनवाई आधा-आधा हिस्सा मजदूरी दे देती है। गौरैया धागा बनवाने के बाद बुनकर के पास जाती है और बुनकर को कपड़े का आधा हिस्सा मजदूरी देकर तथा अपना कपड़ा लेकर दर्जी के पास जाती है तथा उसे भी उसकी मजदूरी देकर, उससे दो टोपियाँ बनवा लेती है। दर्जी ने खुश हो कर उसकी टोपी में पाँच ऊन के फूल भी लगा दिए। 

चिड़िया की टोपी बहुत सुन्दर बनी थी। चिड़िया के मन में राजा से मिलने की इच्छा उत्पन्न हुई, तो वह राजा के महल की ओर उड़ चली। चिड़िया राजा के महल पहुँची, तो राजा छत पर मालिश करवा रहा था। चिड़िया ने राजा का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। राजा को क्रोध आ गया। उसने अपने सैनिकों को उस चिड़िया को मारने के लिये कहा पर सैनिकों ने उसे मारा नहीं राजा के कहने पर उसकी टोपी छीन ली।

राजा उसकी सुन्दर टोपी देखकर हैरान था कि उस चिड़िया के पास इतनी सुन्दर टोपी कहाँ से आई। राजा हैरान था की इतनी सुन्दर टोपी किसने बनाई। उसने अपने सेवकों द्वारा उस दर्ज़ी को बुलवाया। दर्जी ने टोपी सुन्दर बनने का कारण अच्छा कपड़ा बताया। इस प्रकार क्रमशः बुनकर, कोरी व धुनिया को बुलावा भेजा। उन्होंने बताया की उन्होंने बहुत अच्छा काम इसलिए किया है क्योंकि उन्हें मजदूरी बहुत अच्छी मिली थी।

चिड़िया ने राजा को कहा कि उसने सारा कार्य पूरी कीमत चुकाकर करवाया है। वह राजा पर आरोप लगाती है कि राजा कंगाल है, तभी प्रजा को बहुत सताता है, उन पर कर लगाता है और तभी उसने उसकी टोपी भी छीन ली है क्योंकि वह खुद इतनी अच्छी टोपी नहीं बनवा सकता। राजा को अपनी पोल खुलने का डर हो जाता है इसलिए वह चिड़िया की टोपी वापस कर देता है। चिड़िया राजा को डरपोक-डरपोक कहती हुई निकल जाती है।

कठिन शब्द अर्थ 

  • अकबका – परेशान
  • एक तो तमाम – बहुत सारे
  • कमसूरती – कम सुन्दर
  • खजाने – कोष या भंडार
  • पाखी – पक्षी
  • घट – कम
  • तमाम बेगार करवाने – तमाम लोग निकल आए थे
  • लगान – कर
  • ऐशोआराम – सुख-चैन
  • लशकरी – सेना
  • लवाजिमे – यात्रा आदि के साथ रहने वाला सामान
  • बोझ – भार
  • दंडवत – चरणस्पर्श
  • पूरे मोल – कीमत
  • बेगार – बिना मेहनताना के दिया किया जाने वाला कार्य
  • कंगाल – दरिद्र
  • निरा कंगाल – बिल्कुल गरीब
  • जुरती – जुटाना