पाठ 1

हम पंछी उन्मुक्त गगन के (कविता )

 कविता के लेखक का परिचय

शिवमंगल सिंह 'सुमन' का जन्म 5 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर में हुआ था। वे रीवा, ग्वालियर आदि स्थानों मे रहकर आरम्भिक शिक्षा प्राप्त की है | एक अग्रणी हिंदी लेखक और कवि थे।एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद थे। शिव मंगल सिंह 'सुमन' (1915-2002)केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली चिह्न ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। उन्होंने न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी की थी।"

कविता का सार - यहां कवि ने पक्षियों के माध्यम से आज़ादी का महत्त्व बताया है। पक्षी आकाश में स्वतन्र्ता से विचरण करते है उनकी आज़ादी न छीनी जाये वह यह कह रहे है उन्हें अगर पिंजरे में बंद किया गया तो वह खुले स्वर में गीत नहीं गए पाएंगी और यदि सोने के पिंजरे में बंद किया गया तो उनके पर ख़ुशी से फ़ड़फ़ड़ाते हुए टकरा के टूट जायेंगे।

पक्षियों को नदी व झरनो का बहता जल  पीना पसंद है नीम का फल खाना पसंद है सोने के पिंजरे में सोने की कटोरी में मैदा भी मिलेगी तो हमे वह नहीं भायेगा। सोने की ज़ंजीरों में बंधकर हम उड़ना हे भूल जायेंगे हम तो पेड़ की ऊँची डाल पर झूलना चाहते है पक्षी नीले आसमान में उड़ना चाहते है वे आसमान की सीमा को छूना चाहते है वे अपनी चोंच से आसमान के तारों को चुगना चाहते है वह एक होड़ में उडी जा रहे है की वह खुले आसमान में ऊंचा उड़के अपनी मंज़िल पा ही जायेंगे या फिर उनकी साँसे उखड़ जाएँगी यानि वे मर जायेंगे।

कठिन शब्द अर्थ

  • उन्मुक्त - खुला
  • कनक - सोना
  • कटुक - कड़वी
  • शृंखला - ज़ंजीरें
  • फुनगी - पेड़ का सबसे ऊपर का भाग
  • क्षितिज - आसमान व धरती के बीच मिलते हुए
  • होड़ - आगे बढ़ने की चाह

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के

पिंजरबद्ध न गा पाएँगे ,

कनक – तीलियों से टकराकर

पुलकित पंख टूट जाएँगे ।

व्याख्या – कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में पिंजरे में बंद पक्षी अपनी व्यथा का वर्णन करते हुआ कहते हैं कि हम खुले और आज़ाद आसमान में उड़ने वाले पक्षी  हैं , हम पिंजरे के अंदर बंद होकर खुशी से गाना नहीं गा पाएँगे। आज़ाद होने की चाह में पंख फड़फड़ाने के कारण सोने की सलाखों से टकराकर हमारे नरम  पंख टूट जाएँगे।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि गुलामी में कभी भी कोई भी अपना काम ख़ुशी से नहीं कर सकता है। कनक – तीलियों से कवि का तात्पर्य सुख – सुविधाओं से है और कवि कहना चाहते हैं कि गुलामी में भले ही सारी सुख – सुविधाएँ हो फिर भी सभी आजादी को पाने का प्रयास करते रहते हैं।

हम बहता जल पीनेवाले

मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे ,

कहीं भली है कटुक निबोरी

कनक – कटोरी की मैदा से ,

व्याख्या – कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में पिंजरे में बंद पक्षी अपनी स्थिति से दुखी हो कर अपनी व्यथा का वर्णन करता हुआ कहता हैं कि हम पक्षी बहता हुआ जल पीने वाले प्राणी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पक्षियों को बहता हुआ पानी अर्थात नदियों , झरनों का पानी पीना पसंद है। पिंजरे में गुलामी का जीवन जीने से अच्छा तो पक्षी भूखे प्यासे मर जाना पसंद करेंगे। पक्षी कहता है कि उसके लिए पिंजरे में सोने की कटोरी में रखी हुई मैदा से कहीं अच्छा नीम का कड़वा फल है।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि पक्षियों को पिंजरे में भले ही सोने  की कटोरी में मैदा और पानी क्यों न दिया जाए , उस सोने  की कटोरी में मैदा और पानी की जगह पक्षी को नदियों , झरनों का पानी पीना और मैदा से कहीं अच्छा नीम का कड़वा फल लगता है। क्योंकि स्वतंत्रता से जीवन जीते हुए कष्टों को झेलना , गुलामी में सुख – सुविधाओं के मिलने से हज़ार गुना अच्छा है।

स्‍वर्ण – श्रृंखला के बंधन में

अपनी गति , उड़ान सब भूले ,

बस सपनों में देख रहे हैं

तरू की फुनगी पर के झूले।

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पक्षी अपने दुःख को हम सभी से साँझा करते हुए कहते हैं कि हमें सोने की जंजीरों से बने पिंजरे में बंद कर दिया गया है। जिसके कारण हम अपनी उड़ने की कला और रफ़्तार , सब कुछ भूल गए हैं। अब तो हम केवल सपने में ही देखते हैं कि हम पेड़ों की ऊँची डालियों में झूला  झूल रहे हैं।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि गुलामी के कारण पशु हो या हम मनुष्य सभी अपनी क़ाबलियत को धीरे – धीरे भूल जाते हैं और गुलामी के कारण स्वतंत्रता से कुछ भी करना केवल एक सपना रह जाता है।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते

नील गगन की सीमा पाने ,

लाल किरण – सी चोंच खोल

चुगते तारक – अनार के दाने।

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पिंजरे में कैद पक्षी अपनी कल्पना में खोए हुए पिंजरें की कैद में आने से पहले की अपनी सोच को हमारे सामने उजागर करते हुए कहते हैं कि हम इस पिंजरे में कैद होने से पहले हमारी इच्छा थी कि नीले आसमान की सीमा तक उड़ते चले जाएँ। अपनी सूरज की किरणों के जैसी लाल चोंच को खोल कर तारों के समान अनार के दानों को चुग लें। यह सब पक्षी की मात्र कल्पना है ,क्योंकि वह पिंजरों के बंधन में कैद है।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि पिंजरे में कैद पक्षी अपनी कल्पना में खोए हुए अपनी अधूरी इच्छओं को याद करके दुखी हो रहा है। भाव यह है कि गुलामी में रहता हुआ प्राणी अपनी स्वतंत्रता को कभी नहीं भूलता क्योंकि गुलामी किसी को पसंद नहीं होती।

होती सीमाहीन क्षितिज से

इन पंखों की होड़ा – होड़ी ,

या तो क्षितिज मिलन बन जाता

या तनती साँसों की डोरी।

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पक्षी अपने मन की बात को हम तक पहुँचने की कोशिश करते हुए कहता है कि यदि हम आजाद होते तो जिसकी कोई सीमा नहीं है ऐसे आकाश की सीमा को पार करने के लिए दूसरे पक्षियों से बढ़ जाने का प्रयत्न करते रहते। पक्षी कहता है कि या तो हम क्षितिज तक पहुंच जाते या हमारी साँसे थम जाती। कहने का तात्पर्य यह है कि पक्षी क्षितिज को पार करने के लिए अपने प्राणों का त्याग करने को भी तैयार हैं।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि स्वतन्त्र प्राणी अपनी किसी भी इच्छा को पूरा करने के लिए किसी भी हद को पार कर सकता है किन्तु गुलामी में जीने वाला प्राणी केवल आजादी से कुछ भी करने के केवल स्वप्न ही देख सकता है।

नीड़ न दो , चाहे टहनी का

आश्रय छिन्‍न – भिन्‍न कर डालो ,

लेकिन पंख दिए हैं , तो

आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पक्षी उसे पिंजरे में कैद करने वाले व्यक्ति से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि भले ही हमें पेड़ पर टहनियों के घोसले में न रहने दो और चाहो तो हमारे रहने के स्थान को भी नष्ट कर डालो। परन्तु जब भगवान ने हमें पंख दिए है , तो हमारी बैचैन उड़ान में रुकावट ना डालो। कहने का तात्पर्य यह है कि पक्षी अपनी आजादी चाहता है और वह अपने आप को कैद करने वाले व्यक्ति को याद दिला रहा है कि वह एक पक्षी है और उड़ना उसका अधिकार है अतः उसे आजाद किया जाए।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि भगवान् ने सभी प्राणियों को किसी न किसी विशेषता के साथ इस धरती पर भेजा है। जैसे पक्षियों की विशेषता है उड़ना। सभी को अपनी विशेषताओं के साथ जीने का अधिकार है। अतः किसी के भी मार्ग में विघ्न डालना उचित नहीं है।