पाठ 8 शाम एक किसान

लेखक का परिचय - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर, 1927 को विश्वेश्वर दयाल के घर हुआ। ये अपने समय के बहुत ही प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि थे। कविताओं के अलावा इन्होंने बाल साहित्य, नाटक और कहानियां भी लिखीं। उनकी कृतियों को कई अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इनकी प्रमुख रचनाएं ‘खूंटियों पर टँगे लोग, ‘पागल कुत्तों का मसीहा, ‘बकरी, ‘बतूता का जूता हैं। खूंटियों पर टँगे लोग काव्य संग्रह के लिए इन्हें सन् 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।फलतः सर्वेश्वर जी की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा भी ज़िला बस्ती, उत्तर प्रदेश में ही हुई। बचपन से ही वे विद्रोही प्रकृति के थे। उनकी रचना तथा पत्रकारिता में उनका लेखन इसकी बानगी पेश करता है। आप तीसरे सप्तक के महत्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। आपकी शिक्षा बस्ती, बनारस और इलाहाबाद में हुई थी।

अलंकार का ज्ञान -

काव्य की शोभा में वृद्धि करने वाले साधनों को अलंकार कहते हैं। अलंकार से काव्य में रोचकता, चमत्कार और सुन्दरता उत्पन्न होती है। अलंकार  को काव्य की आत्मा ठहराया है। अलंकारकाव्य की शोभा बढ़ानेवाले तत्त्वों को 'अलंकार' कहते हैं।

उपमा समान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।

रूपक जहाँ उपमेय में उपमान का निषेधरहित आरोप हो अर्थात् उपमेय और उपमान को एक रूप कह दिया जाए, वहाँ रूपक अलंकार होता है।

कविता का सार - यह कविता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी द्वारा लिखी गयी है जिसमे उन्होंने शाम के प्राकर्तिक दृश्य का सुन्दर वर्णन किया है शाम के समय पहाड़ किसान की तरह बैठा हुआ है उसके सर पर आकाश साफे के सामान बंधा हुआ है ,पहाड़ के नीचे बहती नदिया उसके पैरों पे पड़ी चादर के समान दिखती है पलाश के पेड़ो पे खिले लाल फूल जलती अंगीठी के समान दिखते है , व्ही दूर पूर्व दिशा में अँधेरा हो रहा है जो भेड़ों के समूह के समान दुबका बैठा हुआ प्रतीत हो रहा है इस शाम के शांत माहौल में अहचानक मोर बोल उठता है ऐसा लगता है जैसे सुनते हो की किसी ने आवाज़ लगाए हो चिलम उलटी हो गयी उसमे से धुंआ उठता है सूरज पश्चिम दिशा में डूब जाता है चारों ओर रात का अँधेरा चा जाता है।

कविता का अर्थ -

आकाश का साफ़ा बाँधकर

सूरज की चिलम खींचता

बैठा है पहाड़,

घुटनों पर पड़ी है नही चादर-सी,

पास ही दहक रही है

पलाश के जंगल की अँगीठी

अंधकार दूर पूर्व में

सिमटा बैठा है भेड़ों के गल्‍ले-सा।

शाम एक किसान कविता का भावार्थ : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी अपनी कविता शाम एक किसान की इन पंक्तियों में शाम होने के समय प्राकृतिक दृश्य का बड़ा ही मनोरम वर्णन कर रहे हैं।उनके अनुसार, शाम के समय पहाड़ किसी बैठे हुए किसान की तरह दिख रहा है और आसमान उसके सिर पर रखी किसी पगड़ी की तरह दिख रहा है। पहाड़ के नीचे बह रही नदी, किसान के घुटनों पर रखी किसी चादर जैसी लग रही है। पलाश के पेड़ों पर खिले लाल पुष्प कवि को अंगीठी में जलते अंगारों की तरह दिख रहे हैं। पूर्व में फैलता अंधेरा सिमटकर बैठी भेड़ों की तरह प्रतीत हो रहा है।

पश्चिम दिशा में मौजूद सूरज चिलम पर रखी आग की तरह लग रहा है। चारों तरफ एक मनभावन शांति छाई है।

अचानक- बोला मोर।

जैसे किसी ने आवाज़ दी-

सुनते हो

चिलम औंधी

धुआँ उठा-

सूरज डूबा

अंधेरा छा गया।

शाम एक किसान कविता का भावार्थ : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी ने अपनी कविता शाम एक किसान के इस पद्यांश में शाम के मनोहर सन्नाटे के भंग होने का वर्णन किया है। चारों तरफ छाई शांति के बीच अचानक एक मोर बोल पड़ता है, मानो कोई पुकार रहा हो, ‘सुनते हो!’ फिर सारा दृश्य किसी घटना में बदल जाता है, जैसे सूरज की चिलम किसी ने उलट दी हो, जलती आग बुझने लगी हो और धुंआ उठने लगा हो। असल में, अब सूरज डूब रहा है और चारों तरफ अंधेरा छाने लगा है।

कठिन शब्द अर्थ

  • साफा - पगड़ी
  • चिलम - हुक्के के ऊपर का भाग की वस्तु
  • देहकना - जलना
  • गल्ले - सा -  समूह सा
  • औंधी - उलटी