चिड़िया की बच्ची

पाठ 9 चिड़िया की बच्ची

पाठ का अर्थ - लेखक कहते हैं कि माधवदास ने कुछ ही समय पहले अपना संगमरमर का पक्का एवं ऊँचा मकान बनवाया है। उसके सामने बहुत ही सुंदर और सुखद बगीचा भी लगवाया गया है। लेखक बताते हैं कि माधवदास को कला से बहुत अधिक प्यार है। उनके पास धन की कोई कमी नहीं है और कोई बुरी आदत अब तक माधवदास को छू नहीं पाई है।इस कहानी में लेखक जैनेंद्र कुमार ने आजादी की महत्ता और मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव का वर्णन किया है। लेखक ने इस कहानी में एक ओर तो एक छोटी सी प्यारी सी चिड़िया की आजाद जिंदगी का वर्णन किया है और दूसरी ओर एक अमीर सेठ की अकेलेपन से भरी जिंदगी का वर्णन किया है। सेठ माधवदास के पास हर भौतिक सुख सुविधाएँ हैं लेकिन इतने धन धान्य के बावजूद उसके पास सच्ची खुशी नहीं है। नन्ही चिड़िया के पास भौतिक सुविधा के नाम पर केवल उसकी माँ का घोंसला है , जहाँ सुनहरी धूप आती है और खाने को उसकी माँ के द्वारा लाए गए कुछ दाने मिल जाते हैं। लेकिन नन्हीं चिड़िया को और किसी सुख सुविधा की इच्छा नहीं है। वह तो इतनी निच्छल है कि उसे सेठ , सोना , मोती और मालामाल जैसे शब्दों का अर्थ भी मालूम नहीं है। सेठ उसे सारी सुख सुविधाएँ देने का वचन देता है और उसे सोने चाँदी से तौलने की बात भी करता है। जब इन सबसे बात नहीं बनती है तो सेठ अपने नौकर को इशारा कर देता है कि चिड़िया को बंदी बना ले। लेकिन चिड़िया वहाँ से बचकर निकल जाती है और अपनी माँ के आँचल की गर्माहट में सुकून और सुरक्षा की तलाश करती है।

पाठ का सार - इस कहानी में जैनेन्द्र कुमार जी ने मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव के बारे में वर्णन किया है माधवदास बहुत अमीर व्यक्ति था जिसने संगमरमर का आलिशान कोठी बनवाए थी और उसके सामने बगीचा जिसमे फव्बारा लगा हुआ था। शाम के समय कोठी के चबूतरे पे तख़्त लगवाकर मसनद के शेयर बैठकर बगीचा का आनद लिया करता था परन्तु उसे कुछ खली सा मालूम होता था।

एक शाम एक चिड़िया गुलाब की टहनी पे आकर बैठ गयी उसकी गर्दन लाल थी धीरे धीरे गुलाबी होते हुए किनारों पर नीले पंखों थे जो बहुत चमकदार थे उसके शरीर पर विचित्र चित्रकारी थी माधवदास को बहुत पसंद आयी वह चिड़िया माध मस्त सी डालियो पर थिरक रही थी माधवदास उससे बोला की ये बगीचा उसने उसी के लिए बनवाया है वह चिड़िया संकोच  में पड़ गयी  उसने कहा वह तो यह सांस लेने के लिए रुकी थी माधवदास ने कहा वह जबतक रहना चाहे यह रुक सकती है यह बगीचा उसी का है चिड़िया का थिरकना बंद होगया , माधवदास ने  कहा की वह चाहता है की वह उसके महल में चेह चैहाना करे तब चिड़िया ने कहा वह तो अपनी माँ के पास घर जा रही थी वह तो अपने घर से धुप खाने , हवा से खेलने और फूलों से बातें करने निकली थी।

माधवदास उससे कहता है की वह उसके लिए सोने का पिंजरा बनवा देगा खाने के लिए मोती भी देगा महल में मोतियों की झालर लटका देगा चिड़िया डर जाती है वह कहती है उसे माँ का बनाया खाना पसंद है और घोसला , माँ से प्यारी उसे कोई चीज़ नहीं उसने कहा उसे जाना है माँ उसका इंतज़ार क्र रही होगी माधवदास उसे के तरह के लालच देता है की जिस कटोरी में वह पानी पीयेगी वह भी सोने की होगी तभी माधवदास एक बटन दबा देता है जिससे उसका नौकर  दौड़ा हुआ आता है वह उसे चिड़िया को पकड़ने का इशारा करता है और चिड़िया को बातो में फसा के रखता है पूछता है घर में भाई बहन कितने है वह बताती है की दो बहन और एक भाई है उसे घर जाने को देरी हो रही होती है क्युकी शाम होने वाली होती है।

तभी चिड़िया को अपने शरीर पर कठोर हाथों के स्पर्श का अहसास होता है वह ज़ोर से चिल्लाती हुए हाटों से फिसल कर उड़ती हुए सीधा अपनी माँ की गोद में दुपक जाती है और ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है माँ कारन पूछती है तो कुछ बोल नहीं पाती बस सीने से ऐसे लिपट जाती है जैसे फिर कभी नहीं अलग होगी।

कठिन शब्द अर्थ

  • व्यसन - दोष
  • रकाबियाँ - तश्तरी
  • स्याह - गहरे नीले
  • बेखटके - बिना किसी डर के
  • बोध होना - पता चलना
  • निरि - बिलकुल
  • चौकन्नी - सावधान होना
  • राहू - रास्ता
  • सुबकना - हिचकी लेकर रोना

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