कठपुतली

पाठ 4 कठपुतली

कठपुतली का इतिहास बहुत पुराना है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पाणिनी की अष्टाध्यायी में 'नटसूत्र' में 'पुतला नाटक' का उल्लेख मिलता है। कुछ लोग कठपुतली के जन्म को लेकर पौराणिक आख्यान का ज़िक्र करते हैं कि शिवजी ने काठ की मूर्ति में प्रवेश कर पार्वती का मन बहलाकर इस कला की शुरुआत की थी।

कठपुतली नृत्य को लोकनाट्य की ही एक शैली माना गया है। कठपुतली अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है जिसमें लकड़ी, धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों द्वारा जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति तथा मंचन किया जाता है।

भारत में पारंपरिक पुतली नाटकों की कथावस्तु में पौराणिक साहित्य, लोककथाएँ और किवदंतियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीर-रांझा, लैला-मजनूं और शीरीं-फ़रहाद की कथाएँ ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं, लेकिन अब साम-सामयिक विषयों, महिला शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, परिवार नियोजन के साथ-साथ हास्य-व्यंग्य, ज्ञानवर्धक व अन्य मनोरंजक कार्यक्रम दिखाए जाने लगे हैं।

उत्तर प्रदेश में सबसे पहले कठपुतलियों के माध्यम का इस्तेमाल शुरू हुआ था। शुरू में इनका इस्तेमाल प्राचीन काल के राजा महाराजाओं की कथाओं, धार्मिक, पौराणिक आख्यानों और राजनीतिक व्यंग्यों को प्रस्तुत करने के लिये किया जाता था। उत्तर प्रदेश से धीरे-धीरे इस कला का प्रसार दक्षिण भारत के साथ ही देश के अन्य भागों में भी हुआ

कविता का सार - यह कविता भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा रचित है जिसमे उन्होंने स्वतंत्रता का महत्व बताया है कठपुतली जो परतंत्र है वह स्वतंत्र होने के लिए बोल उठी - यह धागे मेरे शरीर में आगे पीछे क्यों बांध रखे है ? तुम इन्हे तोड़कर मुझे स्वतंत्र करदो उसकी बात सुन अन्य कठपुतलियां भी बोलने लगी हमने भी अपने मन की बात कहनी है जो हमने नहीं की अपनी इच्छाओं को हमने भी दबा कर रखा हुआ है।

अन्य कठपुतलियों की यह बात सुनकर पहली कठपुतली सोच में पड़ जाती है की उसकी इस इच्छा का क्या परिणाम होगा ? क्या वे स्वतंत्रता को संभाल पाएंगी ? अपने पैरों पे खड़ी रह पायेगी अन्य काठ पुतलिया आज़ादी का सही प्रयोग कर सकेंगी ? फलस्वरूप पहली कठपुतली सोच समझकर कोई कदम उठाना ज़रूरी समझती है।

कठिन शब्द अर्थ

  • मन के चाँद - मन के भाव
  • मन में जगी - बात की मन में विचार
  • गुस्से से उबली - तीव्र क्रोध  आना

 कठपुतली कविता का भावार्थ –

भवानी प्रसाद मिश्र का जीवन परिचय : हिंदी भाषा के महान लेखक श्री भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च सन् 1913 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गाँव में हुआ। वो कविता, निबंध, संस्मरण और बाल साहित्य लेखन में निपुण थे। इनकी प्रमुख रचनाओं में चकित है दुख, नीली रेखा तक, तुकों के खेल, अंधेरी कविताएं आदि प्रमुख हैं।

कठपुतली

गुस्‍से से उबली

बोली- यह धागे

क्‍यों हैं मेरे पीछे-आगे?

इन्‍हें तोड़ दो;

मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।

कठपुतली कविता का भावार्थ: कठपुतली कविता की इन पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने एक कठपुतली के मन के भावों को दर्शाया है। कठपुतली दूसरों के हाथों में बंधकर नाचने से परेशान हो गयी है और अब वो सारे धागे तोड़कर स्वतंत्र होना चाहती है। वो गुस्से में कह उठती है कि मेरे आगे-पीछे बंधे ये सभी धागे तोड़ दो और अब मुझे मेरे पैरों पर छोड़ दो। मुझे अब बंधकर नहीं रहना, मुझे स्वतंत्र होना है।

सुनकर बोलीं और-और

कठपुतलियाँ

कि हाँ,

बहुत दिन हुए

हमें अपने मन के छंद छुए।

कठपुतली कविता का भावार्थ: भवानी प्रसाद मिश्र जी ने कठपुतली कविता की इन पंक्तियों में अन्य सभी कठपुतलियों के मन के भाव दर्शाए हैं। पहली कठपुतली के मुँह से स्वतंत्र होने की बात सुनकर अन्य कठपुतलियां भी उससे कहती हैं कि हां, हमें भी स्वतंत्र होना है, हमें भी अपने पैरों पर चलना है। काफी दिनों से हम यहां इन धागों के बंधन में बंधी हुई हैं।

मगर

पहली कठपुतली सोचने लगी-

यह कैसी इच्‍छा

मेरे मन में जगी?

कठपुतली कविता का भावार्थ: कठपुतली कविता की अंतिम पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने पहली कठपुतली के मन के असमंजस के भावों को दिखाया है। जब बाकी सभी कठपुतलियाँ पहली कठपुतली की स्वतंत्र होने की बात का समर्थन करती हैं, तो पहली कठपुतली सोच में पड़ जाती है कि क्या वो सही कर रही है? क्या वो इन सबकी स्वतंत्रता की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले पाएगी? क्या उसकी इच्छा जायज़ है? अंतिम पंक्तियां उसके इन्हीं मनभावों को समर्पित हैं।

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