नीलकंठ

पाठ 15 नीलकंठ

महादेवी वर्मा का जन्म पुस्तकों में 26 मार्च, 1907 को होली के दिन फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ, बताया गया है। उनका जन्म 24 मार्च, 1902 को अधिक तर्कसंगत लगता है चूंकि होली 1902 में ही 24 मार्च (26 की तिथि के निकट) को सही जान पड़ती है। अन्य तिथियों को होली इस दिन के आसपास नहीं थी। यह छायावादी कवित्री है।

पाठ का सार - यह पाठ एक रेखाचित्र है जिसमे महादेवी वर्मा ने पालतू पशुओं में से मोर जिसे नीलकंठ नाम दिया है उसके व्यवहार ,चेष्टाओं का वर्णन किया है एकबारी वह अथिति को छोडकर लौट रही थी की बड़े मियाँ के यह से मोर मोरनी के दो बच्चे ले आयी सबने उनके घर पहुंचते हे बताया की वह तो तीतर ले आयी है इस बात से चिढ़कर वह दोनों पशु पक्षी को अपने पड़ने के कमरे में ले गयी दोनों पक्षी आज़ादी से उनके कमरे में घुमते रह लेखिका से घुल मिलकर उसका ध्यान अपनी ओर खींचते

जब वे बड़े हो गए उन्हें अन्य पशु पक्षियों के साथ जाली घर पहुंचा दिया गया धीरे धीरे दोनों सूंदर मोर मोरनी में बदल गए मोर की सर की कलघी बड़ी ओर चमकीली हो गयी थी चोंच ओर लम्बी होगयी थी गर्दन लम्बी  हरे नीले रंग की , पंखों में भी चमक आने लगी थी मोर मोरनी से अधिक सुन्दर था उसकी सहचारिणी होने की वजह से उसका नाम राधा और मोर का नीलकंठ रखा गया नीलकंठ लेखिका के चिड़िया घर की शान बन गया था जब कोई पक्षी उसकी बात नहीं मानता वह अपनी चोंच से उसे दंड देता एक बार एक साप ने खरगोश के बच्चे को मुँह में दबा लिया था उस साप के टुकड़े मोर ने अपनी चोंच से कर दिए और खरगोश के बच्चे को अपने पंखो से सेक भी दिया।

वसंत में मेघों की काली घटा में वह पंख फेळके नाचता अनेक विदेशी महिलाओं ने उसका नृत्य को अपने लिए सम्मान समझकर उसे 'परफेक्ट जेंटल मेन' की उपाधि दे दी। राधा और नीलकंठ को वर्षा ऋतू बहुत पसंद थी उनकी तन्मयता वेग बढ़ता हे जाता था और पहले से हे बदलो के गरगराने का एहसास हो जाता था बिजली की चमक खत्म होने पे दाहिने पंख को सूखने के लिए दाहिना पैर उठाते बाए पंख को सूखने के लिए बाय पैर उठाते। एक उनके प्रेम में तीसरा आ गया।

एक दिन लेखिका को बड़े मियां के यह एक घायल मोरनी मिली जिसकी महम पट्टी हो रही थी उसकी देखभाल करके उसे एक महीने तक हो गयी और लड़खड़ाकर चलने लगी फिर उसे जालघर पहुंचा दिया गया उसका नाम 'कब्ज़ा ' रखा गया वह राधा से बहुत चिढ़ती थी उसने अपनी चोंच से राधा के कल घी  और पंख नोच डाले थे वह नीलकंठ के साथ रहना चाहती थी पैर नीलकंठ उसे देख वह से भागता था। कुछ दिनों बाद राधा ने दो अंडे दिए जिसे वह रधा से चुपके रखती थी और सख्ती थी जैसे ही कब्ज़ा को यह मालूम हुआ उसने अणि चोंच से उन्हें तोड़ डाला जिससे नीलकंठ बहुत दुखी हुआ , उसकी मित्रता किसी से नहीं थी लेखिका को विश्वास था की सब मिल जायेंगे पर ऐसा नहीं हुआ।

तीन चार माह में नीलकंठ की मृत्यु हो गयी न तो उसे कोई बीमारी न कुछ और लेखिका ने उसे संगम में प्रवाहित कर दिया राधा उसे डूडी रही और एक कोने में जेक बैठ गयी व्ही कब्ज़ा ने उसकी खोज शुरू कर दी खोज करती हुए वह अलसी शियान कुटिया के सामने पद गयी जहां उसे चोंच मारकर मारने लगयी कुटिया ने स्वभाव स्वरूप उसके गर्दन पे दो दांत रख दिए वह घायल हो गयी इलाज़ा करवाने के बावजूद वह बच नहीं पायी मर गयी उधर राधा मेघ के घिरने पे केका ध्वनि से नीलकंठ को बुलाती रहती है।

कठिन शब्द अर्थ

  • संकेत - इशारा
  • अनुसरण - नक़ल करना
  • संकीर्ण - बहुत छोटा
  • निरिक्षण - जांच करना
  • मूंजी - मूर्ख
  • ठग - धोका
  • यत्न - कोशिश
  • गुप्तवास - छुपकर रहना
  • आश्वस्त - विश्वास
  • नवागंतुक - मेहमान
  • शोध - खोज
  • असेह - जिसे सहा  न जा सके
  • कायाकल्प - रूप रेखा
  • कोतुहल -उत्सुकता
  • भूचाल - तूफ़ान
  • उदीप्त - चमक उठना
  • करंदन - दर्द भरी आवाज़
  • सघन - गहरे
  • मंद केका - धीमी
  • भंगिमा - मुद्रा
  • विरल  - लम्बी

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