कंचा

पाठ 12 कंचा

पाठ का अर्थ - यह कहानी लेखक पद्मनाभन ने लिखी है जिसमे उन्होंने बाल मन की भावनाओं को दर्शाया है किस प्रकार एक बालक को कंचों से प्यार होता है किस प्रकार वह अपने खिलौने सहेज के रखता है किस प्रकार उसका ध्यान स्कून में न लगके कंचों में लगा रहता है ,इस कहानी में अप्पू के माध्यम से बालमन की छवियों को दर्शाने का प्रयास किया गया है की किस प्रकार वह अपनी स्कूल की फीस से कंचों को खरीदना ज़्यादा अच्छा समझता है वह अपनी पोस्को के बैग में पुस्तकों से ज़्यादा कंचा रखता था। उसे अपनी जान की प्रवाह भी नहीं थी वह काँचों में इतना व्यस्त था की जब सड़क पर कंचे बिखर गए तो उन्हें बटोरने के लिए वह बिना गाड़ी के खौफ के उन्हें बटोरने लगा अंत में उसकी मासूमियत को भी लेखक ने दर्शाया है की किस प्रकार अपनी माँ के आंसू देख वह यह सोचता है की माँ को कंचे पसंद नहीं आये तो वह कह देता है उसे कंचे इतने नहीं पसंद इस प्रकार बाल्य मन की अनेक भावनाओ को यह दर्शाने का प्रयत्न किया गया है।

पाठ का सार -

इस कहानी में लेखक श्री टी पद्मनाभन ने बालमन को बड़े हे सुन्दर रूप से सजाके दर्शाया है , अप्पू एक बालक है जो खेलने के सामान बाकि अन्य चीज़ों से ऊपर रखता है अप्पू हाथ में बस्ता लटकाये नीम के पेड़ की घनी चाओं से गुज़र रहा था वह सियार और कौए की कहानी का मन हे मन मज़ा ले रहा था वह चलते चलते एक दुकान पर पहुंचा जहां अलमारी में गोल गोल अवले के सामान दिखने वाले कंचे रखे हुए थे वह कंचों को देखता हे रहा और उसी में खो गया। वह कंचे लेना चाहता था पर स्कूल की घंटी सुन स्कूल के लिए दौड़ पड़ा देर से आने पर उसे पीछे बैठना पड़ा उसके सहपाठी रामन , मल्लिका , जम्मू आगे बैठे थे जॉर्ज उसका सहपाठी आज बुखार आने के कारन नहीं आया था वह उसके बारे में सोचने लगा क्युकी वह कंचों का अच्छा खिलाडी था।  मास्टर साहब रेलगाड़ी के बारे में पड़ा रहे थे परन्तु अप्पू का ध्यान कंचो में था तभी उसके पास चौक का टुकड़ा आ गिरा मास्टर साहेब को उसका चेहरा देखके समझ आज्ञा इसका ध्यान कहि और है उन्होंने उससे प्रश्न पुछा जिसका जवाब उसे न आता था उन्होंने उसे बेंच पे खड़ा कर दिया सब बच्चे उसपे हसने लगे परन्तु उसका ध्यान कंचो में हे था वह सोच रहा था जॉर्ज के आने पे वह कंचों से खेलेगा और उसके साथ हे खरीदने के लिए जायेगा।

मास्टर जी घंटा खत्म होने पे कक्षा से चले गए उन्होंने सब बच्चों को उनकी फीस भरने के लिए खा था सब बच्चे फीस भरने कर्लरक के पास गए अप्पू भी बेंच से उतरकर वह गया परन्तु उसके दिमाग में अभी भी कंचों को कैसे खरीदा जाये यह चल रहा था घंटी बजने पर सब बच्चे वापिस अपनी कक्षा में आगये।

अप्पू शाम को इधर उधर घूमता रहा और वापिस उस कंचन की दुकान पे पहुंचकर पचास पैसे देकर उसने कंचों को खरीद लिया जब वह घर आरहा था तब कागज़ की पुड़िया उसने खोली जिसके कारन सरे खांचे बिखर गए अब वह उन्हें चुनने लगा किताबे बैग से निकलकर कंचे उसमे भरने लगा एक गाडी सड़क पर रुक गयी गाड़ी के ड्राइवर को उसपे बहुत क्रोध आया पर उसे खुश देखके वह हसता हुआ चला गया जब अप्पू घर पहुंचा उसने कंचे अपनी माँ को दिखाए माँ वह देखकर हैरान हो गयी उसने बताया की फीस के पैसो से उसने यह कंचे खरीदे है वह बोली खेलोगे किसके साथ ? यह बोलके वह रोने लगी क्युकी अप्पू की  एक भन थी मुन्नी जो अब इस दुनिया में नहीं रही अप्पू को लगा माँ को कंचे पसंद नहीं आये उसने पुछा आपको अच्छा नहीं लगा माँ उसकी भावनाओं को समझते हुए बोली बहुत अच्छे है।

कठिन शब्द अर्थ

  • केंद्रित -स्थिर
  • जार - कांच का डिब्बा
  • कतार - पक्ति
  • निषेध - मना करना
  • थामे - पकड़े
  • मात खाना - हार जाना
  • पीपा - डब्बा
  • भूचाल - तूफ़ान
  • कर्मठ - मेहनती
  • शंका - शक
  • समाधान - हल
  • चिकोटी - चुटकी
  • रकम - पैसे
  • पोटली - थैली
  • काहे - क्यों

बचपन की यादों की मदत

हम सभी को बचपन की यादें बहुत पसंद है क्योंकि उसमे हमारा बचपन छुपा रहता है। जो हमे मुश्किल समय में खुश रखने में मदत करता है। बचपन में हम सभी के हाथों कुछ ना कुछ गलतिया होती थी जिससे हमे कुछ ना कुछ सिख मिलती है। लेकिन ज़िंदगी में जब हम लोग बड़े हो जाते है तब कोई गलती करने से पहले हमे वो बचपन में मिली हुई सिख याद आती है।

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