पाठ 20 विप्लव गायन

कविता का सार - यह कविता एक क्रांति गीत है जिसमे जड़ता में संघर्ष द्वारा परिवर्तन लाया जा सकता है कवी अपने साथी कवियों को सम्बोधित करते हुए कहते है तुम अपने परिवर्तन सम्बन्धी भावनाओं से कुछ ऐसी तान सुनाओ की जीवन में तूफ़ान आजाये ऑर्डर परिवर्तन हो जाये कवी कहता है मेरी वीणा पर आग की चिंगारियां बैठी है अब यह मधुर स्वर उत्त्पन्न नहीं करेंगी वीणा से मधुर ताने उत्पन्न करने वाली मिसराबे तने टूट चुकी है वीणा बजाने वाली दोनों अंगिया भी अकड़ गयी है अब यह परिवर्तन लाना चाहती है।

कवी कहते है मेरे गला भीअधिकता से  रुक गया है जो जोश से भरा हुआ रहता है  इससे निकलने वाला विनाश का गीत रुक गया है परन्तु अब जो परिवर्तन होगा वो रुक नहीं पायेगा क्युकी वह अंतर्मन से उठा है और सब ऋणियों को वो खत्म कर देगा मेरे मन से क्रोध भरी तान से उत्त्पन्न गीत सामान्य गीत नहीं है। यह गीत विकास की रह में आने वाले सभी कठिनाइयों को खत्म कर देगा।

कवी कहते है उसकी वाणी में कण कण में जोश भरा पड़ा  है उसके शरीर का एक एक रोम परिवर्तन का स्वर दे रहा है उसकी ध्वनि से बदलाव की ताने उत्त्पन्न होती रहती है जैसे ज़हर कालकूट को धारण करने वाले नाग के सर पर चिंतामणि शोभा देती है वैसे हे परिवर्तन लेन वाले का जोश मुझमे शोभा दे रहा है मैंने जीवन के सभी रहस्यों को समझ लिया है की समाज में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है। मैंने मृत्यु और विनाश के भृकुटियों में छिपे हुए पोषक सूत्रों को अच्छी  तरह से समझ लिया है  इसे करके विनाश हे होगा उसके बाद हे समाज का नव निर्माण संभव होगा।

कठिन शब्द अर्थ

  • हिलोर - लहर
  • आनन - आकर
  • महानाश - पूर्ण विनाश
  • दग्ध - जल उठना
  • कालकूट - भयंकर ज़हर
  • पहनी - नाग

कविता का अर्थ -

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ,

जिससे उथल-पुथल मच जाए,

एक हिलोर इधर से आए,

एक हिलोर उधर से आए।

सावधान! मेरी वीणा में,

चिनगारियाँ आन बैठी हैं,

टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियाँ

दोनों मेरी ऐंठी हैं।

विप्लव गायन कविता का भावार्थ: विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कवि एक ऐसा गीत गाने की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं, जो समाज में क्रांति पैदा करे और जिससे परिवर्तन की शुरुआत हो।

अगली पंक्तियों में कवि लोगों को सावधान करते हुए कहते हैं कि मेरा यह गीत समाज में क्रांति की चिंगारियां पैदा कर सकता है, आपकी शांति भंग हो सकती है और इस क्रांति से आने वाले बदलाव आपको कष्ट दे सकते हैं। वो कहते हैं कि उनके इस गीत से समाज में कई बदलाव आएंगे और वर्तमान व्यवस्था उलट-पुलट सकती है।

कंठ रुका है महानाश का

मारक गीत रुद्ध होता है,

आग लगेगी क्षण में, हृत्तल

में अब क्षुब्ध युद्ध होता है।

झाड़ और झंखाड़ दग्ध हैं –

इस ज्वलंत गायन के स्वर से

रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है

निकली मेरे अंतरतर से।

विप्लव गायन कविता का भावार्थ: कवि ने विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कहा है कि मेरे गीत से पैदा हुए हालातों की वजह से महाविनाश का गला रुंध गया है और उसने मृत्यु का गीत गाना रोक दिया है। असल में, इन पंक्तियों में कवि कहना चाह रहे हैं कि जब भी समाज में बदलाव के लिए आवाज़ उठाई जाती है, तो उसे दबाने की लाखों कोशिशें की जाती हैं। मगर, क्रांति की आवाज़ ज्यादा समय तक दबाई नहीं जा सकती।

कवि के दिल में सामाजिक बुराइयों और वर्तमान व्यवस्था के प्रति को रोष है, उसकी ज्वाला से हर अवरोध जल कर राख हो जाएगा। फिर बदलाव के गीतों की तान दोबारा दोगुने ज़ोर से शुरू हो जाती है और उसके वेग से सभी सामाजिक कुरीतियां और ढोंग-पाखंड पल भर में समाप्त हो जाते हैं।

कण-कण में है व्याप्त वही स्वर

रोम-रोम गाता है वह ध्वनि,

वही तान गाती रहती है,

कालकूट फणि की चिंतामणि।

आज देख आया हूँ – जीवन

के सब राज़ समझ आया हूँ,

भ्रू-विलास में महानाश के

पोषक सूत्र परख आया हूँ।

विप्लव गायन कविता का भावार्थ: विप्लव गायन कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि संसार के हर एक कण में क्रांति का गीत समा गया है, हर दिशा से उसी की प्रतिध्वनि आ रही है। जिस तरह शेषनाग अपनी मणि की चिंता में डूबे रहते हैं, उसी प्रकार यह सारा संसार भी नवनिर्माण के चिंतन में लीन हो गया है।

विप्लव गायन कविता की अगली पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मैं तो यह जानता हूँ कि बदलाव के बाद समाज में कैसी परिस्थितियां पैदा होंगी। इसीलिए वो कहते हैं कि समाज के विचारों और नज़रिए में बदलाव आने के साथ ही बुराइयों से भरे दूषित समाज का विनाश होने लगेगा और इसके बाद ही एक नए राष्ट्र और समाज का निर्माण प्रारम्भ होगा।